इन्द्रपाल सिंह, इटारसी। नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार से हो रही है। राज्य सरकार ने इस बार कोरोना नियम में ढील देते हुए पांच लोगों को एक बार में पूजा करने की अनुमति दे दी है। इटारसी-सीहोर जिले की विंध्याचल पर्वत श्रृखंला पर विराजी माता बिजासेन देवी में वर्ष भर भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। नवरात्र में हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धलु रेहटी गांव के पास पर्वतों पर विराजी बिजासेन दरबार मे अपनी मनोकमाओं के साथ पूरी भक्ति और श्रद्धा से पहुंचते है। नवरात्र पर्व के एक दिन पूर्व से श्रद्धालुओं का सलकनपुर देवीधाम पैदल पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है।

 

मान्यता है कि महिषासुरमर्दिनी के रूप में माँ दुर्गा ने रक्तबीज नाम के राक्षस का वध इसी स्थान पर करके यहां विजयी मुद्रा में तपस्या की थी। इसलिए यह विजयासन देवी कहलायीं। बिजासेन दरबार मे जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना के लिये माता के सामने हाजिरी लगता है,उसकी मनोकामना पूरी होती है।

मंदिर के गर्भगृह में लगभग 400 साल से 2 अखंड ज्‍योति प्रज्जवलित है। एक नारियल के तेल और दूसरी घी से जलायी जाती है। इन साक्षात जोत को साक्षात देवी रूप में पूजा जाता है। मंदिर में धूनी भी जल रही है। इस धूनी को स्‍वामी भद्रानं‍द और उनके शिष्‍यों ने प्रज्जवलित किया था. तभी से इस अखंड धूनी की भस्‍म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में दिया जाता है।

 

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400 साल पुराना है दरबार
सलकनपुर बिजासेन दरबार करीब 400 साल पुराना है। जहाँ गर्भगृह है उस स्थान पर एक छोटी सी कच्ची मढ़िया बनी हुई थी। धीरे धीरे यह 400 साल पुरानी मढ़िया आज एक विशाल मंदिर के रूप में स्थापित हो गई है। जमीन से यह मंदिर 1000 फीट ऊपर पर्वत पर है। करीब इस मंदिर तक पहुँचने के लिये 1400 सीढ़ियां बनी हुई है। वहीं मंदिर की दूसरी तरफ पक्की सड़क का निर्माण भी किया गया है।

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मंदिर में पहुंचने के लिए चढ़नी पड़ती है 1400 सीढ़ियां
मंदिर में पहुँचने के लिये भक्तों को 1400 सो सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर तक पहुँचने के लिये दूसरी तरफ एक पक्की सड़क को कुछ वर्ष पूर्व बना दिया गया है। रास्ते से दो पहिया और चार पहिया वाहनों से पहुँचा जा सकता है। यह रास्ता करीब साढ़े चार किलोमीटर लम्बा है। इसके अलावा भक्तों के लिए मंदिर समिति द्वारा रोपवे भी शुरू किया है,जिसकी मदद से नीचे से ऊपर मंदिर पांच से दस मिनिट में पहुँचा जा सकता है।

बाघ आता है माता के दर्शन करने
वीओ-बताया जाता है कि,माँ बिजासेन देवीधाम से नजदीक रातापानी का जंगल है,उस जंगल मे रहने वाला बाघ माता के दर्शन करने आता है। आसपास के ग्रामीण बताते है ही जब मंदिर का निर्माण नही हुआ था,तब बाघ माता के आसपास ही रहता था। उस समय लोगों ने बाघ को माता के स्थान पर जाते हुए कई बार देखा था। अब मंदिर निर्माण और भक्तों की अपार भीड़ के कारण बाघ दिखाई नही देता है, रात के अंधेरे में बाघ मंदिर पहुँच जाता है।

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महाराष्ट्र से भी पहुंचते हैं भक्त
हर वर्ष नवरात्रि में भक्तों की अपार भीड़ रहती है। ज्यादातर बैतूल,महाराष्ट्र,भोपाल के साथ ही होशंगाबाद जिले के शहरों और ग्रामीण क्षेत्रो से भक्त सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा तय कर बिजासेन दरबार पहुँचते हैं। इटारसी नेशनल हाइवे आज से पैदल जाने वाले भक्तों से भरा दिखाई दे रहा है। अपनी मनोकामनाएं लेकर मुँह पर माता के जयघोष और हाथ मे झड़े लिये भक्त माता के दरबार पहुँच रहे हैं।

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