छत्तीसगढ़ के संस्कृति पोरा तिहार शहर व ग्रामीण अंचल में धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसके साथी यह त्यौहार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. सुबह से किसान अपने बेलों को नहलाकर पूजा अर्चना की व बेलों को भोजन में मीठा प्रसाद के साथ दिया. बेलों की पूजा के बाद घर-घर में पकवान भी बनाए गए.

ठेठरी-खुरमी के अलावा कई प्रकार के व्यजनों को बना कर पोला पर्व पर पूजा जाती है. इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है. पर्व के दो-तीन दिन पूर्व से ही बाजारों में लकड़ी तथा मिट्टी के बैल जोड़ियों में बिकते दिखाई देते हैं. Read More – Priyanka Chahar Choudhary ने देसी लुक के बाद लगाया ट्रेडिशनल का तड़का, वीडियो देख फैंस के छूटे पसीने …

पोला नाम क्यों पड़ा

विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आए थे, तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे. कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था. एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था. वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा. Read More – भूलकर भी पर्स में न रखें ये चीजें, वरना हमेशा बनी रहेगी आर्थिक तंगी …