गरियाबंद. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती टायगर रिजर्व में ओडिशा से आए लोगों की घुसपैठ की शिकायत पर रायपुर से लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जाकर दो दिनों तक ग्राउंड ज़ीरो का जायज़ा लिया.लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जो जांच की, उसकी रिपोर्ट कड़ियों में प्रकाशित कर रही है. आज इसकी चौथी रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है.
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वन विभाग की टीम और उसके साथ उदंती में अवैध कटाई की पड़ताल करने गई टीम पहले दिन कटाई वाली जगह देख चुकी थी. लेकिन उस जगह अब तक नहीं पहुंच पाई थी जहां ओडिशा के लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं. पहले दिन टीम की मुलाकात शिकायतकर्ताओं से तयशुदा जगह हल्दीकछार में मुलाकात नहीं हो पाई थी. अब सवाल था कि क्या हमें यात्रा यहीं खत्म करनी होगी या फिर बाकी सवालों के जवाब के लिए और एक दिन रुकना होगा.
पहले दिन जिस तरीके से हम जंगल में गए थे.उसी तरीके से कार, टू व्हीलर और पैदल चलकर वापिस तोरेंगा पहुंचे. पहले दिन की पड़ताल में जंगल कटाई की बात सही साबित हो चुकी थी. ये बात भी साफ था कि वन विभाग जितने बड़े इलाके में जंगल साफ होने की बात कह रही है, इलाका उससे काफी बड़ा है और कटाई का खेल सालों से चल रहा है.
उदंती के जंगलों में ओडिशा के लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं और खेती कर रहे हैं और वन विभाग और वन प्रबंधन समिति के लोगों द्वारा पैसे लेकर लोगों को अवैध तरीके से बसा रहे हैं. इन दोनों आरोपों की पुष्टि बाकी थी. इन दोनों बातों का खुलासा तभी संभव था. जब अवैध रुप से बसे लोगों से पुछताछ हो जाए. लेकिन घने जंगलों में रह रहे ऐसे लोगों तक हमें केवल शिकायतकर्ता ही ले जा सकते थे. जो पहले दिन नदारद थे.
वो कहां गए. बोलकर क्यों नहीं आए. ये तमाम सवाल हमारे मन में कौंध रहे थे. थोड़ी देर बाद जब हम लोग तोरेंगा रेस्ट हाऊस पहुंचे तो कुछ लोगों को अपने मोबाइल पर सिग्नल मिलने लगे. उन्हीं के फोन से धनौरा के लोगों को अधिकारियों ने फोन लगाया. धनौरा वालों ने बताया कि वे अभी भी हल्दीकछार में हैं. गांव में देवी स्थापना होने की वजह से वे कुछ देर से निकले थे. वे करीब 4.30 बजे वहां पहुंच पाए थे.
धनौरा के लोगों ने फोन पर बार बार रिक्वेस्ट की कि वे सब उनसे बिना मिले न जाएं क्योंकि जो टीम गई थी वो काफी बातें छिपा रही थी. मामले की गंभीरत को देखते हुए हमने रायपुर से आए वरिष्ठ आईएफएस देवाशीष दास से धनौरा गांव में अगले दिन जाने की मंशा जताई. वे भी इसके लिए तैयार हो गए. रात्रि विश्राम गरियाबंद में करकर सुबह फिर धनौरा रवाना होने का कार्यक्रम बन गया.
सुबह गाड़ी से धनौरा पहुंचे तो वहां एक तरफ धनौरा के शिकायतकर्ता बैठे थे. दूसरी तरफ पीपलखुंटा के लोग डटे थे. स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी. जब जांच दल ने धनौरा के लोगों से बात की तो धनौरा के लोगों का कहना था पीपलखुंटा के लोगों ने पूरी कटाई नहीं दिखाई. न ही उस जगह ले गए जहां ओडिशा के लोगों को इन लोगों ने बसाया हुआ है. इस बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच वहीं विवाद हो गया. पीपलखुंटा के लोग धनौरा के लोगों पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे थे. जबकि धनौरा के लोग तमाम लोगों को उनके साथ जंगल जाकर मुआयना करने की मांग कर रहे थे.
आखिरकार, वन विभाग ने ये तय किया कि पहाड़ियों को पार करके धनौरा के लोगों के आरोपों की शिनाख्त की जाए. ये अहम मसला था कि पीपलखुंटा के लोग क्यों धनौरा के लोगों के साथ टीम के जंगल जाने के हक़ में नहीं थे. अहम बात थी कि मुख्य शिकायतकर्ता को रेंजर ने अपनी गाड़ी में बिठाया.
