बोया पेड़ बबूल का..
सूबे की अफसर बिरादरी में कई चेहरे ऐसे थे, जिन्होंने अपना दायरा लांघ दिया था. कुछ दबाव में ऐसा कर गए. कुछ जोश में होश खो बैठे. कुछ अफसर ऐसे भी थे, जो चलते थे सरकार की मर्जी से मगर अपनी एक सीमा रेखा खींच रखी थी. आड़े तिरछे काम बताकर सरकार जब सीमा रेखा लांघने कहती, अफसर छुट्टी पर चले जाते या सरकार उनकी छुट्टी कर देती. अफसरों की एक बिरादरी ऐसी थी, जिनकी रीढ़ हमेशा सीधी रही. सरकार ने इन अफसरों को आराम का भरपूर मौका दिया. सरकार जानती थी कि दबेंगे नहीं, अफसर कहते थे झुकेंगे नहीं. एक अंडरस्टैडिंग बन गई थी. पांच साल कट गए. कुछ यहीं रह गए. कुछ ने दिल्ली का रास्ता पकड़ लिया था. अब सुना है कि लौटने की तैयारी चल रही है. वैसे जब से नई सरकार काबिज हुई है. पिछली सरकार के होनहार अफसर संबंध बहाली में जुट गए हैं. कुछ ने तो बीजेपी और संघ से अपनी रिश्तेदारी ढूंढ ली है. कुछ ढूंढ रहे हैं. मगर बीजेपी ने ऐसे अफसरों की पूरी सूची बना रखी है. एक आला नेता ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘ ये बीजेपी है. कहने में नहीं, करने में भरोसा करती है. वैसे भी कहावत है कि बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होए.’
हवा का रुख
मुख्यमंत्री अपने दो उप मुख्यमंत्रियों के साथ मंत्रालय में बैठक ले रहे थे कि एक कारोबारी बुके लेकर पहुंच गए. मालूम पड़ा कि किसी अफसर ने मंत्रालय की पांचवी मंजिल (मुख्यमंत्री कार्यालय) तक जाने का जुगाड़ जमा दिया था. भीतर बैठक चल रही थी. कारोबारी को इंतजार करना पड़ा. इस बीच एक शख्स ने टिप्पणी कर कहा, आप की तो भूपेश सरकार में खूब चलती थी? कारोबारी के हावभाव बदल गए. रामगोपाल अंकल-गिरीश अंकल से गलबहियां कर सीएम हाउस तक के अपने संबंधों पर रुतबा जमाने वाले कारोबारी ने खूब दुखड़ा रोया. कहने लगे, मैंने अपनी जिंदगी में इतनी अंहकारी सरकार नहीं देखी थी. भ्रष्टाचार की तो मीनारें तन गई. सरकार, सरकार ना रही, माफिया बन गई. अफसरों पर से तो सरकार का भरोसा ही खत्म हो गया था. अब सब ठीक हो जाएगा. बीजेपी की सरकार आ गई है. इतना सुन वहां बैठे अफसर एक-दूसरे की ओर मुंह ताकते रह गए. सबको समझने में वक्त नहीं लगा कि नई सरकार के आते ही हवा का रुख बदल गया है. मौसम के मिजाज में नरमी आ गई है. ये बात और है कि कहीं यह सब देख नई सरकार के मिजाज में गर्माहट ना आ जाए.
तलवार की धार
मध्यप्रदेश और राजस्थान में शपथ लेते ही मुख्यमंत्री ने सीएम सचिवालय में अफसरों की नियुक्ति कर दी. इधर छत्तीसगढ़ में अफसरशाही इंतजार कर रही है कि सीएम सचिवालय कौन देखेगा? कई काबिल अफसरों के नाम सुर्खियों में हैं. मगर आदेश है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रहा. इस बीच खबर है कि कई अफसरों की लाॅबिंग भी चल रही है. मुख्यमंत्री सुन सबकी रहे हैं. मगर लगता है उनके दिमाग में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है. फिलहाल यह कोई नहीं जानता की सबसे मजबूत माने जाने वाले सीएम सचिवालय का चेहरा कौन होगा? पिछले दिनों मुख्यमंत्री साय देर शाम पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह से मिल आए. रमन 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहे हैं. माना जा रहा है कि अफसरों की नियुक्ति को लेकर रायशुमारी की गई होगी. इन सारी कवायद के बीच एक बात तो तय है कि मुख्यमंत्री सीधे-सरल तो हैं ही, तलवार की धार पर चलने का हुनर भी जानते हैं. सरकार चलाना तलवार की धार पर सवार होने जैसा ही है.
