एन.के. भटेले, भिंड। कोरोना काल में कई व्यापार ठप हो गए, लोग बेरोजगार हो गए। जो कारीगर, बढ़ई और कामगार थे अपने पारंपरिक कार्य छोड़ने को मजबूर हुए। मिट्टी के पारंपरिक बर्तन बनाने वाले कुम्हार तो जैसे हालातों से समझौता कर मजदूरी के लिए पलायन कर गए। मध्यप्रदेश के भिंड जिले में भी हालत इनसे अलग नहीं थे। भले ही यह जिला पिछड़ा हो लेकिन आज भी इस जिले में कुछ ऐसे कुम्हार ने जिन्होंने मटके बनाने की प्राचीन पद्धति को जीवित कर रखा है। आज भी मटके चाक पर नहीं बल्कि मिट्टी और अपने हाथों से मटके तैयार करते हैं।

भिंड के बाराकलां, सुभाष नगर गांव में आज भी पारंपरिक मटके तैयार करने वाले कुम्हार गंगा राम और उनका परिवार मिलकर हर सीजन में मटके बनाते हैं। इन्हीं मटकों से परिवार का भरण पोषण करते हैं। गंगा राम बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी काम है उनके पहले की पीढ़ियां यह काम करती आई और पिछले 40 वर्षों से वे खुद इस परंपरा को निभा रहे हैं। वर्तमान समय में मटका 80-100 रुपए बिकता है। ग्राहकी भले ही पहले जैसी नहीं है, लेकिन उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ता है। आज उनके बच्चे पढ़ लिख रहे हैं और पेटभर भोजन कर रहे हैं। बाकी सब ईश्वर पर छोड़ रखा है।

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कुम्हार ने बताया कि एक मटका बनकर तैयार होने में करीब दो दिन का समय लगता है। इसके लिए पूरे परिवार को काम करना पड़ता है। मिट्टी के बर्तन या मटका बनाने के लिए पहले मिट्टी खरदीना और फिर मटका तैयार करना पड़ता है। बारीक मिट्टी को हाथों से तैयार किया जाता है। इसके बाद पहले से बनाए हुए लकड़ी के औजार और हाथों की मदद से ठोक कर मटके को आकार दिया जाता है। इसके बाद इसे चिकना स्वरूप देने के लिए एक खास प्लेट पर इसे रखा और घुमाया जाता है। जिससे यह घड़े की तरह चिकना होता है। इतना काम होने के बाद इन कच्चे मटकों को बारी बारी से धूप और छांव में सुखाया जाता है। अंत में इस पर मिट्टी से मुहाना बनाकर हवा खिलायी जाती है। फिर भट्टी में पकाया जाता है तब जाकर मटका तैयार होता है।

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मिट्टी के बने मटकों का पानी पीने से फायदा

भिंड जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ.अनिल गोयल ने बताया कि मिट्टी के मटके का पानी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। पहले जब रेफ्रीजिरेटर नहीं हुआ करते तब मटका ही पानी ठंडा करने का जरिया होता था। यह प्राकृतिक रूप से पानी को संतुलन में ठंडा करता है जो कभी सर्दी नहीं करता। वह शरीर के लिए नुकसान दायक नहीं होता। कोरोना काल में लोगों ने फ्रिज के पानी से परहेज कर मटके का पानी पीना शुरू कर दिया था। आज भी कई लोग फ्रिज का पानी नहीं पीते हैं।

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