सत्यपाल सिंह,रायपुर। कोरोना के चलते कॉलेज बंद होने की वजह पिछले 11 महीनों से महाविद्यालयीन अतिथि व्याख्याता बेरोजगार बैठे है. अब कॉलेज खुलने के बाद भी इनकी नियुक्ति नहीं की गई है. जिससे अतिथि व्याख्याताओं में गहरी निराशा है. छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है. बगैर व्याख्याता छात्र कैसे पड़ सकते हैं. उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा अतिथि व्याख्याताओं के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जा रहा है. पहले ऑनलाइन क्लास के लिए अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति नहीं की गई और वहीं अब ग्राउंड लेवल पर कॉलेज खोला गया, तब भी अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति आदेश जारी नहीं किया गया है.

अतिथि व्याख्याताओं का कहना है कि पिछले 10-12 वर्षों से सहायक प्राध्यापकों के रिक्त पदों पर अतिथि व्याख्याताओं से सेवा ली जाती रही है. लेकिन वही 10-12 वर्षों से सेवा दे रहे व्याख्याताओं को शिक्षा विभाग 11 महीनों से बेरोजगार कर दिया है. व्याख्याताओं को भरोसा था कि कॉलेज खुलने पर नियुक्ति मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एक बार फिर अतिथि व्याख्याताओं को निराशा हांथ लगी है. महज 200 रुपए प्रति पीरियड पढ़ाने वाले व्याख्याताओं को अब जीवकोपार्जन करने में समस्या हो रही है, क्योंकि एक मात्र आशा और सहारा यही था.

सवाल यह है कि आखिर कहां जाए. प्रदेश के 2500 से अधिक अतिथि व्याख्याता है. उच्च शिक्षा विभाग अतिथि व्याख्याताओं के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार कर रही है. दूसरी ओर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है. विद्यार्थियों को पढ़ाने वाले 2500 अतिथि व्याख्याता को कार्य से निकाल दिया है. आखिरकार उच्च शिक्षा विभाग किससे और कैसे पढ़ाई को मेनटेन कर रही है. एक ओर स्कूल शिक्षा विभाग पढ़ाई का हवाला देकर अतिथि शिक्षकों को नियुक्ति दे दी. दूसरी ओर उच्च शिक्षा विभाग अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति नहीं देकर विद्यार्थियों को शिक्षा से वंचित कर रही है.

ऑनलाइन शिक्षा पूरी तरफ ठप्प है. उसके बावजूद भी उच्च शिक्षा विभाग ऑनलाइन शिक्षा पर इतनी जोर क्यों दे रही है. कॉलेज खुलने पर अतिथि व्याख्याताओं की ‌नियुक्ति पर रोक क्यों लगी हुई है ? एक ओर नियमित प्राध्यापकों को बिना पढ़ाए लाखों वेतन‌ दे रहे है और वहीं अतिथि व्याख्याता जिन्हें महज 16-17 हजार रूपए मिलता है. उनकी ‌नियुक्ति करने में समस्या हो रही है. आखिर उच्च शिक्षा विभाग चाहती क्या है ?

अतिथि व्याख्याताओं का कहना है कि यदि इनकी नियुक्ति नहीं की गई, तो उच्च शिक्षा विभाग और प्राचार्यों के विरूद्ध नियुक्ति नहीं देने के संबंध में अवमानना का केस दायर करने न्यायालय के शरण में जाएंगे. क्योंकि इनकी नियुक्ति उच्च न्यायालय के द्वारा यथावत रखी गई है. बहरहाल यह देख पाना दिलचस्प होगा कि उच्च शिक्षा विभाग अतिथि व्याख्याताओं को नियुक्ति देती है या व्याख्याता गण न्यायालय जाने को मजबूर हो‌ जाएंगे.