एसआर रघुवंशी, गुना। मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है। दरअसल, यहां से भारतीय जनता पार्टी ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनावी मैदान में उतारा हैं। पिछले चुनाव में सिंधिया करीब सवा लाख वोटों से चुनाव हार गए थे। 2019 के चुनाव में वे कांग्रेस में थे, अब भाजपा प्रत्याशी हैं। पिछली बार उन्हें डॉ केपी यादव ने BJP प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर हराया था। इस बार कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह को टिकट दिया है। सिंधिया और यादवेंद्र की लड़ाई को क्षेत्र के जातीय समीकरणों ने उलझा दिया है। इसकी वजह से इस सीट पर कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है।

भारतीय जनता पार्टी ने केपी यादव का टिकट काटकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनावी मैदान में उतारा हैं। वहीं कांग्रेस ने क्षेत्र के भाजपा के कद्दावर नेता रहे स्व राव देशराज सिंह यादव के बेटे राव यादवेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया हैं। इस क्षेत्र में यादव वोटर्स की संख्या अधिक है। केपी सिंह यादव का टिकट काटे जाने की वजह से उनमें नाराजगी भी है। क्षेत्रीय समीकरणों के कारण जाटव, गुर्जर और लोधी मतदाताओं का भी बीजेपी खासकर सिंधिया से मोह भंग हुआ है। अगर ये समाज नहीं सधे तो सिंधिया मुश्किल में आ सकते हैं। हालांकि अब तक चुनाव में पलड़ा उनका ही भारी दिख रहा है।

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गुना में फंसा चुनाव

गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में हमेशा सिंधिया परिवार का दबदबा रहा है। पिछला चुनाव छोड़ दें तो इस परिवार का कोई सदस्य यहां से चुनाव नहीं हारा। लेकिन 2019 का चुनाव हारने के बाद सिंधिया लंबे समय तक क्षेत्र के लोगों से गुस्सा दिखाई पड़े। विधानसभा चुनाव में भी उनके समर्थक उस तादाद में नहीं जीते, जैसी जीत कांग्रेस में रहकर 2018 में मिली थी। इसकी वजह से काफी समय तक ये क्षेत्र उपेक्षित रहा। अब बीजेपी ने अपने उस सांसद केपी सिंह यादव का टिकट काट दिया जिसने पहली बार सिंधिया परिवार के सदस्य को हराने का कीर्तिमान रचा था।

प्रदेश में भले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव हैं, लेकिन यादव समाज कांग्रेस के राव यादवेंद्र सिंह यादव के पाले में जा सकता है। अन्य जातियों में लोधी समाज पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की उपेक्षा के कारण नाराज तो है ही, इनका यादव समाज के साथ अघोषित समझौता जैसा हुआ है। पिछोर में यादव समाज ने प्रीतम लोधी को वोट देकर जिताया है, अब लोकसभा इलेक्शन में लोधी समाज की एहसान चुकाने की बारी है। गुर्जर और जाटव समाज अब एकतरफा नहीं, बंटा नजर आ रहा है। इससे गुना सीट का चुनाव फंसा नजर आ रहा है।

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इन मुद्दों का असर

गुना लोकसभा क्षेत्र में सभी तरह के मुद्दों का असर है। लोग राष्ट्रीय मुद्दों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर से प्रभावित दिखाई पड़ते हैं। सिंधिया की हार के बाद यह क्षेत्र उपेक्षित जैसा रहा। प्रदेश की सरकार ने भी खास ध्यान नहीं दिया। इसी वजह से लोगों में नाराजगी दिखती है। चंबल-ग्वालियर अंचल का होने से यहां जातीय राजनीति का असर है। यह चुनाव को प्रभावित करेंगे। सिंधिया परिवार ने क्षेत्र के लिए विकास के काफी काम किए हैं। इनका असर भी चुनाव में देखने को मिल रहा है।

विधानसभा सीटों के लिहाज से बीजेपी का पलड़ा भारी

गुना लोकसभा सीट के अंतर्गत तीन जिले गुना, अशोकनगर और शिवपुरी की विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें गुना जिले की बमोरी, गुना, शिवपुरी जिले की पिछोर, कोलारस, शिवपुरी और अशोक नगर जिले की मुंगावली, चंदेरी और अशोक नगर विधानसभा सीटें शामिल हैं। विधानसभा चुनाव के रिजल्ट से पूरे लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। बीजेपी के पास 6 तो कांग्रेस के पास सिर्फ दो सीटें हैं।

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सिंधिया परिवार का दबदबा

इस सीट के राजनीतिक मिजाज की बात करें तो यहां सिंधिया परिवार का ही दबदबा रहा है। 1998 तक इस सीट से राजमाता विजयाराजे सिंधिया बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ती और जीतती रहीं। इसके बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ग्वालियर छोड़कर गुना से चुनाव लड़ने आ गए तो यह सीट कांग्रेसी हो गई। 1998 का लोकसभा चुनाव यहां से माधवराव सिंधिया जीते। इसके बाद उनका निधन हो गया तो उनकी राजनीतिक विरासत ज्योतिरादित्य ने संभाली। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने 2004, 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। 2019 में पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्हें उनके ही सहयोगी केपी सिंह यादव ने BJP में जाकर चुनाव हरा दिया। इसके बाद ज्योतिरादित्य भाजपा में चले गए।

इन जातियों की भूमिका अहम

गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में चार जातियां यादव, जाटव, लोधी और गुर्जर समाज का दबदबा है। जाटव समाज के तीन लाख और यादव समाज के ढाई लाख के आसपास मतदाता है। इसके बाद लोधी और गुर्जर वोटर्स की संख्या है। ये भी लगभग डेढ़-डेढ़ लाख है। 2019 के लोकसभा इलेक्शन में इन सभी जातियों के मतदाता एकजुट हो गए थे। इसकी वजह से ज्योतिरादत्य सिंधिया सवा लाख वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे।

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इस बार भी ये मतदाता किसी का भी खेल बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं। यादव समाज की ज्यादा तादाद कांग्रेस के पक्ष में जाना तय माना जा रहा है, जबकि गुर्जर और जाटव लोटर्स का ज्यादा हिस्सा बीजेपी के पक्ष में जा सकता है। इनके अलावा क्षेत्र में वैश्य, ब्राह्मण और क्षत्रिय सहित अन्य समाज भी हैं। इनके प्रभाव में अन्य मतदाता भी रहते हैं। ये भी चुनाव में निर्णायक और अहम भूमिका निभाते हैं।

कौन मारेगा बाजी ?

एक ओर जहां सिंधिया परिवार ने पूरी ताकत झोंक दी है। ज्योतिरादित्य के अलावा उनकी पत्नी प्रियदर्शिनी राजे और बेटे आर्यमन सिंधिया लगातार संसदीय क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। गांव-गांव जाकर लोगों से मिलकर जनसंपर्क कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी भी पूरा दमखम लगा रही हैं। अब देखना होगा कि लोकसभा चुनाव 2024 के सियासी मैदान में कौन बाजी मारता है ? यह तो 4 जून 2024 को आने वाले रिजल्ट के बाद पता चल सकेगा।

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