सुप्रिया पाण्डेय, रायपुर। कोरोना ने कुम्हारों के सुख चैन छीन लिए हैं. सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करने वाले कुम्हार बीते दो वर्षों से परेशान है. पिछले साल भी कोरोना ने इनकी आमदनी छीन ली थी और इस बार भी कमोबेश यही स्थिति है.

राजधानी रायपुर के कुम्हार सुबह से इस इंतजार में रहते है कि कोई तो उनके पास आए. उनके मिट्टी के बर्तन को खरीदे, लेकिन शाम तक सिर्फ गिने चुने लोग ही उनके पास पहुंचते हैं. जिससे लाखों खर्च का लागत निकाला मुश्किल हो रहा है. ऐसे में उनकी जिंदगी कैसे चलेगी. उम्मीद के मुताबिक ग्राहक नहीं पहुंचने से वे बेहद निराश है.

गौरतलब है कि गर्मी के मौसम में मिट्टी के बर्तनों की बेतहाशा बिक्री होती है. भारी संख्या में लोग मटका, सुराही के साथ ही अन्य मिट्टी से बनी हुई सामाग्री खरीदने आते है, लेकिन नजारा इस बार भी बिल्कुल पहले की तरह है.

कुम्हार सुनीता चक्रधारी ने बताया कि एक बार फिर कोरोना की वजह से उन्हें काफी परेशानियां झेलनी पड़ी है, पहले भी कोरोना का इतना भयावह रूप था कि लॉकडाउन की वजह से लोग उनके पास सामान खरीदने नहीं आते थे लेकिन अब भी स्थिति वही की वही है जब भी सोचते हैं कि कुछ अच्छा करें मिट्टी के बर्तनों की बिक्री होगी तभी ऐसा मौका आ जाता है कि कोरोना अपना विकराल रूप धारण कर लेता है, इसकी वजह से तीज त्योहारों पर भी काफी ज्यादा असर पड़ता हुआ नजर आता हैं.

कुम्हार लीला चक्रधारी ने बताया कि वह बीते 2 वर्षों से उनके सामानों की बिक्री नहीं हो रही है. पिछले वर्ष डेढ़ लाख रुपए खर्च कर मिट्टी के बर्तन बनाए थे, इस वर्ष भी करीब ₹70000 की लागत से मिट्टी का बर्तन बनाया है, लेकिन इस बार भी लोग ज्यादा खरीदने नहीं आ रहे हैं. हम शुरू से ही मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं कोरोना महामारी की वजह से हमें दूसरा काम भी नहीं मिलेगा, और हम इसी काम में परिपक्व हुए हैं तो दूसरा काम कर भी नहीं सकते. समस्या तो यही है कि आय के साधन कहां से आए, क्योंकि खाने के लिए भी तरस रहे हैं, जैसे तैसे करके ही गुजारा हो रहा है.

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