सत्यपाल सिंह,रायपुर। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के द्वारा राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के तहत टीबी के मरीजों की पहचान के लिए चरणबद्ध ढंग से विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के पहले चरण में उच्च जोखिम समूहों में सघन जांच की जा रही है. जेल में बंद कैदियों, खदान श्रमिकों, शहरी मलिन बस्तियों, वृद्धाश्रमों, प्रवासी मजदूरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जांच कर संदिग्ध और धनात्मक मरीजों की पहचान की जा रही है. दूसरे चरण में एक माह तक पूरी आबादी में घर-घर जाकर सर्वे किया जाएगा. जिला स्तर, विकासखंड स्तर एवं पंचायत स्तर पर तुलनात्मक रूप से टीबी के अधिक मरीज पाए जाने वाले उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जाएगा.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की संचालक डॉ. प्रियंका शुक्ला ने बताया कि जनवरी-2021 से शुरू हुए विशेष अभियान के तहत अभी तक प्रदेश के विभिन्न जेलों के 16 हजार 621 कैदियों, खदान क्षेत्रों के 11 हजार 219 श्रमिकों, मलिन बस्तियों के एक लाख 89 हजार 276 लोगों, वृद्धाश्रमों में रहने वाले 790 बुजुर्गों और 289 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जांच की गई है. इस दौरान कुल 2 लाख 23 हजार 955 लोगों की जाँच हुई है. इनमें 2029 संदिग्ध मरीज़ों की और 34 टीबी पीड़ितों की पहचान हुई है. स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा धनात्मक पाए गए मरीजों के घर जाकर काउंसलिंग के बाद तत्काल इलाज शुरू किया किया जा रहा है. टीबी के मरीज पाए गए छह वर्ष से कम उम्र के छोटे बच्चों वाले घरों में इससे बचाव के लिए दवाई दी जा रही है. अभियान के दौरान 7 लाख लोगों की जांच का लक्ष्य है.

क्षय रोग एक संक्रामक बीमारी है. प्रदेश में वर्ष 2019 में इसके करीब 43 हजार मरीज मिले थे. वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण पूरे देश में पाए गए टीबी मरीजों की गिनती में 30 प्रतिशत तक गिरावट आई है. इसलिए समुदाय में छूटे हुए मरीजों की खोज कर उनका उचित इलाज प्रारंभ करना आवश्यक है, ताकि टीबी का संक्रमण दूसरे लोगों में फैलने से रोका जा सके. छत्तीसगढ़ सरकार 2023 तक प्रदेश को टीबीमुक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है.