लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी स्पष्ट बहुमत से कुछ सीटें कम रह गई. इसके बावजूद भी घटक दलों के साथ वो सरकार बनाने के लिए मजबूत स्थिति में है. अपने तीसरे कार्यकाल के लिए तैयार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी NDA संसदीय दल के नेता चुन लिए गए हैं. लेकिन बीजेपी के बहुमत में न होने के चलते एनडीए के घटक दलों से BJP को काफी समझौते करने पड़ सकते हैं. इसमें सबसे अहम भूमिका TDP और JDU की होगी. ऐसे में दोनों ही दलों के नेता चाहते हैं कि प्रधानमंत्री के बाद सदन में सबसे शक्तिशाली पद स्पीकर उनकी झोली में आए.

सूत्रों का कहना है कि स्पीकर का पद दोनों ही दल अपने-अपने कोटे में रखने की मांग कर रहे हैं. अभी तक इस बारे में दोनों दलों की तरफ से खुलकर कोई बात सामने नहीं आई है,  हालांकि बीजेपी किसी भी सूरत में किसी दूसरे दल के व्‍यक्‍ति को इस पद पर नहीं बिठाना चाहेगी. इधर NDA की पहली बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए जेडीयू और टीडीपी दोनों ने ही ऐसी किसी डिमांड से इनकार किया है. लेकिन जेडीयू और टीडीपी दोनों ही भविष्य में अपनी ही पार्टी को विभाजन से बचाने के लिए ये पद चाहते हैं. क्योंकि दल-बदल वाले कानून के चलते स्पीकर की भूमिका सबसे अहम हो जाती है. क्योंकि दल-बदल कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पास बेहद ही सीमित अधिकार है. देश का राजनीतिक इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है, जब सरकार को बचाने में स्पीकर की भूमिका सबसे अहम हो जाती है.

ये हैं लोकसभा स्‍पीकर का अधिकार

सदन में लोकसभा स्‍पीकर का पद काफी अहम होता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में सदन के भीतर लोकसभा अध्यक्ष, भारतीय संसद के निम्न सदन, लोकसभा का सभापति एवं अधिष्ठाता होता है. लोकसभा सदन का मुखिया स्‍पीकर ही होता है. स्पीकर न केवल सदन के अनुशासन को सुनिश्चित करता है, बल्कि इसके उल्‍लंघन पर लोकसभा सदस्‍यों को दंडित करने का भी अधिकार रखता है.   

लोकसभा स्‍पीकर की भूमिका और अहम तब हो जाती है. जब किसी गठबंधन या दल का बहुमत परीक्षण  कराना हो . दोनों पक्षों के बराबर वोट होने पर वह मतदान करने का भी अधिकारी होता है. ऐसे में  स्पीकर का वोट निर्णायक और महत्वपूर्ण हो जाता है. लोकसभा स्‍पीकर सदन की प्रक्रियाओं जैसे स्‍थगन प्रस्‍ताव, निंदा प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव आदि की भी अनुमति देता है. स्पीकर संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करता है. इतना ही नहीं स्‍पीकर ही लेकसभा में विपक्ष के नेता को मान्‍यता देने पर भी फैसला करता है. लोकसभा स्‍पीकर ही सदन के सभी संसदीय समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है और उनके कार्यों पर निगरानी रखता है.