केदारनाथ, उत्तराखंड। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान केदारनाथ के कपाट आज सुबह 6 बजकर 15 मिनट पर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं. इस मौके पर मंत्रोच्चार से वहां पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया. पूरी तरह से दिव्य वातावरण के दर्शन वहां श्रद्धालुओं को हो रहे हैं. कपाट खुलने के साथ ही श्रद्धालु वहां भगवान शिव की पूजा-अर्चना में मग्न हो गए.

बता दें कि आज सुबह 4 बजे जलाभिषेक, रूद्राभिषेक समेत कई धार्मिक अनुष्ठान किए गए. उसके बाद सवा 6 बजे श्रद्धालुओं के लिए केदारनाथ के कपाट खोले गए. इस मौके पर उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ के के पॉल, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और हरिद्वार से सांसद डा. निशंक मौजूद रहे. मंदिर को विशेष तरीके से सजाया गया है.

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना के पीछे पौराणिक कथा इस प्रकार है. दरअसल हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि रहते थे. वे घोर तपस्या कर रहे थे. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हो गए और उन्होंने उनकी इच्छा के मुताबिक ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां सदा वास करने का वरदान दिया. केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नाम के श्रृंग पर स्थित है.

पांडवों ने की थी केदारनाथ मंदिर की स्थापना

वहीं दूसरी कथा के मुताबिक, महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से नाराज़ थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, लेकिन वे उन्हें वहां नहीं मिले. जिसके बाद पांडव शिव की खोज में हिमालय आ गए. भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे.

लेकिन पांडव भी बिना शिवजी के दर्शनों के वापस नहीं लौटना चाहते थे. वे भी शिवजी के पीछे-पीछे केदार तक आ गए. तब भगवान भोलेनाथ ने बैल का रूप धारण किया और अन्य पशुओं में जा मिले. लेकिन पांडवों को संदेह हो गया. इसलिए भीम ने विशाल रूप धारण किया और दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया. बाकी पशु तो निकल गए, लेकिन बैल बने हुए शिवजी पैर के नीचे से जाने के लिए तैयार नहीं हुए. भीम इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल रूपी शिव भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का हिस्सा पकड़ लिया. भगवान शिव आखिरकार पांडवों की भक्ति और दृढ़ संकल्प से पिघल गए और प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया और उन्हें सारे पापों से मुक्त कर दिया.

उसी समय से भगवान शिव की बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है. माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ. अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है. यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं.

8वीं सदी में आदिशंकराचार्य ने मंदिर का नवनिर्माण और जीर्णोद्धार किया. केदारनाथ के कपाट अक्ष्य तृतीय से लेकर भाई दूज तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं. चार धाम की यात्रा उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा को कहते हैं. केदरानाथ के कपाट खुलने के सिर्फ एक दिन बाद यानि की 30 अप्रैल को बद्रीनाथ के कपाट भी खुलेंगे. धार्मिक मान्यता है कि केदरानाथ के दर्शन करने के बाद जो भी भक्त बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी सभी मनोकानमनाएं पूर्ण होती है.