दिल्ली. भारतीय संस्कृति में हमेशा देखा जाता है कि शादी के बाद दुल्हन की विदाई होती है. भारत शुरू से पुरुष प्रधान देश रहा है और यहां पर प्राचीन काल से शादी के बाद दुल्हनों की विदाई की प्रथा चली आ रही है. लेकिन भारत में कई धर्म, जाति और समुदाय के लोग रहते हैं, जिनके रीति रिवाज अलग अलग होते हैं. लेकिन एक समानता सभी धर्म के लोगों में देखने को मिलती है और वो है दुल्हन की विदाई. सभी धर्मों में शादी के बाद दुल्हन की विदाई की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं हमारे देश में एक ऐसी जनजाति रहती है. जहां महिला नहीं बल्कि पुरुषों की विदाई होती है. जी हां हम बात कर रहे हैं, मेघालय में बसी खासी जनजाति की.
सदियों से चली आ रही है दूल्हे की विदाई की प्रथा
ये एक मातृसत्तात्मक समाज है. जहां पर पुरुषों की विदाई की प्रथा सदियों से चली आ रही है. दरअसल यहां पर माता पिता की संपत्ति पर पहला अधिकार महिला का होता है. इसके साथ ही महिलाएं अपनी पसंद के साथी के साथ शादी कर सकती हैं. वहीं इस समुदाय के लोग दहेज प्रथा के सख्त खिलाफ होते हैं. मिली जानकारी के मुताबिक इस समुदाय में करीब 9 लाख लोग पाए जाते हैं जो मेघालय में बसे हुए हैं.
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कहां कहां रहते हैं खासी समुदाय के लोग
बता दें कि खासी समाज के लोग मेघालय के अलावा असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में भी रहते हैं. जबकि पहले ये जाति म्यांमार में रहती थीं. ये समुदाय झूम खेती करके अपनी आजीविका चलाता है. वहीं इस समुदाय के लोगों को संगीत का काफी शौक होता है.
खासी के अलावा दो अन्य जातियों में भी होती है दूल्हे की विदाई
आपको बता दें कि खासी जनजाति के अलावा मेघालय में दो और जनजातियां पाई जाती हैं, जहां पर पुरुषों की विदाई की प्रथा सदियों से चली आ रही है. वो गारो और जयंतिया जाति हैं. यहां पर भी शादी के बाद दूल्हा अपनी पत्नी के घर पर जाकर रहता है. इसकी खास बात ये हैं कि यहां बेटी होने पर खूब खुशियां मनाई जाती हैं.
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