मुंगेली. यूं तो प्रदेश को बने 17 साल से ज्यादा का समय ​बीच चुका है. इन 17 सालों में प्रदेश ने चहुमुखी विकास किया है. जिसकी गाथा विभिन्न माध्यमों से सरकार द्वारा जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. स्कूलों में भी इस विकास गाथा को पढ़ाया जा रहा है. जो पढ़ाया जाना भी चाहिए लेकिन अचरज तब होता है, जब इस विकास गाथा को स्कूलों में खुले में वृक्ष के नीचे पढ़ाया जाये. वह भी तीनों मौसम में फिर चाहे गर्मी हो,बरसात हो या फिर ठंडी हो. वृक्ष के नीचे पढ़ना इस स्कूल की परंम्परा नहीं है बल्कि मजबूरी है.

हम बात कर रहे है जिला मुख्यालय से महज 7 कि मी दूर ग्राम जमहा के शासकीय प्राथमिक शाला की. जो कि पूरी तरह से जर्जर हो चूकी है. स्कूल के छात्र-छात्रा पिछले 3 वर्षों से मौसम की मार झेलते हुए कड़ाके की ठण्ड और तेज धुप में पेड़ के नीचे जमीन में बैठकर पढ़ने को मजबूर है. बरसात में स्कूल के सभी 111 विद्यार्थियो को स्कूल के एक अतिरिक्त कमरे में ठूस दिया जाता है. ऐसे में स्कूल की पढ़ाई के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है. स्कूल की दीवारो में जगह-जगह दरारे पड़ गयी है. स्लैप अपनी जगह से खिसकने लगी है. बरसात में पानी टपकते है. वर्तमान में स्कूल की हालात यह है कि कभी भी स्कूल भवन गिर सकती है और कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है.

इस बात की जानकारी स्कूल प्रबंधन सहित गांव के सरपंच ने कई बार जिला शिक्षा अधिकारी को लिखित में दी है. प्रधान पाठक का कहना है कि बार-बार शिकायत के बाद भी अब तक शिक्षा विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया.

वहीं इस मामले में ग्राम पंचायत के युवा सरपंच नितेश भारद्धाज का कहना है कि हमारे द्वारा शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन को अवगत करा दिया गया है लेकिन अभी तक इस ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया गया है जो उनकी उदासीनता को दर्शाता है.

वहीं इस बारे में जिला शिक्षा अधिकारी एन के चंद्रा को अवगत कराया गया तो उन्होंने तत्काल जमहा स्कूल की दशा को संज्ञान में लेते हुए, मिडिल स्कुल में प्राथमिक शाला के विद्यार्थियो की बैठक व्यवस्था सुधारने की बात कही और बीईओ को तत्काल आदेशित किया कि जब तक नया शाला भवन नहीं बन जाता तब तक मिडिल स्कूल जमहा में दो पाली में लगाया जाए.

भले ही प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए प्रत्येक गाँवो में प्राथमिक शाला और प्रत्येक 3 किलोमीटर में माध्यमिक शाला व 6 किमी में हाई स्कूल खोला गया है. लेकिन स्कूल भवन की कमी और शिक्षक के अभाव में शासन की योजना केवल कागजो तक ही सिमटकर रह गयी है.