World Food Day से संबंधित कुछ Quotes

  • “We should look for someone to eat and drink with before looking for something to eat and drink.” » Epicurus
  • “We all eat, and it would be a sad waste of opportunity to eat badly.” » Anna Thomas
  • “Food is symbolic of love when words are inadequate.” » A lan D. Wolfelt

World Food Day 2018: 2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता संभालते समय जहां यह 55वें रैंक पर था, वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और पिछले साल 100वें और इस बार तीन साढ़ियां और लुढ़क गई है.

आज ‘विश्व खाद्य दिवस’ (World Food Day) है. विकासशील देशों में कृषि के विकास के लिए जरूरी ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (एफएओ) की स्थापना 16 अक्टूबर, 1945 को कनाडा में की गई थी जो बदलती तकनीक जैसे कृषि, पर्यावरण, पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारी देता है. अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य कि दो दिन पहले जारी हुआ ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ यानी जीएचआई काफी सुर्खियां बटोर रहा है. दरअसल इसमें दुनिया के विभिन्न देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है और हर साल वैश्विक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का आकलन किया जाता है. जीएचआई में भारत इस बार और नीचे गिरकर 103वें रैंक पर आ पहुंच गया है. दुर्भाग्य इसलिए भी कि इस सूची में कुल 119 देश ही हैं. यकीनन साल दर साल रैंकिंग में आई गिरावट चिंताजनक है. हां, यह राजनीति का मुद्दा जरूर बन गया है, क्योंकि 2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता संभालते समय जहां यह 55वें रैंक पर था, वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और पिछले साल 100वें और इस बार तीन साढ़ियां और लुढ़क गई है.

बेशक भूख अब भी दुनिया में एक बड़ी समस्या है और इसमें कोई झिझक नहीं कि भारत में दशा बदतर है. हम चाहे तरक्की और विज्ञान की कितनी भी बात कर लें, लेकिन भूख के आंकड़े हमें चौंकाते भी हैं और सोंचने को मजबूर कर देते हैं. केवल उपलब्ध आंकड़ों का ही विश्लेषण करें तो स्थिति की भयावहता और भी परेशान कर देती है. दुनियाभर में जहां करीब 50 लाख बच्चे कुपोषण के चलते जान गंवाते हैं, वहीं गरीब देशों में 40 प्रतिशत बच्चे कमजोर शरीर और दिमाग के साथ बड़े होते हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 85 करोड़ 30 लाख लोग भुखमरी का शिकार हैं. अकेले भारत में भूखे लोगों की तादाद लगभग 20 करोड़ से ज्यादा है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ की एक रिपोर्ट बताती है कि रोजाना भारतीय 244 करोड़ रुपए यानी पूरे साल में करीब 89060 करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद कर देते हैं. इतनी राशि से 20 करोड़ से कहीं ज्यादा पेट भरे जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए न सामाजिक चेतना जगाई जा रही है और न ही कोई सरकारी कार्यक्रम या योजना है.

इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा कहीं न कहीं हर दिन भूखा सोने को मजबूर है, जिससे हर वर्ष लाखों जान चली जाती है. ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के आंकड़ों को सच मानें तो रोजाना 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि भूखे लोगों की करीब 23 प्रतिशत आबादी अकेले भारत में है, यानी हालात अमूमन उत्तर कोरिया जैसे ही है. शायद यही कारण है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को मजबूर हैं और इसके चलते उनके मानसिक और शारीरिक विकास, पढ़ाई लिखाई और बौद्धिक स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ता है. भूख के आंकड़ों के हिसाब से भारत की स्थिति नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों से भी बदतर है. इस बार बेलारूस जहां शीर्ष पर है, वहीं पड़ोसी चीन 25वें, श्रीलंका 67वें और म्यांमार 68वें बांग्लादेश 86वें और नेपाल 72वें रैंक पर है. तसल्ली के लिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान हमसे नीचे 106वें पायदान पर है.