रायपुर/बिलासपुर। राज्य में छिड़ी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अधिकारों की चर्चा के बीच प्रदेश कांग्रेस विधि के अध्यक्ष संदीप दुबे और प्रवक्ता सुशोभित सिंह ने संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की व्याख्या की है. उन्होंने स्पष्ट किया कि विधानसभा सत्र बुलाने राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य हैं, उनके पास सलाह को नहीं मानने का विवेकाधिकार नहीं है.

प्रदेश कांग्रेस विधि के अध्यक्ष संदीप दुबे और प्रवक्ता सुशोभित सिंह ने बताया कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था संघीय प्रणाली पर आधारित है, जिसके तहत केंद्र और राज्यों की शक्तिया तथा दायित्व का स्पष्ट विभाजन है. राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय कैबिनेट के सलाह से जाती है, और उनका कार्यकाल राष्ट्रपति की प्रसाद पर्यन्त तक होती है. अनुच्छेद 154 के अनुसार, राज्य की कार्यपालक शक्तिया राज्यपाल में निहित होती है, और उन शक्तियों का इस्तेमाल राज्यपाल को कैबिनेट की सलाह के अनुसार करना होता है. अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्य मंत्रिपरिषद का प्रमुख मुख्यमंत्री होगा जो राज्यपाल को उसकी शक्तियों पालन करने हेतु सलाह देगा.

इसी तरह अनुच्छेद 163 के अनुसार, कैबिनेट की सलाह राज्यपाल पर बंधनकारी होगी तथा मंत्रिमंडल की सलाह मानने या न मानने हेतु राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है. राज्यपाल के पास विवेकाधिकार संविधान के अनुसार कुछ सीमित विषयो पर ही है जैसे ६ वी अनुसूची के कुछ विषय, केंद्र शासित क्षेत्र के प्रशासन सम्बन्धी विषय ,तथा अनुच्छेद 371 में प्रावधान किये गए गए कुछ विशेष विषयों पर ही राज्यपाल को विवेकाधिकार प्राप्त है. अन्य सभी विषयों पर जब तक अन्यथा प्रस्तावित नहीं हो, तब तक राज्यपाल कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य है.

अधिवक्ता संदीप दुबे और प्रवक्ता सुशोभित सिंह ने बताया कि ऐसी व्यवस्था इसलिए की गयी है क्योकि निर्वाचित जन प्रतिनिधि जैसे की विधायक सीधे आम जनता द्वारा निर्वाचित होकर आते हैं, तथा वे जन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. बहुमत के द्वारा निर्वाचित सरकार जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री करते है, अपने सभी निर्णयों के लिए विधानसभा के प्रति जवाबदेह होता है. राज्यपाल विधानसभा के प्रति जवाबदेह नहीं होता बल्कि वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है.

अभी हाल के कुछ प्रकरणों जैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश के मामलों में पाया गया की राज्यपाल ने विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया और कैबिनेट की सलाह को मानने से इंकार कर दिया. माननीय उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्य वाली संविधान पीठ ने नेबाम रेबिया वि डिप्टी स्पीकर में अपने 13-07-2016 के आदेश में यह माना है कि अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल की विधानसभा का सत्र बुलाने की शक्तिया अनुच्छेद 163 के अधीन है. अर्थात राज्यपाल अनुच्छेद 174 तहत विधानसभा सत्र बुलाने हेतु अनुच्छेद 163 के तहत कैबिनेट की सलाह मानने हेतु बाध्य है. राज्यपाल के पास कैबिनेट की सलाह न मानने हेतु कोई विवेकाधिकार नहीं है.

नबाम रेबिया के मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि अनुच्छेद 174 के अनुसार राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाने की शक्तिया दी गई हैं, किन्तु इस शक्ति का इस्तेमाल राज्यपाल केवल अनुच्छेद 163 के तहत कैबिनेट की सलाह से ही कर सकता है. राज्यपाल के पास सत्र न बुलाने का कोई विवेकाधिकार नहीं है. नबाम रेबिया में आगे यह कहा गया है कि भारत जैसी संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में राज्यपाल के शक्तिया औपचारिक रूप में निहित है, तथा वास्तविक कार्यपालक शक्तिया राज्य के मुख्यमंत्री के पास होती है क्योकि वह मंत्रिमंडल का नेतृत्व करता है तथा विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है.