कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। आज भारत दुनिया में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर आता है, लेकिन अब देश के 300 से ज्यादा वैज्ञानिक गेहूं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई किस्मों पर काम कर रहे है, जो अलग अलग राज्य के जलवायु के हिसाब के साथ ही पौष्टिकता के मामले में भी सेहत को काफी मजबूती देगी।
दरअसल, ग्वालियर में इन दिनों तीन दिवसीय 61वीं अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान कार्यकर्ता गोष्टी राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में चल रही है। इस अनुसंधान कार्यक्रम में देश और विदेश के कुल 400 वैज्ञानिक शामिल होने पहुंचे हुए हैं और लगातार गेहूं और जौ की नई वैरायटी को लेकर मंथन कर रहे हैं। इस अनुसंधान कार्यक्रम के लिए इस बार मध्यप्रदेश का चयन इसलिए भी किया गया है, क्योंकि मध्य प्रदेश में देश की 21 फीसदी उपज होती है।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री एंड डायरेक्टर रिसर्च सर्विसेज डॉ एसके शर्मा का कहना है कि पिछले साल गेहूं का उत्पादन 106 मिलियन टन रहा था, जिसमें से 3.5 मिलियन टन गेंहू भारत ने दूसरे देशों को एक्सपोर्ट किया और एक बहुत ही अच्छा उदाहरण हमने देश के सामने प्रस्तुत किया है। गेंहू का जितना भी प्रोडक्शन हमारे देश में होता है इसमें हमारे किसानों, वैज्ञानिकों और भारत सरकार का बहुत इंपॉर्टेंट रोल बीच में रहता है। इस सम्मेलन में नई-नई किस्मों को भी निकाला जाएगा। साथ ही कई मुद्दों के ऊपर डिस्कशन भी जाएगा। खासकर जिस तरह क्लाइमेट बदल रहा है, तापमान बढ़ रहा है ऐसे में नई वैरायटी कैसे ईजाद हो, बीमारियों को रोकने के लिए किस तरह की वैरायटी तैयार की जा सकती हैं उसके लिए भी बहुत डिस्कशन किया जा रहा है।
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