Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

‘एसपी’ का साहस

इस एसपी के साहस को सलामी दी जानी चाहिए. राज्य में सेंट्रल एजेंसी जब पूरी दबंगई से काम कर रही है, ठीक उस वक्त साहब अपनी कारस्तानियों की वजह से ख्याति अर्जित कर रहे हैं. डील छोटी-मोटी नहीं, करोड़ों में हो रही है. सुनते हैं कि एसपी साहब ने महज कुछ महीनों के भीतर ही चार-पांच करोड़ की पर्ची काट दी है. बताते हैं कि एसपी साहब ने एक नया तरीका इजाद किया है. जिले से गुजरने वाली एक बायपास सड़क पर बकायदा चेक पोस्ट बना दिया है. अपने भरोसे के एक टीआई की तैनाती कर दी है. बायपास होते हुए उद्योगों में जाने वाले कोयले से भरी गाड़ियां इनके टारगेट में होती हैं. कोल परिवहन में नियम कायदे का पालन हुआ, तब गाड़ियां छोड़ दी जाती है, लेकिन जहां अवैध कोल परिवहन वाली गाड़ियां जद में आती हैं, मोटा खेल, खेल दिया जाता है. बताते हैं कि कोल अधारित उद्योगों के लिए सरकार ने कोयले का स्टाॅक तय कर रखा है. खपत हो या ना हो, तय कोटे का कोयला खरीदने की अनिवार्यता है. बड़े उद्योग अक्सर अतिरिक्त कोयला निचले उद्योगों में अवैध रुप से बेच देते हैं, लेकिन इसके बड़े खतरे हैं. यदि कोई उद्योग ऐसा करता पकड़ा जाए, तो उसकी कोल सप्लाई पर प्रतिबंध लग सकता है. एसपी साहब ने इस गूढ़ रहस्य को समझ लिया है. एसपी साहब नब्ज टटोलकर बैठ गए हैं. जहां उद्योगों की नब्ज ढीली पड़ती है, दवा दारु वसूल लेते हैं. 

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आटा बचा, घुन पिसाया 

आटे के साथ घुन पीसना सबने सुना होगा, लेकिन क्या यह सुना है कि आटा ना पिसा हो और घुन पिस जाए. ये मामला कुछ ऐसा ही है. वन महकमे में करप्शन के एक मामले की जांच शुरू हुई. यह करप्शन फर्जी वन समिति बनाकर करोड़ों रुपए डकारने से जुड़ा था. जांच रिपोर्ट आई. आरोप सच साबित हुए. रेंजर, डिप्टी रेंजर, बीट गार्ड सस्पेंड हो गए. मगर करप्शन का मास्टरमाइंड प्रभारी डीएफओ डंके की चोट पर अपनी कुर्सी पर आज भी कायम है. कहते हैं कि 2021-22 में जब कुछ डिवीजनों में एसडीओ को प्रभारी डीएफओ बनाया गया था, तब इस साहब ने एक मौलवी को पकड़ लिया. दुआ-सलाम के बाद 15-20 दिनों की तय मियाद पर प्रभारी डीएफओ बन गए. बस फिर क्या था. ना जाने कब 15-20 दिन एक महीने में बदल गया, एक महीना छह महीनों में और छह महीना सालों में. कैडर पोस्ट पर नान कैडर का अफसर पूरी हेकड़ी के साथ बैठा रहा. रोचक बात यह रही कि ये साहब जिस रेंज में रेंजर रहे, एसडीओ रहे, वहीं प्रभारी डीएफओ की तैनाती भी पाई. इस प्रभारी डीएफओ के कई किस्से हैं. एक किस्सा चेकपोस्ट घोटाले का है. बताते हैं कि चेक पोस्ट बनाने के नाम पर तब दस करोड़ रुपए गटक लिए गए थे. तब भी जांच टीम बनी थी. जांच हुई. साहब पूछताछ की जद में आए. उनसे पूछा गया कि कागजों में दिख रहा चेक पोस्ट कहां गया? तब उन्होंने अपने जवाब में कहा कि, बाढ़ में बह गया. बहरहाल अब सुना जा रहा है कि प्रभारी डीएफओ के निलंबन से जुड़ी फाइल कड़ी टिप्पणी के साथ विभागीय मंत्री के अनुमोदन के लिए भेजी है. करीब एक महीना बीत गया. फाइल कछुआ की रफ्तार से आगे बढ़ रही है. 

