इस्‍लामाबाद. पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले दिनों भारत को अल्‍पसंख्‍यकों के अधिकारों को लेकर नसीहत देने की कोशिश की थी, जिस पर उन्हें करारा जवाब मिला था। अब इमरान खान के मुल्‍क में खुद ऐसा हुआ है, जिससे अल्‍पसंख्‍यकों के मानवाधिकारों को कुचलने और उन्‍हें नीचा दिखाने को लेकर पाकिस्‍तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है।

अमेरिकी विदेश विभाग ने भी इसी महीने अपनी एक रिपोर्ट में पाकिस्‍तान को लोगों के धार्मिक अधिकारों को कुचलने वाले दुनिया के तीन प्रमुख देशों में शामिल किया था। इनमें चीन और सऊदी अरब का नाम भी शामिल था। अब एक बार फिर पाकिस्‍तान में कुछ ऐसा हुआ है, जो इस संबंध में अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट की एक तरह से पुष्टि करते हैं।

पाकिस्‍तान के खैबर पख्‍तूनख्‍वा प्रांत में इमरान की पार्टी पाकिस्‍तान तहरीक-ए-इंसाफ की सरकार है। यहां स्‍वाबी जिला परिषद ने एक प्रस्‍ताव पारित किया है, जिसके अनुसार अस्‍पतालों में स्‍वीपर पद पर केवल क्रिस्‍चनों की ही भर्ती की जानी चाहिए। यह प्रस्‍ताव परिषद में सर्वसम्‍मति से पारित किया गया और इसे इमरान की पार्टी के नेता अकमल खान ने प्रस्‍तावित किया था।

परिषद ने इस प्रस्‍ताव को कोर्ट के आदेशों के अनुरूप बताया, पर इसमें यह नहीं बताया गया कि कोर्ट ने इस संबंध में कब और किस मामले में आदेश दिया था। इस बीच, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने खैबर पख्‍तूनख्‍वा प्रांत की स्‍वाबी जिला परिषद की ओर से यह प्रस्‍ताव पारित किए जाने की आलोचना की है।

यहां उल्‍लेखनीय है कि पाकिस्‍तान में क्रिस्‍चन और हिन्‍दू बड़े अल्‍पसंख्‍यक समूह हैं, जिनकी आबादी कुल जनसंख्‍या के करीब 1.6-1.6 प्रतिशत है। यह घटना दर्शाती है कि इमरान खान ने पाकिस्‍तान की सत्‍ता में आने के बाद भले ही बदलाव के बड़े-बड़े दावे किए हों, लेकिन उन्हीं की पार्टी ने ऐसा प्रस्‍ताव पारित किया है, जो अल्‍पसंख्‍यकों के साथ उसके दोहरे रवैये को लेकर उसे बेनकाब करता है।