ओमिक्रोन पर विशेष आलेख: इन पंक्तियों को जब लिख रहा हूँ तो तीसरी लहर सामने है . 5,400,992 मृत्यु पूरी दुनिया में कोरोना की वजह से दम तोड़ चुके . 4 .7 मिलियन लोगों की सिर्फ हिन्दुस्तान में मृत्यु हुई . दुनिया की अर्थ व्यवस्था को $4 ट्रिलियन का नुक़सान हो चुका. हिन्दुस्तान कि जीडीपी गोते लगाते नीचे पहुंच चुकी . हमारे देश में ही 10 मिलियन से ज़्यादा लोगों का रोजगार छिन चुका. बाज़ार कराह रहा है. भुखमरी भयानक रूप में है ..लोग दाने- दाने को तरस रहे हैं.

लाखों परिवारों के आंसू अपनों को खोने के बाद अब तक सूखे नहीं हैं ,सिर्फ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी , अहमद पटेल ,तरुण गोगोई ,चेतन चौहान और सैकड़ों जाने माने लोग ही नहीं गए हम सब के न जाने कितने अपने इस दौरान बिछड़ गए . याद आ रहा है कोरोना की दूसरी लहर में एक ऐसा दिन भी आया था जब लोग ऑक्सीजन ,रेमिडीस्वीर ,एंटी फ्लू टेबलेट या अस्पतालों के लिए सिफ़ारिश नहीं कर रहे थे बल्कि अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में थोड़ी जगह मिल जाये बस दोनों हाथ जोड़े यही गुज़ारिश कर रहे थे .पर इतना भीषण तांडव मचा हुआ था कि हर कोशिश के बावज़ूद अंतिम संस्कार तक कर पाने में लोग विफल रहे नतीजा नदियों में शव बहते रहे .

महामारी का प्रकोप इतना भयानक था कि न पैसा न पावर न दुआ कुछ भी काम न आया . अब तीसरी लहर सामने है .वायरस अपना रूप रंग तेवर बदल कर सामने है . नया वेरिएंट ओमिक्रॉन सामने है. चुनाव भी सामने है और हर तरह के सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम सामने है .

वायरस बदलता जा रहा है पर इंसान कभी नहीं बदलेगा . हमेशा अपने लिए सुविधजनक पंक्तियाँ ढूंढता रहेगा मसलन- ये साज़िश है ,डराने का प्रयास है , वायरल बुखार है और जितनी भी अतार्किक -अवैज्ञानिक गल्प गढ़ सकते हैं सब गढ़ा गया और अब भी गढ़ रहे हैं ..पुराने ज़माने में भी यह कहा जाता था कि प्लेग सिंधु नदी नहीं पार कर सकता पर प्लेग ने लगातार हमला कर हिन्दुस्तान को बर्बाद कर दिया था , ये इतिहास में दर्ज़ है .

दरअसल , इंसान महामारी को स्वीकार करने को तैयार नहीं . महामारी को स्वीकार करने का मतलब बहुत लम्बे समय तक संयमित ,सुरक्षित ,अनुशासित और एकांत ज़िंदगी का चयन है . इसलिए पेंडेमिक की ये कड़वी गोली इंसान गटकने को अब भी तैयार नहीं जबकि दुनिया उजड़ कर बदरंग हो चुकी .

दुनिया भले ही बदरंग हो पर लोगों का निखरा हुआ रूप -रंग दिखना चाहिए .इसलिए ज़रूरी है मास्क न लगाएं , इसलिए ज़रूरी है खूब मेल- मिलाप करें ‘फिजिकल -सोशल डिस्टेंसिंग ‘ करना तो मूर्खों का काम है !!

अब लोगों ने अपनी सुविधा के लिए ये तय ही कर लिया कि ओमिक्रॉन की औकात कुछ भी नहीं ..कहाँ हो रही है मौत ? आएगा ..चला जायेगा ..शो मस्ट गो ऑन…जश्न चलने दो ..

‘ उन की ख़ुशी में हम ख़ुश होते थे लेकिन
अब वो जश्न मनाएँगे हम रोएँगे ‘

मितरों ,

ओमिक्रॉन से मृत्यु की ख़बरें शुरू हो गयी..ये और बात है पर ज़रा ये पता करिये डेल्टा से ठीक हो चुके लोग भी कैसे पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट के बाद भी अधमरे हैं ,या कई प्रकार के गंभीर रोगों से गुज़र रहे हैं या
दुनिया से गुज़रते जा रहे हैं ये बिलकुल हकीकत है कोई फ़साना नहीं .
वैक्सीन नए वेरिएंट पर बेअसर हो रही इस तरह की ख़बरें लगातार सामने हैं .
खुद सोचिये , नया वेरिएंट और भी म्युटेशन के बाद क्या रूप ले सकता है ,कोई जानता है ?

ज़रा सोचिये भले ही इस वक़्त नए वेरिएंट से मृत्यु दर की ख़बरें न हों पर शरीर में क्या प्रभाव छोड़ कर जायेगा कोई जानता है ? अभी तक तो वैज्ञानिक अध्यययन भी , पूरे तथ्य भी सामने नहीं हैं फिर भी अपना निष्कर्ष निकाल कर मस्ती में हैं जबकि बस्तियों में आग लगने की ख़बरें सामने हैं !

5,400,992 लोगों की मौत से पहले कुछ ज़्यादा पढ़े लिखे बुद्धिजीवी पहले की दोनों लहर में साज़िश ढूंढ रहे थे वो आज भी मदमस्त हैं और उन्हें साज़िश की बू ही आ रही है .

दो ही रास्ते हैं या तो कथा कहानियां और गल्प सुनते हुए साज़िश की चुगली कर दूसरी लहर की तरह फिर से भुगतें

या फिर

विज्ञान को स्वीकार करें और विज्ञान की वाणी कितनी ही कठोर क्यों न हो ,उसकी गोली कितनी ही कड़वी क्यों न हो उसे ग्रहण करें और अपने , अपने परिवार और समाज को बचाएँ .

ध्यान रखें ,विज्ञान को चुनौती वैज्ञानिक आधार ,रिसर्च ,डाटा के आधार पर ही दी जा सकती है मतलब
विज्ञान ही विज्ञान को जवाब दे सकता है किस्से कहानी , फेसबुक व्हाट्सएप्प के दुष्प्रचार नहीं .

विज्ञान को ही मानिये . आज विज्ञान सिर्फ 2 सलाह दे रहा ;
एक -वैक्सीन
दूसरा – मास्क -डिस्टेंसिंग

डॉक्टरों -वैज्ञानिकों की सुनिए समझिये ..वाकई , आगे अच्छे दिन नहीं हैं ..कई बातें कह नहीं पा रहा उन भावी खतरों , अनकही बातों को समझिये भाई ..

” ख़तरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन
सैलाब किनारों पे मचलने तो लगे हैं ”

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