रायपुर। फेक न्यूज़ एक महामारी बन गया है. आज इससे मैं खुद त्रस्त हूँ. ये लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है. जिम्मेदारी के पदों पर बैठे लोग भी इसकी चपेट में आ जाते हैं. पढ़ें-लिखें लोगों को भी यह समझ नहीं आता की ये फेक न्यूज़ है. कहते झूठ के पांव नहीं होते. और हम झूठीं खबरों के बीच हैं. ये बातें गुरुवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बीबीसी डिजिटल के संपादक राजेश प्रियदर्शी ने नहीं कही.

कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘वर्तमान परिदृष्य में फेक न्यूज की चुनौतियां’ विषय पर बोलते हुए राजेश प्रियदर्शी ने फेक न्यूज को कैसे पहचाना है, उससे कैसे बचना और उसे कैसे वायरल होने से रोकना है ये तमाम बातें बताई. उन्होंने बीबीसी की ओर से चलाएं जा रहे कैंपेन की जानकारी भी दी.

राजेश प्रियदर्शी ने कहा कि 4 सालों में बीबीसी ने इंटरनेशनल लेवल पर फेक न्यूज़ के खिलाफ अभियान चलाया है.  गभीर समस्या है. इसका बड़ा राजनीतिक पहलू है. इस ट्रेप में पड़े बिना एक नेशनल कन्सेसकेस बनाने की जरूरत है. फेक न्यूज़ को रोकना है कंसेक्सस बनाना होगा. फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोगों को यह संदेश साफ शब्दों में देना शुरू नहीं करेंगे तो ही बात बढ़ेगी. यह एक राष्ट्रीय समस्या है.  लोगों को यह समझ विकसित करने की जरूरत है कि यह तथ्य सही नही है मैं इसे शेयर नहीं करूँगा. ये अपने आप में विचित्र बात है कि फेक न्यूज़ के सभी बात काल्पनिक है. इसमें कभी भी कुछ भी बताया जा सकता है. देश के गृह मंत्री यह कहने लगे है कि यह देश की सबसे बड़ी समस्या है. रक्षा मंत्री यह नहीं कह रही थी कि देश का चौकीदार चोर है, जबकि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था.

झूठ और नफरत का डिजिटल चक्रव्यूह तोड़ने की कोशिश की जरूरत है. फेक न्यूज़ कैंपेन की शुरुआत बीबीसी ने क्विंट के साथ मिलकर की थी. यह भारत की नही दुनिया की बड़ी समस्या है. स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि एक फेक न्यूज़ की फैलने की गति तथ्यपरक न्यूज़ के फैलने से कई गुना ज्यादा है. बीबीसी ने बियॉन्ड फेक न्यूज़ की मुहिम शुरू की थी. हमने बहुत सारे लोगों के फोन का एक्सेस उनकी अनुमति से मांगा. बहुत दिनों तक उस मोबाइल से शेयर होने वाले कंटेंट का अध्ययन किया. हमने कई लोगों के इंटरव्यू किये. पूछा कि ऐसी खबरें क्यों फैलाते हैं?  जवाब आया कि हम जैसा सोचते है वैसा तथ्य सामने आता है तो लगता है कि हां ये ठीक है. दूसरा लोगों को लगता है कि हमारे जान पहचान वाले भेज रहे है तो ठीक ही होगा.

