मोसीम तड़वी, बुरहानपुर। यहां अस्पताल खुद बीमार है। 33 करोड़ के बने जिला अस्पताल भवन में चिकित्सक है न पर्याप्त अन्य स्टॉफ। दवाएं निजी दुकानों से खरीदने को लोग मजबूर हैं। यहां तक एंबुलेंस सेवा तक नहीं है। ऐसे में करोड़ों की लागत से बने ये भवन आम जनता के लिए किस काम के हैं। शासन-प्रशासन की अनदेखी से जनता निजी अस्पतालों से महंगा इलाज कराने को मजबूर हैं।
ज्ञात हो कि बुरहानपुर में जब 33 करोड़ की लागत से भव्य अस्पताल का निर्माण शुरू किया गया था, तो इसे देखकर आम लोगों में अच्छी चिकित्सा मिलने को लेकर उत्साह था। जब यह अस्पताल बनकर तैयार हुआ उसके बाद भी स्थिति वैसी की वैसी रहने से जनता में शासन-प्रशासन के रवैए से अच्छी चिकित्सा की आस टू गई है।
मरीज आए तो जांच कराएं किससे
यहां एबुंलेंस है, न ही चिकित्सक। स्टॉफ नर्स की कमी है, वहीं वार्ड ब्वॉय की भी समस्या है। ऐसे में यहां आने वाले मरीज कई बार अपनी जान गंवा चुके हैं। जिला अस्पताल की अव्यवस्था इतनी लचर है, कि इसके आगे सब बेबस हो गए हैं। स्थिति को देखते हुए लोग कहते हैं यह अस्पताल खुद ही बीमार है।
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10 में से कोई काम की नहीं
जानकारी अनुसार यहां पर लगभग 10 से अधिक एंबुलेंस है, पर आश्चर्य है कि एक भी वाहन व्यवस्थित नहीं है। कई वाहन सालों से एक ही जगह पर खड़ा है। किसी में चिकित्सा सुविधा नहीं है, तो किसी एंबुलेंस के सभी चिकित्सा उपकरण खराब पड़े हैं। किसी वाहन के पहिए खराब हो चुके हैं। यहां आश्चर्य की बात ये है कि जान बचाने वाले इन कीमती एंबुलेंस को दुरूस्त करवा दें ऐसा कोई जिम्मेदार यहां नहीं है।
एक एंबुलेंस सरकारी आवास के बाहर खड़ी है, तो दूसरा पेड़ के नीचे
प्रत्यक्ष देखें तो एक बिगड़ी एंबुलेंस सीएमएचओ के सरकारी आवास के बाहर खड़ी है, तो दूसरा एंबुलेंस पेड़ के नीचे आराम फरमा रही है, तो एक वाहन पर धूल की कई परत चढ़ चुकी है। पेड़ की पत्तियों से ढक गया है, पर मजाल है कि विभाग का कोई जिम्मेदार इस ओर अपनी जिम्मेदारी निभाने आगे आए। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ जाम जनता को ही परेशानी उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। ऐसे में बीमार लोग निजी वाहन से अस्पताल पहुंचने को मजबूर हैं। वहीं यहां किसी के निधन हो जाने पर मोटी रकम देकर निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।
एंबुलेंसों की दयनीय स्थिति के आगे सब बेबस
मामले में लोगों का कहना है जनता के लिए चिकित्सा सुविधा को लेकर सरकार चाहे लाख दावे कर ले, पर बुरहानपुर की बीमार अस्पताल और एंबुलेंसों की दयनीय स्थिति के आगे सब बेबस है। यहां तक अब अस्पताल के जिम्मेदार सिविल सर्जन डॉ. शकील अहमद खान भी स्वीकार रहे है कि अस्पताल में एंबुलेंस सेवा नहीं है। शव ले जाने के लिए यहां एक शववाहिनी तक नहीं है।
कोरोना काल में विधायक ने एक एंबुलेंस का दिया सहारा
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में अधिकांश तह एंबुलेंस की ज्यादा जरूरत पड़ी, लेकिन अस्पताल के एंबुलेंस कोरोना काल में वेंटिलेटर पर थी, ऐसे में क्षेत्रीय विधायक ठाकुर सुरेंद्र सिंह शेरा ने 45 लाख की लागत से जिला अस्पताल को एक एंबुलेंस भेंट की, लेकिन ये एंबुलेंस सिर्फ हाईसेंटर्स में मरीजों को रेफर करने के लिए उपयोग होती रही।
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सबसे ज्यादा महिलाओं और मरीजों को परेशानी
मामले में आशा उषा संघ जिलाध्यक्ष संगीता तायड़े ने भी अस्पताल को लेकर सरकार से गुहार लगाई है। संगीता ने कहा कि 33 करोड़ के जिला अस्पताल में एंबुलेंस सेवा नहीं होना दुख की बात है। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा महिलाओं और मरीजों को परेशानी होती है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे इस ओर ध्यान दे।
यहां भगवान भरोसे इलाज
वहीं कांग्रेस के जिलाध्यक्ष अजय सिंह रघुवंशी ने आरोप लगाया और कहा कि जिला अस्पताल भगवान भरोसे है। यहां लोग आकर खुद ही बीमार हो जाएं ऐसी स्थिति है।
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