राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। मध्य प्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की अध्यक्षता में होने जा रही कैबिनेट बैठक राजा भभूत सिंह की स्मृमि में आयोजित की जा रही है। जबलपुर, दमोह, महेश्वर और इंदौर के बाद यह पांचवीं डेस्टिनेशन कैबिनेट है। इस बैठक में पचमढ़ी के जागीरदार के बेटे राजा भभूत सिंह के शौर्य को स्मरण किया जाएगा। राजा भभूत सिंह की स्मृति में फैसले भी लिए जाएंगे। साथ ही पर्यटन और अन्य विभागों से जुड़े 33.88 करोड़ के विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमिपूजन भी होगा।
12.49 करोड़ के लोकार्पण
- जटाशंकर और पांडव केव्स पर पिंक टॉयलेट लाउंज का लोकार्पण।
- जयस्तंभ क्षेत्र में 10 करोड़ की लागत से पाथवे का लोकार्पण।
- 60 लाख की लागत से जलगली से धूपगढ़ तक जल पाइपलाइन और पंप हाउस का लोकार्पण।
- 35 लाख की लागत से पचमढ़ी प्रवेश द्वार का सौंदर्याकरण।
- 1.35 करोड़ की लागत से सतपुड़ा रिट्रीट में किचन, रेस्टोरेंट और स्विमिंग पूल का नवीनीकरण।
21.39 करोड़ के भूमिपूजन
- हांडी खो पर 1.98 करोड़ की लागत से पर्यटकों की सुरक्षा-सुविधाओं के कामों का भूमिपूजन।
- 2.13 करोड़ की लागत से टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास।
- 34 लाख की लागत से कांच की बोतलों में आरओ जल प्लांट की स्थापना।
- 6.70 करोड़ की लागत से हिलटॉप बंगला को होमस्टे में बदले जाने का भूमिपूजन।
- 9.90 करोड़ की लागत से MICE योजना के तहत कम्युनिटी सेंटर का भूमिपूजन।
- 34 लाख की लागत से ग्लेन व्यू में केंद्रीय नर्सरी की स्थापना का भूमिपूजन।
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कौन है राजा भभूत सिंह
कोरकू समुदाय का प्रभुत्व 18वीं सदी तक इस सम्पूर्ण भूभाग में स्थापित था। राजा भभूत सिंह कोरकू परंपरा के एक ऐसे सिद्ध पुरुष और जागीरदार थे। जिनका प्रभुत्व पचमढ़ी, हर्राकोट, पातालकोट, तामिया, बोरी, मढ़ई, हरियागढ़, केसला, बैतूल और हरदा तक फैला हुआ था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब तात्या टोपे और उनकी सेना अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए सतपुड़ा पहुंचे। तब उनकी राजा भभूत सिंह से मुलाकात हुई। अक्टूबर 1858 के अंतिम सप्ताह में फतेहपुर के सरैया घाट से तात्या टोपे ने नर्मदा पार की और पचमढ़ी क्षेत्र में प्रवेश किया। राजा भभूत सिंह ने गुफाओं के माध्यम से उन्हें हरियागढ़, बोरदई और फिर मुलताई क्षेत्र की ओर जाने में सहायता की।
अंग्रेजों के खिलाफ खुलेआम विद्रोह
अंग्रेज कप्तान जेम्स फोर्सिथ को जब यह पता चला कि भभूतसिंह ने तात्या टोपे को शरण दी है, तो उसने फतेहपुर के नवाब आदिल मोहम्मद खान के माध्यम से राजा से तात्या को सौंपने का आग्रह किया, लेकिन निडर भभूत सिंह ने अंग्रेजों के सामने झुकने से इनकार कर दिया। जुलाई 1859 में राजा भभूत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलेआम विद्रोह कर दिया। अंग्रेजों ने मिलिट्री पुलिस और मद्रास इन्फेंट्री की टुकड़ी को भेजा। देनवा घाटी में युद्ध हुआ जो लगभग छह महीनों तक चला। कोरकू योद्धाओं की गुप्त युद्ध नीति और पहाड़ी मार्गों की जानकारी अंग्रेजों के भारी हथियारों पर भारी पड़ी।
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शिवाजी महाराज जैसी थी छापामार युद्ध रणनीति
राजा भभूत सिंह की छापामार युद्ध रणनीति शिवाजी महाराज जैसी थी। यानी अदृश्य रहकर प्रहार करना और जंगलों की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाना। एक बार राखी त्योहार पर भभूत सिंह अपनी मुंह बोली बहन से राखी बंधवाने खारी गांव गए थे। अंग्रेजों को सूचना लगी तो अंग्रेजों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया, लेकिन अपनी दिव्य शक्ति के कारण भभूत सिंह को अंग्रेज बांध नहीं सके। अंग्रेजों से मिल चुके राजा की शक्तियों और रहस्यों से परिचित एक मित्र ने ही भभूत सिंह को बांधने का रास्ता सुझाया और मित्र की गद्दारी से भभूत सिंह अंग्रेजों की गिरफत में आ गए।
देवना नदी के तट पर बगीचा और भभूत कुंड है विद्यमान
अंग्रेजों ने राजा भभूत सिंह को कई तरह की यातनाएं दीं, लेकिन वे अपने खजाने और रहस्यों की जानकारी देने को तैयार नहीं हुए। जब शारीरिक यातनाएं बेअसर रहीं, तो राजा को अन्न-जल से वंचित तक रखा गया। 1860 में अंग्रेजों ने उन्हें जबलपुर में मृत्युदंड दे दिया। कुछ प्रमाणों में कहा गया है कि उन्हें फांसी दी गई। वहीं कुछ में कहा गया कि उन्हें गोलियों से छलनी कर मार दिया गया। अंग्रेजों ने उनके नामोनिशान मिटाने के प्रयास में उनके राज्य को वन विभाग को सौंप दिया। यह घटना भारतीय इतिहास में पहली थी जब किसी आदिवासी की शहादत के बाद उनकी जागीर को वन क्षेत्र घोषित किया गया हो। आज देनवा नदी के तट पर राजा भभूत सिंह का बगीचा और भभूत कुण्ड विद्यमान है, जिसमें बारहमासी जल भरा रहता है। चौरागढ़ मंदिर में उनके द्वारा चढ़ाए गए पत्थर के त्रिशूल आज भी दर्शनार्थियों को वीरता और भक्ति का संदेश देते हैं।
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