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टीम के मुखिया देवाशीष दास ने धनौरा के लोगों से कहा कि उन्हें सीधे उस जगह ले चलें जहां ओडिशआ के लोग अब भी बसे हुए हैं. पहले कुछ दूर तक गाड़ी. उसके बाद पैदल पहाड़ी की चढ़ाई और फिर जंगल. हम चलना शुरु कर चुके थे.
धनौरा के लोगों ने बताया था कि उस जगह पर पहुंचने के लिए करीब 1 घंटे तक पैदल चलना पड़ेगा. हमारे साथ पीपलखुंटा के लोग भी थे. जिसमें सरपंच भी था जिस पर धनौरा के लोग 10 हज़ार लेकर लोगों को बसाने का आरोप लगा रहे थे.
रास्ते में घने जंगल से गुज़रते हुए कई जगह ऐसे पेड़ और लकड़ियां दिखीं जिससे पता चलता है कि जंगल में अवैध कटाई अब भी जारी है. हम करीब एक घंटे तक पैदल चल चुके थे.बीच-बीच में थोड़ा विश्राम करते हए हम आगे बढ़ रहे थे. सबलोग पसीने से तर बतर थे. इस बात पर लोग नाराज़ थे कि चलने से पहले जितनी दूरी शिकायतकर्ताओं ने बताई थी, उससे दोगुनी चलने पर भी उस जगह हम नहीं पहुंच पाए हैं.
करीब पौने तीन घंटे चलने के बाद हमे एक मैदान सा मिला. जिसके बारे में बताया कि यहां पिछले साल ओडिशा के लोगों ने उड़द दाल लगाई थी. वहां अब झाडियां उगी हुई थीं. आगे बढ़ने के बाद हमें कुछ टूटी हुई झोपड़ियां मिलीं. जहां से ओडिशा वालो को खदेड़ा गया था. यहां पीपलखुंटा के लोगों ने बताया कि ओडिशा वालों के जाने के बाद इस जगह पर शिकायकर्ताओं ने कब्जा कर लिया था. जिसके बाद वन विभाग ने इन्हें गिरफ्तार करके बेदखल किया था.
दो दिन से खामोश वन विभाग के कर्मचारियों ने अपना बही खाता खोला और बताया कि शिकायतकर्ता जंगल कटाई के मामले में फरार हैं. लेकिन शिकायतकर्ताओं का कहना था कि वे फरार नहीं हैं बल्कि मामला कोर्ट में पेशी चल रही है. ये बात जानकर पत्रकार साथी भी भड़क गए. लोगों को लगा कि शिकायकर्ता उन्हें बेवकूफ बनाकर चलाते जा रहे हैं.
अब बड़ा सवाल था कि क्या इस आधार पर वहीं जांच रोक दी जाए कि शिकायकर्ताओं के मामले दर्ज हैं.या फिर इसे जारी रखा जाए. चूंकि जिन लोगों पर मामले दर्ज हैं उन्ही की शिकायत पर अवैध कटाई सामने आई है. लिहाज़ा टीम ने इसे जारी रखने का फैसला किया.
कुछ दूर और चलने के बाद हम हल्दीकछार के दूसरे हिस्से में आ गए जहां सैकड़ों की संख्या में पेड़ कटे पड़े थे. गांव के लोग हमें पूरा जंगल का कटा इलाका दिखाना चाहते थे जो उनके हिसाब से सैकड़ों एकड़ तक फैला है और वन विभाग 3 हैक्टेयर और 5 हैक्टेयर बता रहा हैं.गांव वालों ने बताया कि ये जंगल आगे काफी दूर तक कटा हुआ फैला है.
चूंकि उस जगह पर कटे जंगल का मुआयना करना संभव नहीं था लिहाज़ा हम उस तरफ चल दिए जिस तरफ अवैध तरीके से ओडिशा के लोग डटे हुए थे. कुछ देर बाद हमें फिर से एक मैदान दिखा जहां बड़े हिस्से की कटाई करने के बाद उसके पेड़ों की लकड़ियों को इकट्ठा कर दिया गया है.