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डीपीसी

वन विभाग की सुपियरिटी अलग किस्म की है. बाकी विभाग जहां एक तरह के लगते हैं, वही वन विभाग एक अलग किस्म का दिखाई पड़ता है. इसकी गहराई जंगलों की तरह ही है. अब 20 जनवरी को हुई डीपीसी की बैठक को ले लें. पीसीसीएफ पदोन्नति को लेकर यह बैठक हुई थी, लेकिन फैसला इस बात पर रुका हुआ है कि पीसीसीएफ के दो पदों पर पदोन्नति होनी है या तीन पदों पर. दरअसल पदों के कैल्कुलेशन को लेकर कंफ्यूजन की स्थिति बन गई थी, सो डिसीजन पेंडिंग हो गया. सुनते हैं कि विभाग की तरफ से जीएडी को पत्र भेजा गया है. यह पूछने के लिए कि जीएडी बताए कि असल में कितने पदों पर पदोन्नति की जानी है. एक वरिष्ठ आईएफएस ने बताया कि, वन महकमे का कैडर पोस्ट मिनिस्ट्री आफ एनवायरमेंट, फारेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज के बनाए नियम से चलता है ना कि जीएडी से. ऐसे में जीएडी को पत्र भेजे जाने का कोई औचित्य नहीं? वैसे सुना जा रहा है कि जल्द ही डिसीजन ले लिया जाएगा. सुनाई यह भी पड़ा है कि वन मुखिया संजय शुक्ला ने वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया है. अप्रैल-मई में उनकी रेरा चेयरमेन के तौर पर पोस्टिंग किए जाने की अटकले हैं. ऐसे में अब डीपीसी जल्द फैसला ले लेगी कि पीसीसीएफ के कितने पदों पर और किन चेहरों को पदोन्नत किया जाना है. संजय शुक्ला के बाद सिनियरिटी में सुधीर अग्रवाल, संजय ओझा, तपेश झा, अनिल राय, अनिल साहू आते हैं. इनके बाद श्रीनिवास राव का नंबर लगता है, लेकिन चर्चा इस बात की तेज है कि इनमें से श्रीनिवास राव के नाम पर मुहर लगाई जा सकती है. इतने सिनियरों को सुपरसीड करना तकनीकी रुप से मुमकिन नहीं होगा, लिहाजा गणित बिठाया जा रहा है कि श्रीनिवास राव को प्रभारी पीसीसीएफ के रुप में जिम्मा दे दिया जाए. सरकार की पहली पसंद के रुप में राव ही देखे जा रहे हैं. चुनाव करीब है. जाहिर है, पीसीसीएफ की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाएगी. वैसे चर्चा है कि वन महकमे में उत्तर भारत वर्सेज दक्षिण भारत की लड़ाई चल रही है. दो गुट बन गए हैं. आंतरिक वर्चस्व की इस लड़ाई में कौन किसे शिकस्त देगा, यह देखना दिलचस्प होगा. 

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‘डीएम’ बने ओएसडी!

छत्तीसगढ़ में आईपीएस के रुप में सबसे लंबी पारी खेलकर डी एम अवस्थी 31 मार्च को रिटायर हो गए. मौजूदा सरकार में तीन साल तक डीजीपी रहे. कुछ वक्त के लिए सरकार के साथ उनके संबंधों में खमीर उठा था. थोड़ा खट्टापन आ गया था, लेकिन चंद महीनों पहले रिश्ते मधुर हुए. ईओडब्ल्यू-एसीबी चीफ के रुप में तैनाती मिली. सरकार ने उन्हें अब पीएचक्यू में बतौर ओएसडी नियुक्त किया है. पिछले दिनों कैबिनेट में भूपेश सरकार ने पीएचक्यू में एक नान कैडर पोस्ट को मंजूरी दी थी. अब जाकर मालूम पड़ा है कि यह पोस्ट ‘डीएम’ के लिए क्रिएट किया गया था. बताते हैं कि ओएसडी नियुक्त होने के बाद ईओडब्ल्यू-एसीबी का प्रभार अवस्थी ही संभालेंगे. 

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उधर छापा-इधर बैठक

उधर ईडी का छापा चल रहा था, इधर मंत्रालय में तंबाकू नियंत्रण को लेकर बनाई गई राज्य स्तरीय समन्वय समिति की बैठक जारी थी. इस बैठक में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास के साथ-साथ आबकारी विभाग के अफसरों को शामिल होना था. आबकारी विभाग को छोड़कर सभी विभाग के अफसर पहुंचे. आबकारी विभाग से सूचना तक नहीं आई कि अफसर आएंगे या नहीं. बताते हैं कि इस पर एसीएस रेणु पिल्ले ने पूछा- आबकारी से कोई नहीं आया? सारे अफसर एक-दूसरे का चेहरा देखकर हंस पड़े. अफसरों की हंसी ये बताने के लिए काफी थी कि आबकारी विभाग से आखिर कोई क्यों नही आया ? दरअसल आबकारी विभाग के विशेष सचिव ए पी त्रिपाठी समेत कुछ अफसर ईडी के रडार में आ गए थे. विभाग दहशत में था. जब दहशत हो तो खुद पर नियंत्रण रख पाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, ऐसे में भला तंबाकू नियंत्रण की किसे पड़ी थी…

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मंत्रालय की सीढ़ियों पर सिगरेट की कश!

कुछ काम ऐसे होते हैं, जो करते हुए नजर आने चाहिए. इस तरह के कामों में नतीजों की उम्मीद बेमानी होती है. तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम भी एक ऐसा ही काम है. सरकारों की प्रियोरिटी में इसकी जगह सिर्फ इतनी है कि कुछेक साल के अंतराल में एक बैठक कर ली जाए बस. भारी भरकम बजट वाला कार्यक्रम होता, तब शायद दिलचस्पी ज्यादा होती. खैर, पिछले दिनों मंत्रालय में जब तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम की समीक्षा चल रही थी, तब एसीएस ने पूछा कि पिछली बैठक कब हुई थी और तब बैठक में लिए गए फैसलों पर कितना अमल हुआ? मालूम पड़ा कि पिछली बैठक 21 जनवरी 2015 को हुई थी. बैठक के एजेंडे में यह बिंदु भी था कि सरकारी कार्यालयों-इमारतों को तंबाकू मुक्त क्षेत्र बनाया जाए. यह मुद्दा जैसे ही आया, एक अफसर ने कहा- मंत्रालय की सीढ़ियों में तंबाकू छोड़ने की अपील लिखी हुई है, मगर यही सबसे मुफीद ठिकाना है, जहां ना केवल तंबाकू खाया जाता है, बल्कि सिगरेट की कश फूंकी जाती है. तरह-तरह की चर्चाएं बैठक में हुई, अमल कितनों पर होगा, मालूम नहीं. अगली बैठक कब होगी, यह भी मालूम नहीं…