राकेश चतुर्वेदी/शब्बीर अहमद/अमृताशी जोशी, भोपाल। मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दिल्ली दौरे पर थे। यहां उन्होंने सबसे पहले राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से मुलाकात की। द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी यह पहली भेंट थी। सीएम शिवराज ने राष्ट्रपति को पुष्प-गुच्छ भेंट कर प्रदेश की जनता की ओर से शुभकामनाएं दी। सीएम ने राष्ट्रपति को मध्यप्रदेश आने का न्योता दिया, जिसे राष्ट्रपति ने सहर्ष स्वीकार किया।

इसके बाद इसके बाद वे बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले। जहां उन्होंने नड्डा को पंचायती राज के नवनिर्वाचित सदस्यों के होने वाले सम्मेलन की जानकारी दी और उनसे इसमें शामिल होने का आग्रह किया। जिस पर उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी।

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सीएम शिवराज ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने केंद्रीय मंत्री को बताया कि वर्ष 2024-25 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थ-व्यवस्था बनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मध्यप्रदेश अपने हिस्से का योगदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए पूँजीगत व्यय में पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में पूँजीगत व्यय के लिए राज्य का बजट आवंटन 48 हजार 800 करोड़ रूपये रखा गया है, जो राज्य की जीएसडीपी का लगभग 4 प्रतिशत है।

सीएम शिवराज सिंह ने केंद्रीय विद्युत, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह से भी श्रम शक्ति भवन नई दिल्ली में भेंट कर प्रदेश के वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य से अवगत कराया और ऊर्जा क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं पर चर्चा की।

सीएम ने केन्द्रीय मंत्री को बताया कि मध्यप्रदेश ने एक साल में ट्रांसमिशन लॉस को 41 प्रतिशत से घटा कर 20 प्रतिशत तक ला दिया है। ओंकारेश्वर में दुनिया का सबसे बड़ा 600 मेगावाट क्षमता का फ्लोटिंग सोलर प्लांट निर्माणाधीन है, जिसमें अब तक 300 मेगावाट के पीपीए समझौते किए जा चुके हैं। निकट भविष्य में मुरैना और छतरपुर जिलों में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना की जानी है। उन्होंने जानकारी दी कि प्रदेश में ऊर्जा परियोजनाओं में ऊर्जा भंडारण की क्षमता भी विकसित की जा रही है, जिसमें अतिशेष ऊर्जा उत्पादन का भंडारण कर, कमी होने पर इसका उपयोग किया जा सकेगा। प्रदेश में सौर और वायु ऊर्जा पर आधारित हाइब्रिड संयंत्रों पर भी काम किया जा रहा है।

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सीएम ने बताया कि बिजली की मांग पूरी करने के लिए राज्य बिजली बैंकिंग व्यवस्था पर निर्भर हैं। बिजली बैंकिंग व्यवस्था में मध्यप्रदेश अपनी अतिशेष विद्युत दूसरे राज्यों को देता है। फसलों की बोनी और सिंचाई के समय अधिक मांग होने पर उन राज्यों से बिजली वापस ली जाती है। इस बैंकिंग व्यवस्था में किसी भी प्रकार का वाणिज्यिक लेने-देन शामिल नहीं है। सीएम ने बिजली बैंकिंग व्यवस्था को डिफॉल्ट के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध किया।

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