पन्ना, नीलम राज शर्मा। आज पूरा देश विश्व बाघ दिवस मना रहा है. इस मौके पर अगर मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की बात न हो तो शायद अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस अधूरा सा लगता है. एक समय था जब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहिन हो चुका था, लेकिन अब पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का संसार अच्छा खासा बस गया है. इतना ही नहीं यहां पर 70 से भी अधिक बाघ हैं. भारत में शायद पन्ना टाइगर रिजर्व ही एकमात्र ऐसा बाघ होगा जहां हर जींसपूल के बाघ पाए जाते होंगे.
पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुर्नस्थापना योजना के एक दशक से अधिक समय बीत चुका है. पेंच टाइगर रिजर्व से टी-3 नर बाघ को पन्ना लाया गया था, जिसने बाघ विहीन हो चुके पन्ना टाइगर रिजर्व को फिर से गुलजार कर दिया. वर्तमान में टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 70 से अधिक पहुंच गई है. जिनमें अधिकांश नर बाघ टी-3 की संतान हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व में वर्ष 2009 में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी, तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति ने बाघ पुनर्स्थापना की योजना बनाई और उसे क्रियान्वित करते हुए कान्हा टाइगर रिजर्व से एक बाघिन बांधवगढ़ से हेलीकाॅप्टर द्वारा लाई गई.
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बाघ टी-3 के वापस टाइगर रिजर्व में लौटने के बाद इतिहास बदलने वाला था. वर्ष 2010 में बाघिन टी-1 ने अप्रैल में और टी-2 ने अक्टूबर में शावकों को जन्म दिया. अब रिजर्व में बाघो की संख्या 8 हो चुकी थी. टी-1 ने पहली बार 16 अप्रैल को शावकों को जन्म दिया था. यह दिन आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में जोर-शोर से मनाया जाता है. इसके बाद वन विभाग द्वारा 5 वर्षीय बाघों का एक जोड़ा भी कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से यहां लाया गया. साल 2013 में भी पेंच से एक बाघिन को पन्ना स्थानांतरित किया गया. पन्ना में अब तक 70 बाघ हो चुके हैं, जिनमें से कुछ विंध्य और चित्रकूट क्षेत्र के जंगलों में भी पहुंच चुके हैं.
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पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षैत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का दावा है कि बाघों के पुर्नस्थापना में इतनी बड़ी सफलता दुनिया में किसी देश में देखने को नहीं मिलती है. एक बफर फाॅरेस्ट जोन में बाघों का प्रजनन एक बेहद श्रमसाध्य कार्य है, जिसमें हर कदम पर जोखिम शामिल है. बाघ पुर्नस्थापना बहुत ही मुश्किल काम था. उन्होंने कहा कि हमें कदम-कदम पर असफलताएं भी मिलीं, लेकिन हमने हार नहीं मानी. एक के बाद एक प्रयोग करते रहे. स्थानीय लोगों को भी जागरूक करते रहे. जो परिणाम आये, वो आज विश्व के सामने हैं.
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पन्ना के जंगलों में बाघ हुआ करते थे, इस वजह से साल 1994 में टाइगर रिजर्व का दर्जा भी मिला था. फिर एक समय ऐसा भी आया, जब साल 2009 में इस टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं बचा. वन्य-प्राणी विशेषज्ञ और पन्ना के नागरिक यह स्थिति देख आश्चर्य चकित रह गए. बाघ पुनर्स्थापना योजना को शानदार कामयाबी इसलिए भी मिली कि पन्ना वासियों ने अपने खोए गौरव को फिर से हासिल करने के लिए हर तरह की कुर्बानी भी दी. जैसे पन्ना में आज तक किसी भी प्रकार की कोई भी औद्योगिक कारखाना नहीं लगाया गया..
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क्षेत्र संचालक की माने तो जिस तरह से बाघों की संख्या पन्ना टाईगर रिजर्व में बढ रही है. उसके साथ ही कुछ चुनौतिया भी टाइगर रिजर्व प्रबंधन के सामने आई है. पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 576 वर्ग किलो मीटर तथा बफर क्षेत्र 1021 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है. विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक पर्यटन स्थल खजुराहो से इसका पर्यटन प्रवेश द्वार मडला महज 25 किलो मीटर दूर है. पन्ना टाइगर रिजर्व में जिस प्रकार से बाघों की संख्या में इजाफा हो रहा है. उस हिसाब कर्मचारी और संसाधनों की कमी भी टाइगर रिजर्व प्रबंधन के सामने आ रही है. क्षेत्र संचालक की माने तो वर्ष 2009 से अभी तक लगभग 18 बाघों की मृत्यु हो चुकी है. वहीं 31 से 32 बाघ टाइगर रिजर्व से निकल कर रहे है. लैंडस्केब में निवास कर रहे हैं.
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