भोपाल। मध्य प्रदेश में खंडवा लोकसभा सहित तीन विधानसभाओं में होने जा रहे उपचुनाव के लिए 30 तारीख को वोट डाले जाएंगे। सियासी दांव पेंच के बीच मतदान की तारीख नजदीक आते जा रही है। नेताओं के वार और पलटवार के बीच चाय की टपरी से लेकर पान की दुकानों में एक ही चर्चा है कि एमपी के इस संग्राम में जीत का सेहरा किसके सर पर बंधेगा। हालांकि इस सवाल का जवाब 2 नवंबर को मतगणना के बाद आने वाले परिणाम साफ हो जाएगा। लेकिन इस उपचुनाव में ऐसे क्या मुद्दे हैं जिनका असर चुनाव पर और प्रत्याशियों की जीत हार पर पड़ने वाला है? किसका पलड़ा भारी है? हार जीत की रेस में कौन किसे पीछे छोड़ रहा है ?

ये है खंडवा लोकसभा का इतिहास

खंडवा में लोकसभा का पहला चुनाव 1962 में हुआ था। कांग्रेस के महेश दत्ता ने पहले चुनाव में जीत हासिल की। कांग्रेस ने इसके अगले चुनाव 1967 और 1971 में भी जीत हासिल की। 1977 में भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कांग्रेस को हरा दिया। कांग्रेस ने 1980 में यह सीट वापस छीन ली। तब शिवकुमार सिंह ने इस सीट पर कांग्रेस की वापसी कराई थी। कांग्रेस ने इसका अगला चुनाव भी जीता। 1989 में बीजेपी ने इस सीट पर पहली बार खाता खोला। हालांकि 1991 में उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। 1996 में बीजेपी की ओर से नंदकुमार चौहान चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे। इसके बाद उन्होंने यहां से अगले 3 चुनाव जीते। 2009 में अरुण  यादव ने यहां पर कांग्रेस की वापसी कराई। 2009 में हारने के बाद नंदकुमार ने एक बार फिर यहां पर वापसी की, साल 2014 और 2019 में उन्होंने अरुण यादव को मात दी। बीजेपी को यहां पर 6 बार तो कांग्रेस को 7 बार जीत मिली है।

महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा

आज बात खंडवा के लिए लोकसभा में होने जा रहे उपचुनाव की करते हैं। खंडवा लोकसभा का भाग्य साढ़े 19 लाख से ज्यादा मतदाता तय करेंगे। 8 विधानसभाओं वाले इस लोकसभा में कुल 19 लाख 59 हजार 436 मतदाता हैं। इस लोकसभा में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं की अपेक्षा ज्यादा है। यहां पुरूष मतदाता की संख्या 9 लाख 89 हजार 451 है वहीं महिलाओं मतदाताओं की संख्या 9 लाख 49 हजार 862 है। जबकि अन्य की संख्या 90 है।

ये हैं प्रत्याशी

भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान की कोरोना से मौत के बाद यह सीट रिक्त हो गई थी। इस सीट पर बीजेपी ने पिछड़ा वर्ग से ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। पाटिल दिवंगत नंदकुमार सिंह के करीबी रहे हैं। ओबीसी आरक्षण को लेकर उठे विवाद के बाद बीजेपी ने इस सामान्य सीट पर पिछड़े वर्ग से आने वाले पाटिल को मैदान में उतारकर ओबीसी वोट बैंक पर सीधा निशाना साधा है।

वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर 70 वर्षीय राजनारायण सिंह को मैदान में उतारा है। ठाकुर राज नारायण सिंह मंधाता से तीन बार विधायक रह चुके हैं। वे यहां 1985 से 90 तक फिर 1998 से लेकर 2008 तक मंधाता विधानसभा का प्रतिनिधित्व किए। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं। राजपूत और गुर्जर वोट बैंक पर इनकी अच्छी खासी पकड़ है।

भीतरघात पड़ सकता है महंगा

खंडवा लोकसभा सीट से टिकट की दावेदारी कर पीछे हटने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव के साथ राज नारायण सिंह की पुरानी अदावत है। कहा जाता है कि हर चुनाव में अरुण यादव इन्हें अंदरूनी तौर पर नुकसान पहुंचाते रहे हैं। मंधाता विधानसभा उपचुनाव 2020 में अरुण यादव और उनके समर्थकों के विरोध के कारण राज नारायण के पुत्र उत्तम पाल सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि अरुण यादव प्रत्याशी के पक्ष में लगातार मैदान में डटे हुए हैं।