ये भी पता चला कि बहुत सारी पोलिटिकल और कम्युनल चीजें इमोशन को प्ले करती हैं उससे खास भावनाओ को इस्तेमाल किया जाता है. जैसे सच्चे हिन्दू है तो शेयर करो, सच्चे मुसलमान हो तो जाग जाओ.  जो कुछ भी लोगों में फॉरवर्ड किया है, उसके लिए शेयर करने वाला ही जिम्मेदार है. बीबीसी की साइट पर बियॉन्ड फेक न्यूज़ की रिपोर्ट है. 80 पेज की इस रिपोर्ट को पढ़ा जा सकता है.
हमने एक नेटवर्क बनाया है एकता न्यूज़. विधानसभा चुनाव के ठीक पहले ये तय किया गया कि जो भ्रामक चीजे फैलाई जा रही है उसे काउंटर किया जाए. हमे लगा कि इस सिलसिले को बंद न किया जाए इसलिए इसे लेकर एक डेस्क बनाया है. हम कहते हैं कि वह कौन सी खबर है जिसकी जांच की जानी है. हम फेक्ट चेक कर बताएंगे कि सही है या नही. कुछ चीजें ऐसी है जो आंशिक रूप से सही है. उन चीजों में हम फेक्ट की जगह रियलिटी चेक करते हैं. चुनाव के दौरान बीबीसी के कवरेज का सिर्फ यही प्लान है कि हम रियलिटी चेक करेंगे. हम नेताओं के भाषण नहीं बनाएंगे. हम रियलिटी चेक करेंगे. जैसे प्रधानमंत्री यदि दावा करते हैं कि देश के सभी गांवों में बिजली पहुँच गई. अब हम यह रियलिटी चेक करेंगे.

व्हाट्सएप कितना अच्छा टूल है. लेकिन इसकी दिक्कत है कि यह ग्रुप के भीतर कैद है. यह इनक्रिप्टेड है, इसलिए मैसेज का जनरेशन कहाँ से हुआ यह पता लगा पाना मुश्किल है. डेढ़ अरब लोग दुनिया में इसे यूज़ कर रहे है. भारत में 20 करोड़ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे है. चुनावी लड़ाई का मैदान व्हाट्सएप है. इस लड़ाई में आम जनता मारी जायगी. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि व्हाट्सएप पर नजर रखे. व्हाट्सएप पर आने वाली चीजों को लेकर आपको रिपोर्ट करना चाहिए. लेकिन भारत में रिपोटिंग का परसेंटेज लो है. दुनिया के कहीं भी व्हाट्सएप के इस्तेमाल में यह पैटर्न नहीं है फॉरवर्ड करने का. व्हाट्सएप ने मैसेज भेजने की लिमिट को 5 कर दिया.  इस चुनाव में व्हाट्सएप माइक्रो लेवल पर जाएगा. ये पता लगेगा कि किस इलाके में किस जाति के लोग रहते है. उन्हें लेकर टारगेटेड कैम्पेनिंग होगी.  माइक्रो लेवल पर छोटे छोटे ग्रुपों में झूठ फैलाया जा रहा है. यह एक गभीर चुनौती है. कोई भी मीडिया संस्थान झूठ नहीं पकड़ सकते. ब्राजील के चुनाव में लोगों ने करीब 70 हजार मैसेज भेजे ये पता करने के लिए कि क्या है सही है या नही?  इस चुनाव में माइक्रो लेवल पर गंदगी है. निपटने का यही तरीका है कि सामाजिक स्तर पर साफ सुथरे लोग व्हाट्स एप पर रिपोर्ट करें. उन्हें बताये कि ये गलत है.

इस दौरान उन्होंने फेक न्यूज को किस तरह 8 तरीकों से पहचाना जा सकता यह भी बताया. उन्होंने यह भी जानकारी दी की फेक न्यूज की पोल कैसे खोली जा सकती है. उन्होंने कहा कि आपके पास डेटा है, मोबाइल है तो गूगल भी है. यदि वाकई सच है तो कई सोर्स से यह साबित हो जाएगा. गूगल करने को आदत डाले, जरा भी सच हो तो कन्फर्म करे , यह भी देखें कि कौन,कब,कहाँ और कैसे किसने क्या कहा?  खबर का यूआरएल और स्रोत ( बिहार में सीएम ने 22 लोगो के मरने पर भावभीनी श्रधांजलि दे दी थी. व्हाट्सएप पर चलते हुए सीएम तक पहुँची उन्होंने श्रद्धांजलि दे दी थी. सीएम के देने के बाद पीएम ने भी दे दिया, दो दिनों बाद राजस्व मंत्री ने हकीकत बताई). तारीख क्या है,  मजाक तो नहीं है,  अबाउट पेज देखें, समाचार का मकसद जाने साथ ही भाषा और क्वालिटी को भी समझने की कोशिश करे. अगर यह सब करने लगे तो फेक न्यूज से बच सकेंगे.