रायपुर। रंगीन चित्रों से सजी दीवारें, फर्श और छत खुद ही बच्चों का मन अपनी ओर खींच लेते हैं। इसी बाल मनोविज्ञान का प्रयोग छत्तीसगढ़ की आंगनबाड़ी में बच्चों को प्राथमिक ज्ञान देने के लिए किया जा रहा है। प्रदेश के सुदूर आदिवासी क्षेत्र सूरजपुर जिले के रामानुजनगर ग्राम पंचायत में बनी थानापारा आंगनबाड़ी शहरी क्षेत्र में पाए जाने वाले किसी भी आधुनिक प्ले स्कूल से कम नहीं है। यहां के आंगनबाड़ी केन्द्र में चित्रों के माध्यम से शिक्षा को मनोरंजक और रूचिकर बनाकर बच्चों को अक्षर ज्ञान देने जैसे नवाचारों का प्रयोग किया गया है। जिले में मनरेगा अभिसरण के तहत नवीन आंगनबाड़ी भवन निर्माण में ’बाला’ (BALA- Building as learning aid) तकनीक का प्रयोग करते हुए संस्था की भौतिक संरचना को मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, रूचिकर बनाया गया है। ’बाला’ विद्यालय के संपूर्ण भौतिक वातावरण को अंदर, बाहर, हर जगह को सीखने के यंत्र के रूप में विकसित करने का सिद्धांत है। यह भवन के शैक्षिक ‘मूल्य’ को अधिकतम बनाने का माध्यम है। यह ‘बच्चे कैसे सीखते हैं’ इस सिद्धांत पर आधारित है। आंगनबाड़ी केन्द्रों में किया जा रहा यह प्रयोग प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के शैक्षणिक विकास में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।

राज्य सरकार द्वारा आंगनबाड़ी केन्द्रों में तीन वर्ष तक के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था की गई है। इसके लिए नवीन आधुनिक पद्धतियों को अपनाकर बच्चों को सरलतम तरीके से शिक्षा देने की पहल की जा रही है। बच्चों को उनकी स्थानीय बोली और भाषा में कविता, कहानी और गीतों के माध्यम से भी सिखाया जा रहा है। सूरजपुर जिल में आंगनबाड़ी भवन की दीवार, छत, फर्श और बाहरी स्थलों में बनाए गए कलाकृतियों से नन्हे बच्चों को अक्षर बोध, रंगों को पहचानना, चित्रों के माध्यम से जानवरों के नाम को जानना, प्रारंभिक स्तर पर अंकों का ज्ञान के साथ छोटी-छोटी जानकारी बोलने, समझने में मदद मिलती है। आंगनबाड़ी की छत पर सौर मंडल, फर्श पर अक्षर और अंक, दीवारों पर अंग्रेजी और हिन्दी के अक्षरों के साथ जानवरों के चित्र बच्चों को खूब लुभाते हैं। नवीनतम तकनीक के इस प्रयोग से आदिवासी ग्रामीण अंचल मे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद मिल रही है।