कांग्रेस के साथ ही बीजेपी को भी भीतरघात का डर सता रहा है। बीजेपी के सांसद रहे नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन पिता के निधन के पश्चात इस सीट से प्रबल दावेदार थे। वे अपनी टिकट फाइनल मान रहे थे लेकिन पार्टी ने ज्ञानेश्वर पाटिल को टिकट दे दिया। टिकट नहीं मिलने से नाराज हर्षवर्धन बीजेपी के अब तक के सभी कार्यक्रमों से नदारद रहे। उनकी नाराजगी ने पार्टी की नींद उड़ा दी है।

ये है सीट का समीकरण

खंडवा संसदीय क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें आती हैं। साल 2018 के परिणाम और उसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव के बाद खंडवा की आठों विधानसभाओं का भी गणित बदल गया। खण्डवा लोकसभा में आने वाली दो विधानसभा मांधाता और नेपानगर के दोनों विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा में चले गए। 4 सीटों वाली कांग्रेस 2 सीटों पर यहां सिमट गई और बीजेपी के सीट में इजाफा होकर 5 हो गई। अब बीजेपी के पास जो सीटें हैं उनमें खंडवा, पंधाना, बागली, नेपानगर और मांधाता। वहीं कांग्रेस के पास बडवाह और भीकनगांंव ही बची है वहीं एक अन्य सीट बुरहानपुर निर्दलीय के पास है। इस तरह सीटों के समीकरण के हिसाब से ऊपरी तौर पर इस लोकसभा सीट पर बीजेपी का दबदबा नजर आ रहा है।

जातीय समीकरण

खंडवा लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति का खासा दबदबा है। यहां एससी-एसटी वर्ग के 7 लाख 68 हजार 320 मतदाता हैं। 4 लाख 76 हजार 280 ओबीसी के, अल्पसंख्यक 2 लाख 86 हजार 160 और सामान्य वर्ग के 3 लाख 62 हजार 600 मतदाता हैं। इसके अलावा अन्य की संख्या 1500 है। इस सीट पर आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक को निर्णायक माना जा रहा है।

ये हैं मुद्दे जिनका पड़ेगा सीधा असर

दिवंगत नंदकुमारसिंह चौहान खण्डवा लोकसभा से लगातार चार बार सांसद रहे हैं। लेकिन साल 2009 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस की वापसी हुई। अरूण यादव यहां से सांसद चुने गए और केंद्र में मंत्री बने। लेकिन साल 2014 और 2019 के चुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान ने कांग्रेस से अपनी हार का बदला ले लिया और वो छठवीं बार इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। नंदकुमार सिंह के कोरोना के निधन की सहानुभूति का लाभ इस सीट से बीजेपी को मिल सकता है लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका असर भी पड़ सकता है। वोटरों की नाराजगी का खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है।

  • ग्राम रूधि में ग्रोथ सेंटर बनाया गया लेकिन कोई बड़ी इंडस्ट्री यह नहीं आ पाई है। युवा रोजगार के लिए आज भी बाहर जाने को मजबूर है।
  • पानी की समस्या को दूर करने के लिए 106 करोड़ रुपए की नर्मदा जल योजना सौगात मिली। लेकिन पाइपलाइन बार बार फूटने के कारण पानी की समस्या अब भी बरकरार है।
  • शहर को रिंगरोड, बायपास और ट्रांसपोर्ट नगर की सौगात तो मिली लेकिन वह भी अधूरे हैं। ट्रैफिक की समस्या शहर में आज भी बरकरार है।
  • इंदौर इच्छापुर हाईवे पर बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिसके कारण लगातार यहां एक्सीडेंट की घटनाएं बढ़ रही है।
  • खंडवा रिंग रोड, बायपास अधूरा
  • बुरहानपुर के 10-12 हजार पावरलूम बंद
  • सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट में स्थानीय बेरोजगारों का मुद्दा
  • नर्मदा जल योजना का लाभ नहीं मिला
  • बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था

इसके अलावा कोरोनाकाल के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतें, बेरोजगारी, सिंचाई, सड़क, बिजली की समस्या सहित कई अन्य मुद्दे हैं। किसानों की सरकार से नाराजगी का भी सीधा असर मतदान पर पड़ सकता है।

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