कपिल मिश्रा, शिवपुरी। जुलूस तो आपने कई तरह के निकलते दखे होंगे। जैसे- जीत का जश्न, अपराधियों को सजा देने का जुलूस, त्योहारों का जुलूस या फिर धार्मिक आयोजना का जुलूस। हम आपको Lalluram.Com पर पहली बार देखा रहे हैं…..’मगरमच्छ का जुलूस’। जी हां…. शिवपुरी शहर में लोगों ने मगरमच्छ को पकड़कर उसका जुलूस निकाला।
दरअसल जिले में लागातर बारिश हो रही है। बारिश के कारण जिले के सभी नदी-नाले और तालाब उफान पर है। इसके कारण पानी में रहने वाले जानवर बाहर निकल रहे हैं। रविवार सुबह शिवपुरी शहर में तीन अलग अलग इलाकों में मगरमच्छ निकले। मगरमच्छों को देखकर इन इलाकों के लोग दहशत में आ गए।
मगरमच्छ निकलने की एक घटना नगर की कमलागंज क्षेत्र से सामने आई, जहां एक मगरमच्छ को कॉलोनी में घूमते हुए देखा गया। इसके बाद कॉलोनी के युवा एकत्रित हो गए और युवाओं के ने छोटो से मगरमच्छ को जान को जोखिम में डालते हुए पकड़ लिया। इसके बाद युवाओं ने उसे पहले रस्सियों से बांध लिया और उसका कमलागंज क्षेत्र की सड़कों पर जुलूस निकालते हुए घुमाया। मगरमच्छ की सूचना मिलते ही नेशनल पार्क के रेस्क्यू टीम मौके पर पहुंचे और युवाओं से मगरमच्छ को छुड़ाकर नेशनल पार्क की टीम ने अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद उसे सुरक्षित नेशनल पार्क क्षेत्र में स्थित सांख्य सागर झील में नेशनल पार्क में सुरक्षित छोड़ दिया।
आइए अब जानते हैं पशु क्रूरता निवारण अधिनियम
- पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या यातना देने के निवारण के लिए 1960 में प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम बनाया गया था। भारतीय दंड संहिता 428 और 429 के मुताबिक किसी पशुओं को जबरदस्ती मारना, अपंग करना या बेवजह दंड देने पर कानून के खिलाफ होगा। इसे अपराध के रूप में जाना जाएगा।
- यदि किसी पशु को जानबूझकर आवारा छोड़ दिया जाए, तो इसके खिलाफ भी सजा हो सकती है। प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी आंन एनिमल एक्ट 1960 के मुताबिक ऐसा करने पर 3 महीने की सजा हो सकती है।
- कई बार बंदर को कैद करके उनसे नुमाइश करवाई जाती है, यह भी कानूनन अपराध माना जाता है। किसी भी पशु को बांधकर रखना भी सही नहीं माना गया है इसके खिलाफ भी सजा हो सकती है।
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 22(2) के मुताबिक किसी भी जंगली जानवरों को अपने मजे के लिए प्रशिक्षित करना और उनसे अपना मनोरंजन करना गैरकानूनी माना गया है फिर भी लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों के लिए सजा का भी प्रावधान है।
- अधिनियम के तहत दायर मुकदमे की समयावधि 3 माह की होती है, इस अवधि के बाद वादी/अभियोजक पर किसी भी प्रकार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
- एंटी बर्थ कंट्रोल 2001ः यह नियम आवारा कुत्तों के लिए है। उन्हें किसी भी अवस्था में मारना गैर कानूनी होगा। स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन किया जा सकता है लेकिन उन्हें किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाना बिल्कुल सही नहीं है।
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