वैभव बेमेतरिहा। आज हिंदी दिवस है. आज से 67 वर्ष पूर्व 14 सितंबर सन् 1953 को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी. हिंदी को देश की राजभाषा के रूप में सन् 1949 में संविधान में शामिल किया गया था. आज इस विशेष मौके पर चर्चा छत्तीसगढ़ के उन दो प्रसिद्ध साहित्यकार और विभूतियों पर जिन्होंने हिंदी की पहली कहानी लिखी और छायावाद का आगाज किया. जिन्होंने हिंदी को पुष्पित और पल्लवित किया.

दरअसल छत्तीसगढ़ की धरा में आपार खनिज संसाधन ही नहीं, साहित्य का विपुल भंडार भी है. हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों का भी बड़ा योगदान रहा है. और तो हिंदी की पहली कहानी भी छत्तीसगढ़ में लिखी गई. यही नहीं हिंदी में छायावाद का उदय भी छत्तीसगढ़ से हुआ. गीतकाव्य का सर्वप्रथम प्रयोग छत्तीसगढ़ में किया गया.

आइये आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ की पुण्य धरा से हिंदी को समृद्ध बनाने वाले उन दो विभूतियों के बारे जिन्होंने साहित्य के माध्यम से हिंदी को जन-जन पहुँचाने काम काम किया.

माधव राव सप्रे

माधव राव सप्रे-

माधव सप्रे का जन्म दमोह जिले के पथरिया में सन् 1871 में हुआ था. लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर अंत तक का समय छत्तीसगढ़ में ही बीता. अविभाजित बिलासपुर जिले के पेंड्रा (जो की अब वर्तमान जिला है ) से उन्होंने सन् 1900 में मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था. इसी के साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की नींव रखी थी.

यहीं रहकर उन्होंने हिंदी की पहली कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ लिखी थी. इस कहानी को हिंदी की पहली कहानी होने का गौरव हासिल है. हालांकि हिंदी की पहली कहानी को लेकर बहुत से विद्वानों में मतभेद रहे. हिंदी कहानी की सर्वप्रथम मानी जाने वाली सूची में बहुत सी कहानियां शामिल है. जैसे 1803 में लिखी गयी सैयद इंशाअल्लाह खाँ की ‘रानी केतकी की कहानी’, 19 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में लिखी गयी राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की ‘राजा भोज का सपना’, सन 1900 में लिखी गयी किशोरी लाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’, 1901 में लिखी गयी माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’, 1903 में लिखी गयी आचार्य रामचंद्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और 1907 में आयी बंग महिला की ‘दुलाई वाली’ कहानी आदि. इसके साथ ही सन 1915 में लिखी गयी चंद्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ कहानी को भी प्रथम कहानी के दौड़ में शामिल किया गया है.

उन्होने मौलिक लेखन के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मूलतः मराठी में रचित ‘दासबोध’, लोकमान्य तिलक रचित ‘गीतारहस्य’ तथा चिन्तामणि विनायक वैद्य रचित ‘महाभारत-मीमांसा’ जैसे ग्रन्थ-रत्नों के अतिरिक्त दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी बखूबी किया.

वे १९२४ में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे. उन्होने १९२१ में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की. यह दोनो विद्यालय आज भी चल रहे हैं.

पं. मुकुटधर पाण्डेय

पं. मुकुटधर पाण्डेय

पं. मुकुट धर पाण्डेय का जन्म अविभाजित बिलासपुर जिला और वर्मतान में रायगढ़ जिले के बालपुर गाँव में 20 सितंबर 1895 में हुआ था. वे अपने आठ भाइयों में सबसे छोटे थे. पिताजी पं. चिंतामणी पाण्डेय संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान थे. इसके साथ बड़े भाई लोचन प्रसाद पाण्डेय हिंदी के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार थे.

हिंदी में छायावाद शब्द का प्रयोग करने वाले सबसे पहले कवि और लेखक पं. मुकुटधर पाण्डेय थे. उन्होने सर्वप्रथम 1920 ई में जबलपुर से प्रकाशित श्रीशारदा (जबलपुर) पत्रिका में ‘हिंदी में छायावाद’ नामक चार निबंधों की एक लेखमाला प्रकाशित करवाई थी. उनके द्वारा रचित कविता “कुररी के प्रति” छायावाद की प्रथम कविता मानी जाती है. उनकी कविताओं में कृति प्रेम, नारी प्रेम, मानवीकरण, सांस्कृतिक जागरण, कल्पना की प्रधानता रही. यही छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं. छायावाद ने हिंदी में खड़ी बोली कविता को पूर्णतः प्रतिष्ठित कर दिया. इसके बाद ब्रजभाषा हिंदी काव्य धारा से बाहर हो गई. इसने हिंदी को नए शब्द, प्रतीक तथा प्रतिबिंब दिए. इसके प्रभाव से इस दौर की गद्य की भाषा भी समृद्ध हुई. इसे ‘साहित्यिक खड़ीबोली का स्वर्णयुग’ कहा जाता है.

हालांकि इसके पहले सन् 1918 में ‘प्रसाद जी’ का ‘झरना’ निकल चुका था, जो छायावादी कविताओं का प्रथम संग्रह था. लेकिन प्रसाद भी यही मानते रहे हैं कि छायावादा शब्द का प्रथम प्रयोग पं. मुकुटधर पाण्डेय ने किया था.

बता दें कि मुकुटधर पाण्डेय ने हिन्दी पद्य के साथ-साथ हिन्दी गद्य के विकास में भी अपना अहम योग दिया. पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित अनेक लेखों व कविताओं के साथ ही उनकी प्रकाशित प्रमुख कृतियों में- ‘पूजाफूल (१९१६), शैलबाला (१९१६), लच्छमा (अनूदित उपन्यास, १९१७), परिश्रम (निबंध, १९१७), हृदयदान (१९१८), मामा (१९१८), छायावाद और अन्य निबंध (१९८३), स्मृतिपुंज (१९८३), विश्वबोध (१९८४), छायावाद और श्रेष्ठ निबंध (१९८४), मेघदूत (छत्तीसगढ़ी अनुवाद, १९८४) शामिल हैं.

इसी तरह से हिंदी में गीतकाव्य शब्द का प्रथम प्रयोग पं. मुकुटधर पाण्डेय के बड़े लोचन प्रसाद पाण्डेय ने किया था.