प्रदीप गुप्ता, कवर्धा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के गठन को लगभग साढ़े चार साल पूरे हो चुके हैं, अब नए विधानसभा चुनाव की तैयारी में पार्टियां जुट गई हैं. बीते साढ़े चार सालों में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों का प्रदर्शन कैसा रहा इसका हिसाब-किताब करने लल्लूराम प्रदेश के तमाम विधानसभा पहुंच रहा है. अबकी बार हमारा पड़ाव पंडरिया विधानसभा है.

विधानसभा का इतिहास

पंडरिया विधामसभा में दो बड़ी नदी हैं, पहला हाफ तो दूसरी आगर नदी. पंडरिया विधानसभा की जीवनदायिनी हाफ नदी का उद्गगम तरेगांव के जंगल से हुआ है, जो शिवनाथ नदी में जाकर मिल जाती है. विधानसभा क्षेत्र के लगभग 50 से अधिक गांव हाफ नदी पर निर्भर हैं. वहीं आगर नदी बिलासपुर के अरपा नदी में मिल जाती है. इस नदी पर 40 से 50 गांव के लोग निर्भर हैं. कृषि प्रधान पंडरिया विधानसभा में एक शक्कर कारखाना है, और 200 से अधिक गुड़ फैक्ट्रियां हैं. बात करें धार्मिक महत्व की तो पंडरिया नगर में सिद्धपीठ महामाया मंदिर है. वहीं पंडरिया से 20 किमी दूर कामठी गांव में भगवान शिव और शनि का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं.

कांग्रेस का पलड़ा भारी

पंडरिया विधानसभा के इतिहास के बारे में एक नजर डालते हैं. कभी पंडरिया विधानसभा और लोरमी विधानसभा एक हुआ करते थे, और धर्मजीत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे. वर्ष 2008 में विधानसभा के परिसीमन के बाद पंडरिया विधानसभा अस्तित्व में आया और मोहम्मद अकबर ने लालजी चन्द्रवंशी को 1900 से अधिक वोटों से पराजित कर पहले विधायक बने. 2013 में भाजपा से मोतीराम चन्द्रवंशी ने लालजी चन्द्रवंशी को 6 हजारों वोटों से हराकर सीट पर काबिज हुए. लेकिन 2018 में बाजी फिर पलट गई और कांग्रेस प्रत्याशी ममता चंद्रकार ने भाजपा के मोतीराम चन्द्रवंशी को 36 हजार मतों से करारी शिकस्त दी.

मतदाताओं का लेखा-जोखा

पंडरिया विधानसभा में 2 लाख 96 हजार 239 मतदाता है, जिसमें पुरुष 1 लाख 50 हजार 435 और महिला 1 लाख 45 हजार 804 मतदाताओं के साथ 2 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं. सबसे ज्यादा मतदाता कुर्मी समाज के लोग हैं, उसके बाद साहू समाज की बारी आती है. ये समाज किसी भी दल का खेल बना सकते हैं, तो बिगाड़ भी सकता हैं.

विधायक से लोग नाखुश

पंडरिया विधानसभा के लोग आजादी के 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधा से वंचित हैं. पानी, बिजली और सड़क की समस्या आज भी बनी हुई है. वनांचल के लोग आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. मजबूरी का आलम यह है कि लोग झिरिया के गंदे पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. कुल मिलाकर विधानसभा के ज्यादातर लोग विधायक ममता चंद्राकार के कार्यकाल से खुश नहीं हैं. हालांकि, कुछ लोगों को उनका कामकाज संतोषजनक नजर आता है.