झारखंड के साहिबगंज जिले स्थित भोगनाडीह में सोमवार को संथाल ‘हूल’ क्रांति दिवस पर आदिवासियों के एक समूह और पुलिस-प्रशासन के बीच जमकर झड़प हुई है। इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया है और आंसू गैस के गोले छोड़े हैं। इस संघर्ष में कुछ पुलिसकर्मी और ग्रामीण घायल हुए हैं। पुलिस के तीन घायल जवानों को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया गया है। वहीं, हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। साहिबगंज के उपायुक्त हेमंत सती सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौके पर मौजूद हैं। गांव में भारी तादाद में पुलिस बल की तैनाती की गई है। घटना को लेकर भाजपा ने हेमंत सोरेन सरकार को घेरा है।
भोगनाडीह में सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन ने भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की मुख्य आतिथ्य में आयोजित हूल क्रांति दिवस कार्यक्रम की अनुमति मांगी थी। प्रशासन ने कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार दिया था। सोमवार को कार्यक्रम चल रहा था तो पुलिस ने सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन द्वारा लगाए गए टेंट को हटाने का प्रयास किया। इसके बाद आदिवासियों का गुस्सा भड़क गया। उन्होंने पुलिस पर पथराव किया।
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आदिवासियों ने पुलिस कर्मियों पर चलाए तीर
जिला प्रशासन ने इस कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं दी है। सोमवार को पुलिस-प्रशासन की टीम फाउंडेशन की ओर से स्मारक स्थल के पास लगाए गए टेंट-पंडाल को हटाने लगी तो लोग आक्रोशित हो गए। इसी दौरान दोनों ओर से संघर्ष शुरू हो गया। फाउंडेशन के समर्थकों की ओर से जहां तीर चलाए जाने की खबर है, वहीं पुलिस ने लाठियां भांजी। इसके बाद फाउंडेशन के लोगों ने स्मारक स्थल पर ताला लगा दिया है और ऐलान किया है कि अगर उनका कार्यक्रम नहीं होगा तो सरकारी कार्यक्रम भी नहीं होने दिया जाएगा। फिलहाल साहिबगंज के डिप्टी कमिश्नर हेमंत सती समेत वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर नज़र रखने के लिए मौके पर मौजूद हैं।
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पूर्व सीएम ने सरकार को घेरा
झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता, पूर्व सीएम और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने एक्स पर घटना का वीडियो साझा किया। उन्होंने लिखा कि हूल दिवस पर भोगनाडीह में पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज और आंसू गैस के प्रयोग की घटना अत्यंत निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बर्बर कार्रवाई में कई ग्रामीणों के घायल होने की सूचना मिली है। मैंने साहिबगंज एसपी से बात कर पूरी घटना की जानकारी ली है।
उन्होंने कहा कि इस बर्बरता ने अंग्रेजी हुकूमत के दौर की यादें ताजा कर दी हैं। हूल क्रांति की भूमि पर छह पीढ़ियों के बाद एक बार फिर सिद्धो-कान्हू के वंशजों को अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध सड़क पर उतरना पड़ा है। दरअसल, घुसपैठियों की गोद में बैठी राज्य सरकार नहीं चाहती कि झारखंड का आदिवासी समाज अपने पुरखों की वीरगाथाओं और बलिदानों से प्रेरित होकर अपनी अस्मिता और अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित हो।
उन्होंने कहा कि सरकार की यह साजिश कभी सफल नहीं होगी। जिस तरह वीर सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो ने हूल क्रांति के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी थी, उसी तरह साहिबगंज के भोगनाडीह में लाठीचार्ज की दमनकारी घटना हेमंत सरकार के पतन का कारण बनेगी।

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क्या है हूल दिवस
बता दें कि, 1855-56 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई संथाल ‘हूल’ क्रांति के नायकों सिदो-कान्हू और अन्य शहीदों की याद में प्रति वर्ष 30 जून को उनके गांव भोगनाडीह में राज्य सरकार की ओर से राजकीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें सीएम भी शामिल होते हैं। इस वर्ष भी राजकीय कार्यक्रम होना था, जिसमें सीएम के प्रतिनिधि के तौर पर राज्य के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन को भाग लेना था।
लेकिन, राजकीय कार्यक्रम के समानांतर सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन नामक संगठन ने भी इसी स्थल पर अलग कार्यक्रम का ऐलान कर रखा है और इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को आमंत्रित किया गया है। इसी वजह से कार्यक्रम की अनुमति नहीं मिलने की बात सामने या रही है।
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