रायपुर। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हसदेव अरण्य में बच्चों ने पोस्टर और पेंटिंग बना कर जंगल बचाने का संदेश दिया. बच्चों ने कहा कि पर्यावरण ही वह एक चीज़ है, जिसे हम सब साझा करते है, इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी प्राथमिकताओं में पर्यावरण को बचाने की बात सबसे ऊपर रखें. इस अवसर पर बच्चों और युवाओं ने सांकेतिक प्रदर्शन कर हसदेव अरण्य को कोयला खनन से बचाने के लिए अपील की है कि हसदेव अरण्य में प्रस्तावित सभी कोयले की खदानों को रद्द किया जाए.

हसदेव अरण्य जो कि एक सघन वन क्षेत्र है और पर्यावरण दिवस पर जितना पेड़ लगाने को महत्व दिया जाता है उतना ही प्राकृतिक वन जो बचे हुए है उन्हें बचाने की कोशिश करना सबसे महत्वपूर्ण है.
1700 वर्ग किलोमीटर में फैला यह वन क्षेत्र एक आदिवासी बहूल एवं पांचवी अनुसूची क्षेत्र है. इस क्षेत्र की जैव विविधता, हसदेव नदी पर निर्मित मिनीमाता बांगो बांध का जालागम क्षेत्र और वन्य प्राणियों का रहवास होने के कारण यह एक पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र है. इन सघन वनों और इस से जुड़े स्थानीय समुदायों के अस्तित्व, संस्कृति और आजीविका कारण है कि पिछले एक दशक से यहाँ की ग्राम सभाएँ इस वन क्षेत्र की बचाने संघर्षरत है.

बता दें कि हसदेव अरण्ड कोल फ़ील्ड्स के नाम से जाने वाले इस वन क्षेत्र में 20 कोयले के खदान चिन्हित है. इनमें पहले से संचालित है परसा ईस्ट केते बासन और चोटिया कोयला खदान. हसदेव अरण्ड में वर्तमान में चार कोयला खदानों को शुरू करने की प्रक्रियायें जोरों से चल रही है. परसा कोयला ब्लॉक, केते एक्सटेंशन कोयला ब्लॉक, मदन पुर साउथ कोयला ब्लॉक एवं पतुरिया गिद्धमुड़ी कोयला ब्लॉक के भूमि अधिग्रहण, वन स्वीकृति एवं पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रियाएं चल रही है. इन सभी प्रक्रियाओं पर ग्राम सभाएं अपनी आपत्तियां और विरोध दर्ज कराती आई है. इनमें से परसा कोयला ब्लॉक के विरोध में हसदेव के ग्रामीणों द्वारा 75 दिन तक लगातार धारणा प्रदर्शन किया गया था.

परसा कोयला ब्लॉक की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जो बिना ग्राम सभा सहमति से शुरू की गई और वन स्वीकृति की प्रक्रिया फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों के आधार पर आगे बढ़ी जिसका सम्बंधित ग्राम सभाओं ने जिला कलेक्टर से लेकर, राज्य के मुख्य मंत्री, राज्यपाल और प्रधान मंत्री तक को पत्र लिख कर खनन कंपनियों की मनमानी को रोकने और हसदेव की कोयला खनन की भेंट न चढ़ाने की अपील की है और कर रहे है.

हर हाल में इस वन क्षेत्र को बचाने की पुरजोर कोशिश की कड़ी में हसदेव के लोगों ने अपने जल-जंगल-जमीन को बचने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट के रास्ते को ही भी चुना है. परसा कोयला खदान जिसकी पर्यावरणीय स्वीकृति को एनजीटी और भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायलय में चुनौती दी गई है जिस पर परियोजना प्रस्तावक को नोटिस भी जारी हुआ है. इन सब के बावजूद भी इस परियोजना के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इस परियोजना को स्थापना की सममति प्रदान की गई है.

इसका भी ग्रामीणों ने पुरजोर विरोध किया और आज पर्यावरण दिवस के मौके पर हसदेव के गांव से बच्चे एवं युवा निकल कर अपने जंगल में बैठ कर कोयला खनन से इस क्षेत्र में होने वाली तबाही रोकने और खनन से अधिक महत्वपूर्ण इस वन क्षेत्र और पर्यावरण को बचाए रखने के लिए प्रदर्शन कर रहे है.

इस प्रदर्शन से यह सन्देश स्पष्ट रूप से बाहर आया है कि कोयले से ज्यादा आवश्यक ये वन, पर्यावरण, लोग और उनकी संस्कृति को बचाना है.

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