कई जगह इन लकड़ियों को जलाया भी गया है. मौके का मुआयना करने पर लगता है कि इस पैच में सालों से पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है और तस्कर अक्सर आते हैं. लेकिन इस बात की भनक वन प्रबंधन समिति और विभाग को क्यों नहीं होती.इसका जवाब किसी के पास नहीं था. फॉरेस्ट के रेंजर का कहना था कि ये जगह काफी रिमोट है. उन्हें समय पर सूचना नहीं मिल पाती. स्टॉफ की कमी है. जबकि सरपंच और वन प्रबंधन समिति के संयोजक नीलांबर का कहना है कि इस बारे में कई बार शिकायत वन विभाग को की गई . लेकिन विभाग शिकायतों पर वक्त रहते ध्यान नहीं देता.
दोनों की बातों का विरोधाभाष ये बताने के लिए काफी था कि तस्करी के इस खेल में विभाग की घोर लापरवाही है तो वनाधिकार प्रबंधन समिति के सदस्यों की भूमिका भी संदिग्ध है. अब केवल एक शिकायती बिंदू था जिसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी. वो बिंदू था कि क्या वाकई में ओडिशा के लोग अब भी अवैध कब्जा करके जंगल में खेती कर रहे हैं. सूरज ढलना शुरु हो चुका था और इस समय चार किलोमीटर आगे बढ़कर पैदल वापिस लौटना आसान नहीं था. लिहाज़ वन विभाग ने शिकायतकर्ताओं, प्रबंधन समिति के सदस्यों और विभाग के कुछ कर्मचारियों के साथ एक टीम बना दी. टीम को उस जगह की तफ्तीश के लिए भेज दिया.
यहां पर आकर दो दिन की पड़ताल में से बहुत सी बातें साफ हो चुकी थी. जांच समिति के चैयरमैन देवाशीष दास से हमने पूछा कि उन्हें क्या लगा तो उन्होंने वन विभाग के लापरवाही बात मानी और मिलीभगत की आशंका से इंकार नहीं किया.
अब हमें वापस लौटना था. वापसी के लिए हमने दूसरा रास्ता लिया. जिसे उस जंगल का चौकीदार जानता था. ये रास्ता नालों में चलते हुए जाता है. वापसी में पानी की बोतलें खत्म हो गईं. लिहाज़ा हमें और फॉरेस्टर के अधिकारियों को नाले का पानी पीना पड़ा. पानी के लिए गांव की पंरपरागत तकनीक से झरिया बनाया गया. फिर उससे पानी निकाल हमने प्यास बुझाई
जब हम पीपलखुंटा पहुंचे तो पता चला कि जो जंगल में अवैध बसाहट की पड़ताल करने टीम गई थी उसे एक सफलता हासिल हुई है. उसने अवैध तरीके से जंगल में रहने वाले तीन लोगों को गिरफ्तार किया है.
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लेकिन इससे पहली ख़बर उस चौकीदार ने दी जो हमें जंगल से पीपलखुंटा लाया था. उसने बताया कि कई परिवार जंगल में एक और जगह देवझरन में अवैध तरीके से रह रहे हैं. दो दिन तक उदंती में रहने के दौरान हमें तीन ऐसी जगहों की जानकारी हो चुकी थी जहां अवैध रुप से ओडिशा के लोग अब भी रह रहे हैं. ये तीनों जगह उस जगह से अलग हैं जहां से 26 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी.
कुल मिलाकर हमारी जांच में ये बात साफ हो गई कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी अब तक नहीं जान पाए हैं कि अवैध कटाई कितने इलाके में हुई है. लिहाज़ा हर संबंधित अधिकारी और कर्मचारी की भूमिका और आरोपित संरपंच की भूमिका की जांच बेहद ज़रुरी है. सीसीएफ वाइल्ड लाइफ रात्रे कहते हैं कि कटाई 3 हैक्टेयर में हुई है. जबकि डिप्टी रेंजर इसे 6-7 हैक्टेयर बता रहे हैं. लेकिन दो दिन में हम कम से कम 10 हैक्टेयर इलाके में घुम चुके थे.गांव वाले इसे सैकड़ों हैक्टेयर का इलाका बता रहे हैं. इसकी पड़ताल हवाई सर्वे या ड्रोन से ही मुमकिन है.
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उदंती में अतिक्रमण और कटाई रोकने के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना बनाई जाएगी. जिससे इसका स्थाई समाधान हो सके. इस दो दिन के दौरे के बात ये बात साफ है कि अगर वन विभाग ने जल्दी ही बड़े कदम नहीं उठाए तो उदंती का हाल सरगुजा के जंगलों जैसा होने में वक्त नहीं लगेगा.