आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। बस्तर जहां जंगलों की खामोशी में बंदूक की गूंज गूंजती रही, जहां पिछले चार दशकों से नक्सलवाद ने खून और डर का साया फैला रखा था. लेकिन अब वही बस्तर एक नई कहानी कहने को तैयार है. कहानी बंदूक की नहीं, मोहब्बत की.
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फिल्म माटी की कहानी दो नक्सलियों की प्रेमकथा है. नक्सली संगठन इस युगल से भी लाल क्रांति के आंदोलन में आहुति चाहता है, लेकिन दिलों को कौन रोक पाया है? जब दोनों ने जाना कि बंदूक कभी सुकून नहीं दे सकती, तब कहानी ने एक एक ऐसी दिशा ली जो अकल्पनीय है. यह प्रेमकथा दिखाती है कि जब दिल मिलते हैं तो मानवीयता अस्तित्व ने आती है, और जीवन को जीने का नया मायना मिल जाता है.

निर्माता संपत झा और निर्देशक अविनाश प्रसाद ने इस फिल्म को बनाने में पूरे चार साल लगाए. 99% कलाकार बस्तर के ही हैं और आत्मसमर्पित नक्सली भी इसमें नजर आएंगे. उन्होंने नक्सल कैंप की असलियत, हथियार छिपाने के तरीके, गोरिल्ला युद्ध और मुठभेड़ों की सच्चाई परदे पर उतारी है. लेकिन इन सबके बीच सबसे गहरी छाप छोड़ती है मोहब्बत की ताकत, जो बारूद से कहीं ज्यादा मजबूत साबित होती है.

माटी 31 अक्टूबर से छत्तीसगढ़ के सभी सिनेमाघरों में रिलीज होगी. यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि उम्मीद है कि बचे हुए नक्सली भी इसे देखकर सोचें कि जीवन हथियारों से नहीं, प्यार और अपनापन से खूबसूरत होता है. और अब जब सरकार ने 2026 मार्च तक नक्सलवाद के खात्मे का लक्ष्य तय किया है, तो माटी जैसी फिल्में बस्तर की परिस्थितियों सामने लाने का जिम्मेदारी भरा कार्य करती दिखती है. क्योंकि बदलाव सिर्फ बंदूक से नहीं, कहानियों और दिलों के जुड़ने से भी आता है.
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