(सुधीर दंडोतिया की कलम से)
नेता जी के प्रति आईएएस की गजब की निष्ठा
कहते हैं कठिन दौर में ही अपनों की परीक्षा होती है। यदि बात चुनावों की हो तो फिर अपनों का साथ कैसे छोड़ें। लेकिन बात है कि छिपती कहां हैं। दरअसल, महाकौशल क्षेत्र के एक बड़े नेताजी के बड़े भाग्यवान हैं। उनके साथ तो एक आईएएस अफसर पर्दे के पीछे से बहुत कुछ कर रहे हैं। वैसे नेता जी ने भी दिल्ली में रहते हुए साहब के लिए बहुत कुछ किया था। अब उनकी बारी। हालांकि बीते विधानसभा चुनाव में भी नेता जी के लिए साहब ने अपनी ताकत ऐसे ही कुछ छोंक दी थी। अब सफलता और असफलता तो मतदाताओं के हाथ में ही होती है। चुनाव आयोग तक इस बात की भनक नहीं है। खासकर इस बात कि बीते दिनों पार्टी के ऑनलाइन वीसी में साहब जुड़ गए थे। अब कुछ सेंकेड के लिए ही सही, पर निष्ठा तो पूरी दिखा ही दी।
इतनी तेजी कभी दूसरे कामों में भी दिखाएं साहिब
वैसे तो सभी सरकारी महकमों की प्रदेश के संचालन में भूमिका होती है, लेकिन नगरीय विकास एवं आवास विभाग की बात की जाए तो फिर कहना ही क्या। शहरों का पालनहार कहिए। लिहाजा काम के साथ बजट भी भरमार। पुराने तो ठीक लेकिन नए प्रोजेक्ट को लेकर तो यहां तूफानी काम होना आम बात है। दरअसल, वो कहावत है न आम के आम गुठलियों के दाम। ऐसा ही आचार संहिता के दौरान भी हो रहा है। बड़े प्रोजेक्ट को लेकर भी भले ही काम प्रदेश की नगर निगमों को करना है। लेकिन टेंडर की शर्तों के साथ काम की जिम्मेदारी तो यही से तय हो जाती है। फिलहाल आचार संहिता हटने के पहले ही करोड़ों के प्रोजेक्ट की रूपरेखा तैयार की जा रही है। पर्सनल मीटिंग भी जारी। चुनाव परिणाम के तत्काल बाद सूखे में फिर बहार का इंतजार। अफसरों की सिविल वर्क के प्रति ऐसे समर्पण को अपना सलाम….
पहले घटा कद फिर चीफ ने बढ़ाया सम्मान
बात मध्य प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल की है। जहां नई टीम की घोषणा हुई तो सीनियर मोस्ट नेता का कद दूसरे नेताओं की अपेक्षा कम कर दिया गया। समय बीता, ये बात पीसीसी चीफ तक पहुंची तो उन्हें भी इस बात का आभाष हुआ कि अब गलती तो हो गई। लेकिन पीसीसी चीफ ने मंथन किया और रास्ता निकालते हुए अगली सूची में इस खामी की भरपाई करवा दी। नई सूची जारी होने के बाद अब पीसीसी चीफ तो खुश हैं ही साथ ही कद बढ़े नेता के साथ उनके समर्थक भी बेहद खुश नजर आ रहे हैं और पार्टी के काम में जी-जान से जुटे हुए हैं।
कद रहेगा बरकरार इसलिए नहीं रहा टिकट न मिलने का मलाल
2019 में बुंदेलखंड की सीट से टिकट नहीं मिलने का मलाल नेताजी को इस बार भी जस का तस रहा। संगठन के लिए नेताजी ने दिनरात जी-तोड़ मेहनत की। दिल्ली से हुए दौरों के बीच भी अतिरिक्त समय निकालकर नेताजी इस उम्मीद में सक्रीय रहे कि इस बार टिकट तो पक्का हो ही जाएगा। टिकट वितरण के बीच नाम भी चला, लेकिन सूची आने के बाद उदास हो गए। करीब एक पखवाड़े तक नेताजी उदास रहे, लेकिन सूचना मिल रही हैं कि वो जिस पद पर लंबे समय से आसीन हैं, तो आगे भी बरकरार रहेगा। इस संतुष्टि के बाद नेताजी को फिलहाल टिकट कटने का मलाल नहीं रहा। लेकिन नेताजी ये बात जरूर जातने हैं कि राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
कुर्सी के लिए डिंडोरी और रीवा से भोपाल की दौड़
मलाईदार पद क्या होता है प्रदेश के दो अफसरों को रिटायरमेंट के बाद यह बात रह-रहकर याद आ रही है। आचार संहिता के बीच सरकार चुनाव में व्यस्त है, दोनों अफसर इस समय का भरपूर सदुपयोग करने में लगे हुए हैं और इसके लिए एक सेवानिवृत्त अफसर डिंडोरी से तो दूसरे रीवा से आए दिन भोपाल की दौड़ लगा रहे हैं। इस दौड़ का एकमात्र मकसद चुनाव बाद संविदा नियुक्ति करवाकर कुर्सी पर सुशोभित होना है। अब ये दौड़ कितनी कारगर साबित होगी, यह तो आचार संहिता हटने के कुछ दिन बाद ही पता चलेगा।
टागरेट आया तो नेताजी लेने लगे रात-रातभर बैठक
मामला सत्ताधारी पार्टी के साथ राजधानी भोपाल का है। जहां कथित दोस्त को टिकट मिलने के बाद नेताजी निष्क्रिय जैसे हो गए थे। यह दौर काफी लंबे समय तक चलता रहा। बात कई मर्तबा संगठन स्तर तक भी पहुंची, लेकिन इसका नेताजी पर कोई असर नहीं हुआ। लगातार अनदेखी के बाद संगठन ने नेताजी को उनके इलाके में पिछली बार की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक पार्टी के पक्ष में वोटिंग कराने का टारगेट यह कहकर दे डाला कि यह आपकी परीक्षा है। संगठन की लाइन को अग्निपरीक्षा मानकर अब नेताजी अपने क्षेत्र में रात-रातभर बैठकें करने में जुटे हुए हैं।
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