आज ही के दिन (11 दिसंबर को) एक साल पहले राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की गद्दी संभाली थी। आज ही (11 दिसंबर 2018 को) पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ रहे हैं. शुरुआती नतीजों के हिसाब से कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में है, जिसे राहुल गांधी का असर माना जा रहा है.

रायपुर.  आज ही के दिन (11 दिसंबर को) एक साल पहले राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की गद्दी संभाली थी. आते ही गुजरात चुनाव में बीजेपी के हाथों हार मिली, लेकिन कर्नाटक में बनी जोड़-तोड़ की सरकार ने उनके कार्यकाल पर मरहम लगाने का काम किया। आज (11 दिसंबर 2018 को) पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ रहे हैं. शुरुआती नतीजों के हिसाब से कांग्रेस तीन राज्यों में सरकार बनाने की स्थिति में है, जिसे राहुल गांधी का असर माना जा रहा है. सचिन पायलट ने कहा- ये जीत राहुल के लिए तोहफा है. इससे बेहतर उनके लिए क्या हो सकता है. मोदी लहर के बीच कांग्रेस की कार्यप्रणाली में किस तरह बदलाव लाए राहुल, जानते हैं चंद पॉइंट्स में…

  1. स्पष्ट रूप से गलती मानना

कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद राहुल ने सबसे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में हार की वजह पार्टी का अहंकार बताया. विश्लेषकों का मानना है कि राहुल का यह बयान उनके पक्ष में गया. इसका सीधा असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ा.

  1. अपनी कमजोरी को आंकना

बीच भाषण में बार-बार लड़खड़ाना और कठिन हिंदी शब्द न बोल पाना राहुल गांधी की सबसे बड़ी कमजोरी मानी गई. यहां तक कि विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा बनाकर पेश भी किया, लेकिन संसद में भाजपा के खिलाफ अविश्ववास प्रस्ताव पेश करने के दौरान उन्होंने खुद को ‘पप्पू’ बताया. एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए यह भी कहा कि आप मुझे भले कुछ कहें, लेकिन मेरे दिल में आपके लिए सिर्फ प्यार है. विश्लेषकों के मुताबिक, राहुल के इस व्यवहार ने जनता की सहानुभूति उन्हें दिलाई, जिसका असर इन चुनावों में देखने को मिला.

  1. नई रणनीति बनाना

2014 में भाजपा के पास नरेंद्र मोदी जैसे कुशल वक्ता मौजूद थे, जो हर चुनाव में अपनी बातों से जनता पर प्रभाव डालते रहे, पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल ने उनकी शैली को पूरी तरह अपनाया और अपनी बात को अच्छी तरह रखना सीखा. इसका असर उनके भाषणों में साफ नजर आया. गोवा और मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी सरकार न बना पाने की कमी को उन्होंने कर्नाटक में पूरी तरह भुनाया. यहां उन्होंने नतीजे घोषित होते ही जेडीएस से हाथ मिलाया और भाजपा की उम्मीद पूरी तरह तोड़ दी.

  1. सरकार का घेराव

विश्लेषकों के मुताबिक, 2018 से पहले कांग्रेस में नेतृत्व की कमी साफ तौर पर नजर आ रही थी. भाजपा सरकार अपने तरीके से काम कर रही थी, लेकिन विपक्ष उनके सामने पूरी तरह विफल साबित हो रहा था. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल ने इस कमी को दूर करने की कोशिश की. उन्होंने गब्बर सिंह टैक्स और मोदी मेड डिजास्टर जैसे चुटीले शब्द दिए.

  1. प्रधानमंत्री पर सीधा हमला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े फैसलों को अपनी उपलब्धि बताया, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें इन्हीं मुद्दों पर घेरा. नोटबंदी को राहुल ने देश की सबसे बड़ी त्रासदी कहा तो जीएसटी को व्यापारियों के लिए नुकसानदायक बताया. इनके अलावा उन्होंने राफेल डील पर प्रधानमंत्री को घेरते हुए ‘चोर’ तक कहा.

  1. सचिन-गहलोत, कमलनाथ-सिंधिया, सबको साधने में हुए सफल

मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी पार्टी में राज्यों के बड़े नेताओं के बीच मनमुटाव था,  मध्य प्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया के बीच किसी एक पर राहुल गांधी ने सीधे भरोसा नहीं दिखाया. एक को उन्होंने पार्टी की कमान सौंपी तो दूसरे को उन्होंने पार्टी प्रचार समिति की कमान दी. इससे चुनाव तक दोनों बड़े नेताओं ने समान रूप से मेहनत की. ठीक इसी तरह, राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के समर्थकों में विवाद न हो, इसलिए राहुल गांधी के निर्देश पर दोनों चुनाव में उतरे. इससे चुनाव तक राजस्थान में कांग्रेस के कार्यकर्ता एकजुट रहे.

  1. गुजरात में मिली हार, पर मेहनत जारी रखी

हाल के वर्षों में गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को टक्कर दी. 2014 के बाद ऐसा पहली बार लगा कि कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले फिर खड़ी हो सकती है. हालांकि, ताबड़तोड़ प्रचार के बाद भी कांग्रेस गुजरात जीत नहीं पाई, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने चर्चा शुरू कर दी कि इस चुनाव में राहुल गांधी बतौर नेता उभरे. इस हार के बाद भी राहुल गांधी नेता के तौर पर निखरते चले गए. कर्नाटक में कांग्रेस की हार के बाद भी जेडीएस के साथ आकर सरकार बनाने का दांव चला. इससे विपक्ष में उनकी अहमियत भी बढ़ी. लगातार मेहनत की बात करें तो फिर वे किसान, राफेल, सीबीआई, आरबीआई, रोजगार जैसे मुद्दों पर पीएम नरेंद्र मोदी को सीधे घेरते हुए चर्चा में बने रहे.

  1. पार्टी के दूसरे नेताओं को सम्मान देने से बढ़ा कद

करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास समारोह में नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान जाने के बाद उनके और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच की कलह खुलेआम सामने आ गई थी. सिद्धू ने यहां तक कह दिया था कि उनके कैप्टन सिर्फ राहुल गांधी हैं, जिससे पंजाब में पार्टी में टकराव होने लगा था. राहुल ने इस स्थिति को बखूबी संभाला और सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर को एक साथ साध लिया. इसके बाद सिद्धू ने खुद कहा कि पंजाब में अमरिंदर ही बॉस हैं.