कुमार इन्दर, जबलपुर। भ्रष्टाचार जब शिष्टाचार बन जाए तो समझ तो समझ जाइएगा कि सरकारी सिस्टम सड़ चुका है. जी हां… आज हम बरगी विधानसभा के अंतर्गत आने वाली 81 ग्राम पंचायत की बात कर रहे हैं जो कहने के लिए तो राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित है, लेकिन इसकी हकीकत कोसों दूर है. ग्राम पंचायत में भ्रष्टाचार के इतने आरोप है कि आप भी सुनकर दंग रह जाएंगे. जबलपुर से पढ़िए ये खास रिपोर्ट…
राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित एक ऐसी ग्राम पंचायत का सच जिसे सुनकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. दरअसल, साल 2007 में राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित ग्राम सभा का नाम है बंदरकोला. इस बंदरकोला ग्राम पंचायत में इतनी बंदरबांट हुई की गिनाना मुश्किल है. इस ग्राम पंचायत के सरपंच अजय पटेल की कारगुजारियां इतनी है कि सुनने वाले कान पक जाए.
भ्रष्टाचार नंबर-1. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने मकानों में इतनी लापरवाही बरती गई है कि इन मकान में रहने वालों को डर लगता है. जिन दीवारों को सीमेंट से जोड़ा जाना था उन दीवारों को मिट्टी से जोड़कर खड़ा कर दिया गया. कुछ मकानों के लेंटर तो ऐसे हैं कि उनमें दरारे आ चुकी हैं. कुछ मकानों की हालत इतनी जर्जर हैं कि उसमें इंसानों की जगह जानवर रह रहा है, क्योंकि इंसान को यह डर है कि यह मकान न जाने कब धराशायी हो जाए.
भ्रष्टाचार नंबर- 2. सरपंच पर खुलेआम आरोप लगाए हैं कि वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने के लिए हितग्राही से 30 हजार रुपए मांग रहा है और पैसे न देने पर मकान बनवाने से मना कर देता है. लिहाजा कई सालों से लोगों के मकान खंडहर हालत में पड़े हैं.
आपको हम एक ऐसा घर दिखाने जा रहे हैं जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया गया है, लेकिन इस घर में इंसान नहीं बल्कि जानवर रह रहे हैं, क्योंकि इसकी गुणवत्ता इतनी खराब है कि इसके मालिक यहां रहने में डर लग रहा है.
भ्रष्टाचार नंबर- 3. इस ग्राम पंचायत में कुआं खोदने के नाम पर इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ है कि जो कुआं जमीन पर है ही नहीं. उसके नाम पर लाखों की राशि निकाली गई है. उदाहरण के तौर पर बिशन सिंह के नाम पर सैंक्शन एक कुआं जिसे बनाने के लिए 1 लाख 31 हजार से ज्यादा की राशि निकाली गई वह कुआं कहीं जमीन पर है ही नहीं.
भ्रष्टाचार नंबर- 4. इस ग्राम पंचायत में बने शौचालय का सच जानकर देखने वालों की रूह कांप जाए. जी हां… जिन शौचालयों को बनाने के लिए 12 -12 हजार रुपए की राशि स्वीकृत की गई. उनकी हालत 1200 रुपए लायक भी नहीं है. ऐसे एक नहीं ऐसे तमाम शौचालय इस ग्राम पंचायत में भ्र्ष्टाचार की गवाही दे रहे हैं.
भ्रष्टाचार नंबर- 5. इस ग्राम पंचायत में 24 लाख रुपए से बनाई गई सड़कों की हालत ऐसी है कि यह समझ पाना मुश्किल होता है कि यह सड़क सीमेंट से बनी है या फिर अभी सड़क पर सीमेंट डालने का इंतजार किया जा रहा हैं. कंक्रीट सड़क के नाम पर रास्ते पर दिख रहे ये पत्थर इस बात का गवाह है कि 24 लाख रुपए आखिर कहां गए.
भ्रष्टाचार नंबर- 6. मनरेगा यानी महात्मा गांधी रोजगार के तहत ग्राम में ऐसी कई महिलाएं और पुरुष को मनरेगा के तहत भुगतान किया जा रहा है. जिनकी उम्र 60 से पार निकल चुकी है, जबकि मनरेगा का नियम ये कहता है कि 60 साल के ऊपर व्यक्ति इस में काम कर ही नहीं सकते. यही नहीं ऐसे लोगों को भी मनरेगा के तहत भुगतान किया जा रहा है जिनको वृद्धा पेंशन पहले से ही मिल रही है.
भ्रष्टाचार नंबर- 7. गांव के आमजन ही नहीं बल्कि ग्रामसभा का पंच भी खुद इस भ्रष्टाचार का शिकार हैं. पंच के घर की हालत थी बताने के लिए काफी है कि मनरेगा के तहत बनने वाले मकान हो सड़क हो बिजली हो पानी हो इन सब की व्यवस्था कितनी सुचारू है. सरपंच अजय पटेल पर यह आरोप है कि ग्रामसभा में नल जल योजना के तहत लोगों को जिस नल का कनेक्शन देना था, वह कनेक्शन काटकर उन्होंने अपने घर में लगा लिया है.
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सरपंच अजय पटेल पर यहां तक आरोप लग रहे हैं कि संबल योजना के तहत जिन हितग्राहियों को पैसा दिया जाता है. उसमें बंदरबांट की गई है. यहां तक कि अंतिम संस्कार के नाम पर मिलने वाले 5000 की राशि को भी हड़पने के आरोप लग रहे हैं.
भ्रष्टाचार की बानंगी सिर्फ यही नहीं रुकती है. जब इस ग्राम सभा के लोग अपनी पंचायत से हुए विकास कार्य और योजना की राशि के बारे में जानकारी चाहते हैं, जिसके लिए बकायदा आरटीआई भी लगाई जाती है तो, ग्राम पंचायत की तरफ से उन्हें पहले 22 हजार 415 रुपए भरने के लिए कहा जाता है. ग्राम पंचायत की तरफ से जारी हुई लेटर में बाकायदा इस बात का जिक्र किया जाता है कि एक कॉपी डाउनलोड करने का 10 रुपये और एक फोटो कॉपी का 5 रुपए के हिसाब से आपको 22 हजार 415 रुपये जमा करने होंगे.
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ग्राम बंदरपोला के इस भारी भ्रष्टाचार को हजम करने में हमारे सरकारी सिस्टम में बैठे नुमाइंदों ने भी कहीं से कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. गांव वालों ने जब इस बात की शिकायत जनपद कार्यालय में की तो काफी हीलाहवाली करने ओर लंबे समय बाद इसकी जांच की गई. जांच में आरोप सच भी पाए गए और जांच प्रतिवेदन में ये कहा गया कि इन निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार हुआ है. लिहाजा इसकी रकम वसूली कर उचित कार्रवाई की जाए. लेकिन जब जनपद कार्यालय से फाइल जिला पंचायत कार्यालय पहुंचती है तो, यही आरोप जो जनपद कार्यालय सिद्ध कर चुका है, वह खारिज हो जाते हैं,यही नहीं कार्रवाई करने के बजाए फ़ाइल वहीं पड़ी रहती हैं.
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