लुधियाना : लुधियाना पश्चिमी विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए सियासी बिगुल बज चुका है। 19 जून को होने वाले इस उपचुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख 2 जून है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में हैं।
लुधियाना उपचुनाव को 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा है। सवाल यह है कि क्या इस उपचुनाव की जीत या हार पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ-साथ कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (SAD) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राजनीतिक भविष्य को प्रभावित करेगी?
उपचुनाव की वजह और उम्मीदवार
यह उपचुनाव AAP विधायक गुरप्रीत सिंह बसी ‘गोगी’ के निधन के कारण हो रहा है। कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता और दो बार के विधायक भारत भूषण आशू को मैदान में उतारा है। शिरोमणि अकाली दल ने एडवोकेट उपकार सिंह घुम्मन को उम्मीदवार बनाया है, जबकि AAP ने अपने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को नामांकन दाखिल करने के लिए चुना। BJP ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

AAP के लिए कितनी अहम है यह सीट?
लुधियाना पश्चिमी उपचुनाव AAP के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। 2022 में कांग्रेस छोड़कर AAP में शामिल हुए गुरप्रीत सिंह बसी ‘गोगी’ ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। उनके निधन के बाद AAP ने संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है, जो लुधियाना के एक प्रमुख कारोबारी हैं और क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। दिल्ली में हार के बाद यह उपचुनाव AAP के लिए एक बड़ी चुनौती है।
शुक्रवार को संजीव अरोड़ा के नामांकन के दौरान अरविंद केजरीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान की मौजूदगी इस सीट के महत्व को दर्शाती है। AAP इस चुनाव को हर हाल में जीतना चाहती है ताकि संजीव अरोड़ा विधानसभा में पहुंचें और उन्हें पंजाब सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा जा सके। यह सीट पूरी तरह शहरी क्षेत्र में आती है, जहां AAP का जनाधार मजबूत माना जाता है। अगर सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा जीत हासिल नहीं कर पाते, तो यह AAP के लिए बड़े सवाल खड़े करेगा।
केजरीवाल के सियासी भविष्य का सवाल
दिल्ली में सत्ता गंवाने के बाद लुधियाना उपचुनाव अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अगर संजीव अरोड़ा जीतते हैं, तो उनकी राज्यसभा सीट खाली होगी, जिससे केजरीवाल के संसद में प्रवेश का रास्ता साफ हो सकता है। लेकिन अगर अरोड़ा हार जाते हैं, तो केजरीवाल को 2029 तक संसदीय राजनीति में प्रवेश का मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि दिल्ली और पंजाब में कोई अन्य राज्यसभा सीट खाली नहीं हो रही है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में हार के बाद केजरीवाल पंजाब में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश में हैं। AAP सरकार के साढ़े तीन साल के कार्यकाल के बाद यह उपचुनाव उनकी नीतियों की जनता के बीच स्वीकार्यता का भी परीक्षण होगा।
कांग्रेस की असल परीक्षा
लुधियाना विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए भी बेहद अहम है। पार्टी ने भारत भूषण आशू पर फिर से भरोसा जताया है, जो दो बार विधायक रह चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में लुधियाना सीट जीतने के बाद, जहां से पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग सांसद हैं, कांग्रेस इस उपचुनाव को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। आशू और वड़िंग हाल ही में एक साथ नजर आए, जिससे यह संदेश गया कि कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है।
अकाली दल के लिए कितनी मुश्किल चुनौती?
सुखबीर सिंह बादल के दोबारा अकाली दल के अध्यक्ष चुने जाने के बाद, यह उपचुनाव पार्टी और बादल परिवार के राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। अकाली दल ने एडवोकेट परउपकार सिंह सिद्धू को मैदान में उतारा है, जो 2022 के चुनाव में 10 हजार वोट हासिल कर चुके हैं। हालांकि, पार्टी के भीतर आंतरिक कलह ने अकाली दल को बड़ा झटका दिया है। सांसद अमृतपाल सिंह की अगुवाई वाले अकाली दल के बागी धड़े ने सुखबीर बादल को उनके गढ़ में चुनौती दी है। कई पुराने अकाली नेता अब भी सुखबीर का विश्वास हासिल नहीं कर पाए हैं, और मनप्रीत इयाली की नाराजगी भी खुलकर सामने आ रही है। अकाली दल के लिए चुनौती यह है कि क्या वह BJP के समर्थन की छाया से खुद को अलग कर पाएगा?
BJP और रवनीत बिट्टू की जिम्मेदारी
BJP ने अभी तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, जबकि नामांकन के लिए केवल तीन दिन बाकी हैं। इस सीट पर BJP की जीत की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू पर है, जिन्हें लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में बिट्टू ने लुधियाना विधानसभा क्षेत्र से 40 हजार से अधिक वोट हासिल किए और राजा वड़िंग पर 10 हजार वोटों की बढ़त बनाई। बिट्टू लगातार AAP और भगवंत मान पर निशाना साध रहे हैं। लेकिन BJP उम्मीदवार के मैदान में उतरने के बाद बिट्टू की दुविधा बढ़ना तय है कि वह अपने मित्र कांग्रेस उम्मीदवार भारत भूषण आशू की मदद करेंगे या पार्टी के प्रति निष्ठा दिखाते हुए BJP उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करेंगे। BJP इस उपचुनाव को जीतकर 2027 के लिए मजबूत संदेश देना चाहती है। यह देखना बाकी है कि रवनीत बिट्टू इसमें क्या भूमिका निभाते हैं।
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