शिवम मिश्रा, रायपुर। धर्मनिरपेक्षता के मूल्य को समझना है तो इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को पावन मानना होगा. आजादी की लड़ाई से निकले हुए देश को सांप्रदायिक ताकतों से चुनौती मिल रही थी, इन ताकतों को बढ़ने नहीं देना है, इसलिए इंदिरा गांधी ने 1975 का फैसला लिया. यह बात प्रो. सौरभ बाजपेई ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि और सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में कही.

पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे, अमरजीत भगत, शिव डहरिया, पूर्व केन्द्रीय मंत्री भक्त चरणदास की मौजूदगी में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में संगोष्ठी का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम में प्रो. बाजपेई ने कहा कि साम्प्रदायिकता से लड़ने आपको जोखिम उठाना होगा. आज यह संकल्प हमें लेना होगा जो शहादत, त्याग और बलिदान को हमारे नेताओं ने किया उसे हमें अपनाना पड़ेगा.

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पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का इंदिरा गांधी ने वानर सेना बना कर सहायता पहुंचाई. पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरणदास ने कहा कि सबसे शक्तिशाली महिला नेतृत्व में इंदिरा गांधी का नाम आता है. आज के बच्चों को वो इंदिरा गांधी की जरूरत है, जो बच्चों को देखभक्ति सीखा सके. इंदिरा ने 1952 से कांग्रेस की राजनीति शुरू की थी, और लंबा समय उन्होंने राजनीति में दिया.

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मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि दृढ़ता और उनके लगन के कारण सरदार पटेल को हम लौह पुरुष के रूप में जानते हैं. देश के एकीकरण का काम सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया. भारत को भारत बनाने का काम सरदार इन किया. इंदिरा को हम देवी की तरह पूजा करते थे. कृषि में आत्म निर्भर भारत बनाने का श्रेय इंदिरा गांधी के हरित क्रांति को जाता है. आज हमें इंदिरा गांधी और सरदार पटेल के रास्ते में चलना पड़ेगा. आज की लड़ाई सांप्रदायिकता के साथ है, और लड़ने की आवश्कता है.

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