मनोज उपाध्याय, मुरैना। मुरैना संसदीय क्षेत्र मुरैना और श्योपुर दोनों जिलों को मिलाकर बना है। इस संसदीय क्षेत्र से उत्तरप्रदेश व राजस्थान की लगभग तीन सौ किलोमीटर की सीमा लगी हुई है। यही वजह है कि यहां चुनाव कराना सदैव चुनौतीपूर्ण रहा है। वैसे तो यह निर्वाचन क्षेत्र वर्ष 1967 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन अब यह सामान्य वर्ग के लिए है। मुरैना जिला मुख्यालय के पूर्व में उत्तरप्रदेश के आगरा जिले का पिनाहट क्षेत्र व भिण्ड से लगा हुआ है। वहीं पश्चिम में श्योपुर और उसके बाद राजस्थान के कोटा व मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिलों के लिए आसानी से जाया जा सकता है।

उत्तर में 25 किलोमीटर दूर धौलपुर राजस्थान है और दक्षिण में 40 किलोमीटर दूर ग्वालियर है। चंबल घाटी से प्रसिद्ध इस जिले में चंबल, क्वारी, आसन, सांक नदियां बहती हैं। पर्यटन के लिए यहां अनेक दर्शनीय स्थल है। यहां पर त्रेता युगीन शनि मंदिर है तो महाभारतकालीन कुंतलपुर क्षेत्र, जहां पाण्डवों की कुलदेवी विराज रही हैं। इसके अलावा बटेश्वर शिव मंदिरों की श्रृंखला, मितावली व पढ़वली, ईश्वरा महादेव भी दर्शनीय स्थल हैं। 1952 में यहां सबसे पहले लोकसभा चुनाव हुआ था। मुरैना से देश की राजधानी दिल्ली की दूरी लगभग 300 KM और प्रदेश की राजधानी भोपाल की दूरी 500 KM है।

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कुल विधानसभा

मुरैना संसदीय क्षेत्र में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र हैं। जिनमें से मुरैना में 6 व श्योपुर जिले में 2 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। मुरैना जिले में सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी व अंबाह और श्योपुर जिले में श्योपुर व विजयपुर विधानसभा क्षेत्र हैं। मुरैना की 6 में से 3 पर भाजपा और 3 पर कांग्रेस के विधायक हैं, वहीं श्योपुर की दोनों सीट कांग्रेस की झोली में हैं।

मतदाता

मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र में कुल 19 लाख 94 हजार 268 मतदाता है। जिसमें 10 लाख 65 हजार 159 पुरुष, 9 लाख 29 हजार 86 महिला और 23 थर्ड जेंडर शामिल है ।

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मुरैना संसदीय क्षेत्र की एक तिहाई आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है। मुरैना जिले की बात करें तो यहां का चुनावो में जातीय समीकरण भी प्रत्यासी की हार-जीत को प्रभावित करते है । इसलिए चंबल में चुनावों के परिणाम को समझने के लिए जातीय आंकड़े समझना भी जरूरी है। आइए एक नजर डालते हैं जातीय समीकरण…

  • दलित – 3.50 लाख
  • ब्राह्मण – 3.30 लाख
  • क्षत्रिय – 2.50 लाख
  • वैश्य – 1.50 लाख
  • रावत – 1.25 लाख
  • गुर्जर – 1.25 लाख
  • कुशवाह – 1.40 लाख
  • मुस्लिम – 1.20 लाख
  • किरार – 1 लाख
  • अन्य – 2.00 लाख

