रायपुर। आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर के आदिवासी संग्रहालय में अब आदिवासी समुदाय के कला, संस्कृति एवं जनजीवन से जुड़ी सामग्री की झलक देखने को मिलेगी। आदिवासी समाज के प्रमुखों ने रायपुर स्थित आदिवासी संग्रहालय में प्रदर्शन हेतु पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं, कला एवं संस्कृति से तथा दैनिक जनजीवन में आदिवासी समुदाय द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली वस्तुओं को सहर्ष उपलब्ध कराये जाने की सहमति दी है। आदिवासी संग्रहालय रायपुर में आर्टिफेक्ट संकलन के संबंध में सुकमा जिले के सभी समाज प्रमुखों की बैठक आयोजित की गई। बैठक में विभिन्न समाजों द्वारा संग्रहालय के लिए समाज के परम्परानुसार सामाजिक, सांस्कृतिक, उपयोगी सामग्रियों को प्रदान करने की सहमति व्यक्त की गई। बैठक का उद्देश्य रायपुर संग्रहालय में राज्य की जनजातियों की संस्कृति को एक पटल पर लाकर जनसामान्य की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एवं संवर्धन करना, संस्कृति को जनसामान्य से परिचित कराना, अनुसंधानकर्ताओं, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों के लिए जनजाति सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित करना और अनुसंधान में सहायक होना है।

बैठक में सहायक अनुसंधान अधिकारी ने समाज प्रमुखों को बताया कि जनजातियों को उनके भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर तीन भागों में उत्तरी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र में निवास करने वाले जनजातियों को विभाजित किया गया है। मुख्य रूप से दक्षिण आदिवासी क्षेत्र में बस्तर संभाग के सात जिलों के हल्बा, गदबा, परजा, दोरला, भतरा, मुरिया, माड़िया, गोंड, घुरवा, प्राधान, दण्डामी, माड़िया आदि प्रमुख रूप से निवास करते हैं। समाज प्रमुखों ने विचार-विमर्श करते हुए सुकमा जिले में निवासरत जनजातियों की वेशभूषा, आभूषण, घरेलू, उपकरण, कृषि, शिकार उपकरण, धार्मिक आस्था, घोटूल, वाद्य यंत्र, विवाह संस्कार, पारंपरिक तकनीक, छायाचित्र प्रदर्शनी, जनजातीय साहित्य, ऑडियो विजुअल के रूप में सामग्री का संग्रहण किया जाना है। हल्बा समाज के हरिराम कश्यप के द्वारा जन्म से मरण तक और शादी के बारे में अपनी मातृ बोली हल्बी से बोले और संग्रहालय के लिए समाज की ओर से धान कुटने का मूसर, चाटू, तीर, धनुष, झारी, दादर, नागर, जुवाड़ी प्रदाय करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि समाज एवं क्षेत्र में पुरातन समय में उपयोग में लाए गए सामानों के अवशेष के संग्रहण में पूर्ण सहयोग देगा।

अध्यक्ष भतरा समाज शबरीनगर सुकमा, लक्ष्मीनाथ मौर्य ने भी समाज के जन्म से लेकर मरण तक शादी-विवाह के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। उनके द्वारा धान कुटने का डेकी की और तेल निकालने के टिडी प्रदाय करने की सहमति दी गई। समाज को पूर्व की रीति-रिवाज के बारे में बनाये रखने के लिए अवगत कराने कहा। कोया समाज रामाराम सुकमा के चिंगाराम मण्डावी ने भी जन्म से मरण तक शादी-विवाह की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए बताया कि शादी के लिए लड़का पक्ष से मामा के घर लड़की ले जाते हैं, यदि मामा की लड़की नहीं मिलने पर दूसरे मामा की लड़की से विवाह रचने का प्रावधान को रखा गया है। शादी तय होने पर शादी के लिए लड़का पक्ष से लांदा, हन्डी सहित समाज के लोग कन्या पक्ष के घर पहुंचकर अपने रीति-रिवाज के साथ ढोल बजाकर नाच-गाना करते हुए लड़की को लड़के के घर लाया जाता है। इस संबंध में सहायक अनुसंधान अधिकारी डाॅ. राजेन्द्र सिंह ने लांदा हण्डी का पूर्ण सेट संग्रहालय हेतु उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। कोया समाज प्रमुख हिरमा राम कश्यप द्वारा विशिष्ट अवसर शादी-विवाह और खुशी के अवसर पर बजाया जाने वाला विशेष वाद्य यंत्र किकिर (सारंगी) एवं टोड़ी को भी संग्रहालय में रखे जाने का सुझाव दिया गया। बैठक में अध्यक्ष हल्बा समाज छिन्दगढ़ आसमन नेगी, संगरक्षक हल्बा समाज हरिराम कश्यप, के.आर. नेगी, अध्यक्ष भतरा समाज लक्ष्मीनाथ मौर्य, कार्यकारिणी अध्यक्ष हल्बा समाज रतन सिंह प्रधानी, कोया समाज प्रमुख चिंगाराम मण्डावी, हिरमा राम कश्यप, आकांक्षी जिला फैलो कु. सियोना कोरिया, गोकूल दीप गिरीश सहित मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत, मंडल संयोजक कोन्टा एवं छिंदगढ़ सहित अन्य पदाधिकारी एवं अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।