अवसाद में डूबे नेताजी
विधानसभा चुनाव हारने के बाद एक दिग्गज नेता गहरे अवसाद में डूब गए हैं. सदमा ऐसा लगा है कि उनका पब्लिक इंट्रेक्शन लगभग खत्म हो गया है. मानसिक शांति के लिए किसी ने प्राणायाम की सलाह दी, मगर कोई नुस्खा काम नहीं कर रहा. राजनीति का क ख ग घ तक नहीं समझने वाले नए नवेले नेता से चुनाव हारने की कल्पना उन्होंने नहीं की थी. जब नए नवेले नेता को बीजेपी ने टिकट दिया था, तब दिग्गज नेता लात तान कर सोने का इरादा बना चुके थे. अपनी कोर टीम की एक बैठक में बोले, चुनाव हम जीत रहे हैं, लेकिन नए नवेले नेता का प्रचार देख नेताजी की सांसें ऊपर नीचे होने लगी. कोर टीम को दोबारा बुलाया और कहा, पूरी ताकत झोंक दो. राज्य की सियासत में नेताजी का कद बड़ा रहा है. मध्यप्रदेश के जमाने से विधायक-मंत्री बनते आ रहे थे. नतीजे ऐसे आएंगे इसकी उम्मीद उन्होंने सपने में भी नहीं की थी. हार मिली, अब ज्यादातर वक्त चिंतन में बीत रहा है. नेताजी को समझना चाहिए था. जुबानी चाशनी भर से जनमत नहीं मिलता. जनता से जुड़ना होता है. भरोसा जीतना होता है. काम करना होता है. खैर अब क्या ही किया जा सकता है.
चौंकाने वाला फैसला !
बीजेपी विधायक दल ने विष्णुदेव साय को अपना नेता चुन बतौर मुख्यमंत्री ताजपोशी कर दी. अरुण साव और विजय शर्मा उप मुख्यमंत्री बनाए गए. शपथ ग्रहण हो गया. अब हर कोई टकटकी लगाए बैठा है कि मंत्रिमंडल में कौन-कौन चेहरे लिए जा रहे हैं. मोदी-शाह वाली ये नई बीजेपी खूब प्रयोग करती है. चौंकाने वाले फैसले लेती है. सारे चेहरों को बदलकर भी सरकार चलाया जा सकता है, ऐसा प्रयोग गुजरात में कर चुकी है. मंत्रिमंडल में चल रही लेटलतीफी के बीच कई नेताओं को यह संशय होने लगा है कि बीजेपी हाईकमान कहीं इस तरह का प्रयोग करने का इरादा तो नहीं रख रही. ना केवल छत्तीसगढ़, बल्कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी मंत्रिमंडल का गठन अब तक नहीं किया जा सका है. ऐसे में सीनियर नेताओं की धड़कने बढ़ गई हैं कि कहीं वे सब सिर्फ विधायक बनकर तो नहीं रह जाएंगे. एक मात्र समीकरण नेताओं की उम्मीद बांधता दिखता है कि लोकसभा चुनाव करीब है. विधानसभा चुनाव जीतकर आने वाले नेता अपने-अपने इलाकों के धुरंधर हैं. नतीजे पलटाने में माहिर खिलाड़ी कह दे तो बड़ी बात नहीं. ऐसे में नए-पुराने चेहरे मंत्रिमंडल में नजर आ सकते हैं. ऐसा ना किया, तो नाराजगी मोल लेने जैसी नौबत आ जाएगी. बीजेपी में नेता कुछ कहेंगे तो नहीं, मगर चुनाव में उनका चुप रहना भारी पड़ सकता है.
दावेदार कौन?
मोदी कैबिनेट में कई नौकरशाहों ने जगह बनाई थी. ऐसे में छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतकर आने वाले नए चेहरों में रायगढ़ विधायक ओ पी चौधरी का मंत्री बनना तय माना जा रहा है. नौकरशाह रहे हैं. प्रशासन की बेहतर समझ है. युवाओं में लोकप्रिय है. जब दंतेवाड़ा कलेक्टर थे, तब अपने नवाचार को लेकर प्रधानमंत्री अवार्ड पा चुके हैं. ये फार्मूला चला तो केशकाल जीतने वाले पूर्व आईएएस नीलकंठ टेकाम भी बस्तर कोटे से रेस में आ सकते हैं. टेकाम आदिवासी चेहरा भी हैं. हालांकि बस्तर से केदार कश्यप का मंत्री बनना तय है. इसके अलावा पूर्व मंत्री लता उसेंडी एक मजबूत दावेदार हैं. वन मंत्री रह चुके विक्रम उसेंडी भी एक चेहरा है. इन सबके बीच किरण देव की छवि भी बेहतर है. बस्तर संभाग का जिक्र छिड़ेगा, तो इन चेहरों पर रायशुमारी तय है. रायपुर संभाग में मजबूत दावेदारों में बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत के नाम है ही. दुर्ग संभाग से विजय शर्मा के अलावा डोमनलाल कोर्सेवाड़ा और दयालदास बघेल में से किसी एक और को मंत्री बनाया जा सकता है. वहीं बिलासपुर संभाग से अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, धर्मजीत सिंह, पुन्नूलाल मोहिले जैसे कई नाम हैं. मंत्री की रेस में ये नाम आगे चल रहे हैं. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरगुजा से आते हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि सरगुजा से एक और चेहरा कैबिनेट में लिया जा सकता है. रामविचार नेताम, रेणुका सिंह, गोमती साय जैसे नाम हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है. नाम तो ढेरों हैं, दिक्कत ये है कि बीजेपी समीकरणों के गणित में जा उलझी है. मुख्यमंत्री अपने दोनों उप मुख्यमंत्रियों के साथ दिल्ली दौरे पर जा रहे हैं. उम्मीद है कि लौटने पर उनके हाथों कैबिनेट की सूची होगी. जाहिर है तब भी कईयों के दिल टूटेंगे. पर राजनीति है. उम्मीदें टूटती-जुड़ती रहती हैं.