लोकसभा का परंपरागत मिजाज

चंबल की राजनीति में जाति सदैव हावी रहती है। यहां मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग जाति को देखकर वोट डालने जाता है। फिर वह चुनाव चाहे पार्षद का हो या सांसद का। चुनाव में जाति हावी होने की वजह से यहां खून-खराबा भी बड़े पैमाने पर होता है। इस कारण चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी प्रचार के दौरान जातिगत स्तर पर आ जाते हैं। यानि पूरे चुनाव के दौरान प्रत्याशी व उनके समर्थक जातिगत समीकरणों के हिसाब से चुनाव को मैनेज करने में लग जाते हैं। यहां चुनाव प्रारंभ तो मुद्दों से होता है लेकिन मतदान से एक सप्ताह पहले से जाति हावी हो जाती है और मुद्दे गौण हो जाते हैं।

क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं

बेरोजगारी– मुरैना में कोई बड़ा उद्योग नहीं होने की वजह से बेरोजगारी दर सबसे अधिक है। पहले यहां केएस मिल था, जिसमें सैंकड़ों लोग काम करते थे। इसी प्रकार बानमोर में जेके टायर कारखाना था। लेकिन केएस मिल पर जहां ताला लटका हुआ है वहीं बानमोर में भी सिर्फ दिखावे के लिए ही प्लांट चल रहा है। इसके अलावा बानमोर उद्योगिक क्षेत्र के कई बड़े प्लांट भी बंद पड़े हुए हैं। जिस वजह से यहां बेरोजगारी दर अधिक है।

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इसके अलावा मुरैना जिले में कोई भी अच्छा शैक्षणिक इंस्टीट्यूट नहीं है। इस वजह से यहां के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए मुरैना से बाहर का रुख करना पड़ता है। मेडिकल कॉलेज की भी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है, लेकिन सरकार के नुमांइदे सिर्फ आश्वासन देते हैं। जिले के दो क्षेत्र ऐसे हैं जहां गर्मियों में भीषण जल संकट होता है। जिनमें पहाड़गढ़ व रामपुर घाटी क्षेत्र। जल संकट की वजह से गर्मियों के दिनों में पशुपालक किसान तो इन क्षेत्रों से पलायन ही कर जाते हैं।

कैलारस सहकारी शक्कर कारखाना लोकसभा चुनाव में रहता है प्रमुख मुद्दों में शुमार

मुरैना जिले में किसानों की दशा सुधारने और उन्हें नई दिशा देने के लिए संचालित कैलारस सहकारी शक्कर कारखाना पिछले दो दशक से बंद है जिसे चालू करने का आश्वासन दिया जाता रहा है लेकिन न प्रदेश सरकार ने और न ही केंद्र सरकार ने इस सहकारी शक्कर कारखाने को चालू करने की कोई पहल की है। जिसका परिणाम यह होगा कि आंचल के किसानों की माली हालत सुधरने वाले सहायक एकमात्र उद्योग के बंद होने से वह सत्ताधारी भाजपा दल के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

वर्तमान सांसद की उपलब्धि व उनका आमजन से व्यवहार

वर्ष 2019 में चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर को केंद्र सरकार में कृषि मंत्री बनाया गया था। हालांकि उससे पहले भी वह ग्वालियर से सांसद रहते हुए केंद्र में मंत्री थे। नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि मंत्री रहते हुए मुरैना में कृषि विकास के लिए कृषि मेले का आयोजन तो कराया, लेकिन अभी तक किसानों को उन्नत कृषि का न तो प्रशिक्षण मिला और न ही अनंन्त तकनीकी के संशाधनों ही मुहैया हुए।

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

मुरैना सांसद नरेंद्र सिंह तोमर का कार्यकाल संतोषप्रद कहा जा सकता है। उनके कार्यकाल में चंबल एक्सप्रेस वे, नेरोगेज को ब्रोडगेज में लाइन परिवर्तन, मुरैना से श्योपुर तक और मुरैना से पोरसा तक हाइवे निर्माण, चंबल उसैद घाट पर पुल निर्माण आदि उपलब्धियां जुड़ी हुईं हैं।

