सुप्रिया पांडेय, रायपुर। राज्य महिला आयोग की सुनवाई के दौरान एक ऐसा मामला सामने आया, जिसमें शासकीय कर्मचारी अपनी पत्नी और बच्ची को पहचानने से इंकार कर रहा था. आयोग ने इस बात की पुष्टि के लिए बच्ची का डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया है.

राज्य महिला आयोग की सुनवाई के दौरान अनोखा मामला आया, जिसमें बस्तर जिले में पदस्थ शासकीय कर्मचारी ने अपनी पत्नी और बच्ची को पहचानने से इंकार कर दिया. बताया जाता है कि शासकीय कर्मचारी जिस जगह भी ट्रांसफर होकर जाता है, वहां वो शादी कर घर बसा लेता है. दूसरे जगह ट्रांसफर होने पर वह अपना घर-परिवार छोड़कर रफू चक्कर हो जाता है. शासकीय कर्मचारी की ऐसी ही कारगुजारी का शिकार महिला ने महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया और न्याय की गुहार लगाई.

सुनवाई के दौरान उपस्थित शासकीय कर्मचारी ने स्पष्ट कह दिया कि यह तो ना मेरी पत्नी है और ना मेरी बेटी. पीड़ित महिला ने बताया कि सन् 1980 में उनका विवाह ग्रामीण परिवेश में हुआ है, वो 5 साल तक अपने ससुराल में रही है. मामले की गंभीरता को देखते हुए महिला आयोग अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक ने बच्ची के डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा. सिविल लाइन थाना प्रभारी के माध्यम से महिला को मेडिकल कॉलेज के सुपरिटेंडेंट के पास डीएनए टेस्ट के लिए भेजा गया है. डीएनए टेस्ट होने तक आवेदिका को सखी सेंटर में रखा गया है.