युगांडा. युगांडा की संसद ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों पर टैक्स लगाने के कानून को मंज़ूरी दे दी है. इस कानून के तहत जो लोग भी फ़ेसबुक, व्हॉट्सएप, वाइबर और ट्विटर जैसे सोशल प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करेंगे, उन्हें हर दिन के हिसाब से करीब तीन रुपये 36 पैसे देने होंगे. राष्ट्रपति योवेरी मुसेवनी ने इस कानून का समर्थन करते हुए कहा कि यह कानून इसलिए लागू किया जा रहा है ताकि सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोका जा सके.

यह कानून 1 जुलाई से लागू हो जाएगा लेकिन इसे किस तरह से लागू किया जाएगा, इस बात को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है. नई एक्साइज़ ड्यूटी बिल में कई और तरह के टैक्स भी हैं. जिसमें कुल मोबाइल मनी ट्रांजेक्शन में अलग से एक फीसदी का टैक्स देना होगा. ऐसा माना जा रहा है कि इस तरह के टैक्स की वजह से युगांडा का ग़रीब वर्ग बुरी तरह से प्रभावित होगा. युगांडा के वित्त मंत्री डेविड बहाटी ने संसद में कहा कि यह बढ़े हुए टैक्स युगांडा के राष्ट्रीय कर्ज़ को कम करने के लिए लगाए गए हैं.

हालांकि विशेषज्ञों और कुछ इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स ने सोशल मीडिया पर लगाए जाने वाले रोजाना के इस टैक्स पर संदेह जताया है और इसे लागू कैसे किया जाएगा, इस पर सवाल उठाए हैं. युगांडा की सरकार मोबाइल सिम कार्ड्स के रजिस्ट्रेशन के मुद्दे पर जूझ रही है. रॉयटर्स की ख़बर के मुताबिक, देश में 2.3 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर्स हैं जिनमें से केवल 1.7 करोड़ ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.

हालांकि अब तक ये स्पष्ट नहीं हो सका है कि अधिकारी ये कैसे पता करेंगे कि कौन सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहा है और कौन नहीं. राष्ट्रपति मुसेवनी ने मार्च में ही इस कानून को लागू करने की वक़ालत शुरू कर दी थी. उन्होंने वित्त मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी थी. जिसमें उन्होंने लिखा था कि सोशल मीडिया पर टैक्स लगाना देश हित में होगा और इससे अफ़वाहों से उबरने में भी मदद मिलेगी.

लेकिन उनकी ओर से जवाब में कहा गया था कि सोशल मीडिया पर टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि इसका इस्तेमाल शिक्षा और रिसर्च के लिए किया जाता है. आलोचकों का कहना कि यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा. पर मुसेवनी ने इन सभी कयासों को यह कहकर दरकिनार कर दिया था कि इससे लोग इंटरनेट का कम इस्तेमाल करेंगे. युगांडा में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए सोशल मीडिया महत्वपूर्ण है.

भारत में इंटरनेट और साइबर क्राइम मामलों के जानकार पवन दुग्गल का कहना है कि अभी तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन अगर सरकार चाहे तो टैक्स लगा सकती है. पर इस तरह का टैक्स लगाना बहुत फ़ायदेमंद नहीं होगा क्योंकि अभी एक बहुत बड़े वर्ग का इंटरनेट पर आना बाकी है. हालांकि पवन दुग्गल ये ज़रूर मानते हैं कि भारत में भी फ़ेसबुक और व्हॉट्सएप के माध्यम से फ़ेक-न्यूज़ काफी फैलती है क्योंकि ज़्यादातर लोग बिना सोचे-समझे मैसेज आगे बढ़ा देते हैं.

वो मानते हैं कि इस तरह के संदेशों को नियंत्रित करने की ज़रूरत है और संभव है कि टैक्स लगाने से इस पर कुछ हद तक नियंत्रण भी लगे. हालांकि वो ये भी मानते हैं कि ऐसे लोगों की पहचान कर पाना एक मुश्किल प्रक्रिया है. उनके मुताबिक, “फ़ेसबुक पर तमाम तरह की फ़ेक आईडी होती हैं, ऐसे में उन्हें पहचान पाना काफ़ी मुश्किल है लेकिन अगर मैसेज व्हॉट्सएप से भेजा गया है तो उसकी पहचान हो सकती है.” युगांडा में साल 2016 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर रोक लगा दी गई थी. उस समय मुसेवनी ने कहा था कि झूठ न फैले, इसलिए ऐसा किया गया है.