पराजित प्रत्याशी की पांच साल की सक्रियता

वर्ष 2019 में यहां से नरेंद्र सिंह तोमर के मुकाबले कांग्रेस से पूर्व मंत्री रामनिवास रावत मैदान में थे। वहीं बसपा से दिल्ली के नेता करतार सिंह भड़ाना चुनाव लड़े थे। रामनिवास रावत वर्तमान में विजयपुर क्षेत्र से विधायक हैं। रावत समय-समय पर कांग्रेस के बड़े कार्यक्रमों में आते रहते हैं। हालांकि उनकी सक्रियता आमजन के बीच नगण्य है। लोकसभा का चुनाव हारने के बाद कभी उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी नहीं देखा गया। उधर बसपा प्रत्याशी की बात करें तो चुनाव हारने के बाद करतार सिंह भड़ाना कभी मुरैना में नहीं दिखे। ऐसा लगता है कि वह सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए ही मुरैना आए थे।

पिछली लोकसभा के हार जीत के आंकडे़

वर्तमान में मुरैना से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर हैं। वह इस समय मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष भी हैं। वर्ष 2019 में नरेंद्र सिंह तोमर यहां से चुनाव लड़े थे और उन्हें 5 लाख 41 हजार 689 मत प्राप्त हुए थे। कांग्रेस से वर्तमान विजयपुर विधायक रामनिवास रावत मैदान में थे। उन्हें 4 लाख 28 हजार 348 मत मिले थे। बसपा से दिल्ली के नेता करतार सिंह भड़ाना चुनाव लड़ने आए थे और उन्हें 1 लाख 29 हजार 380 वोट मिले थे। साल 2019 में कुल 11 लाख 37 हजार 290 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था। मतदाता का प्रतिशत 61.97 रहा था।

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अभी कांग्रेस और बसपा ने नहीं उतरे प्रत्याशी

बीजेपी ने अभी तक मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और चुनावी तैयारी में जुड़ गई है, लेकिन उसकी प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने अभी तक मुरैना संसदीय क्षेत्र से अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं किया है। इसलिए इस बात का आंकलन लगाया जाना भी मुश्किल है कि कांग्रेस और बसपा दोनों ही बीजेपी को हराने में सक्षम होंगी भी या सिर्फ चुनावी औपचारिकता पूरी करने के लिए प्रत्याशी मैदान में उतारे जाएंगे।

लिंगानुपात है अंचल की सामाजिक बुराई

जनसंख्या और मतदाता संख्या के आंकड़ों को देखें तो चंबल अंचल में लिंगानुपात एक बड़ी समस्या है, जो एक सामाजिक बुराई भी है। बढ़ते लिंगानुपात को रोकने और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का स्लोगन सिर्फ सरकारी योजनाओं तक सीमित है। धरातल पर पुरुष मतदाताओं से महिला वोटर्स लगभग 136000 कम है, जिससे यह स्पष्ट होता है की आंचल अभी भी पुरुष प्रधान समाज को आगे रखकर सामाजिक जीवन जी रहा है। वहां महिला और बेटियों को समान अधिकार और सुरक्षा का अभाव देखा जा सकता है।

अभी तक के सांसद

  • 1967 – आतमदास, कांग्रेस
  • 1971 – हुकमचंद कछवा, जनसंघ
  • 1977 – छबिराम अर्गल, जनता पार्टी
  • 1980 – बाबूलाल सोलंकी, कांग्रेस
  • 1984 – कम्मोदीलाल जाटव, कांग्रेस
  • 1989 – छबिराम अर्गल, भाजपा
  • 1991 – बारेलाल, कांग्रेस
  • 1996 – अशोक अर्गल, भाजपा
  • 1998 – अशोक अर्गल, भाजपा
  • 1999 – अशोक अर्गल, भाजपा
  • 2004 – अशोक अर्गल, भाजपा
  • 2009 – नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा
  • 2014 – अनूप मिश्रा, भाजपा
  • 2019 – नरेन्द्र सिंह तोमर, भाजपा

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