Column By- Ashish Tiwari

वकीलों की बल्ले-बल्ले- (1)

सूबे में कांग्रेस सरकार के काबिज होने के बाद से कई धंधे जमकर चमके. इन्हीं में से कोर्ट-कचहरी का धंधा भी खूब फला फूला. वैसे ये ऐसा धंधा है, जो कभी मंदा नहीं होता. बस देरी है, तो नाम जमाने भर की. सरकार आने के पहले हफ्ते से ही कई बड़े हाई प्रोफाइल मामले फूट पड़े. सो कोर्ट-कचहरी की दौड़ शुरू हो गई. इधर याचिका पक्ष, उधर सरकार. दोनों तरफ के वकीलों की बल्ले-बल्ले. मामले हाई प्रोफाइल थे, तो सरकार को भी हाई प्रोफाइल वकील करने पड़े. हाईकोर्ट हो या फिर सुप्रीम कोर्ट. हर जगह सरकार ने नामी वकीलों की फौज खड़ी कर दी. पैरवी के एवज में वकीलों को मोटी फीस दी गई. बताते हैं कि कांग्रेस से जुड़े देश के एक दिग्गज नेता, पूर्व मंत्री और वरिष्ठ वकील को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट आकर पैरवी करने पर 60 लाख रुपए का भुगतान किया गया. वकील साहब ने महज दो पैरवी में ही अपनी आमद दी थी. इसी तरह, ईओडब्ल्यू-एसीबी में दर्ज अलग-अलग मामलों को राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में देख रहे एक और नामी वकील को अब तक सरकार ने 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान किया है. वैसे मोटी फीस हासिल करने वाले वकीलों की एक लंबी चौड़ी सूची है. रकम तो खरचनी होगी ही, आखिर सरकार को भी कचहरी के रास्ते ‘इंसाफ’ चाहिए
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एक दिन की फीस 35 लाख रुपए – (2)

नामी गिरामी वकीलों की धमक भी कम नहीं. दिल्ली के एक वकील साहब ने राज्य के भीतर एक मामले की पैरवी करने के लिए जो डिमांड भेजा, वह सिर घुमाने वाली है. आउट स्टेशन फीस के लिए साहब वैसे 50 लाख रुपए प्रति दिन/प्रति मैटर चार्ज करते हैं, लेकिन कुछ करीबियों की सिफारिश पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पैरवी के लिए 35 लाख रुपए प्रति दिन का कोटेशन भेज दिया. कोटेशन में सभी दरें साफ-साफ लिखकर भेजी गई है. मसलन वकील साहब को प्रेस कांफ्रेंस करना होगा, तब एक लाख रूपए प्रति घंटे अलग से चार्ज करेंगे. जूनियर वकील के लिए एक लाख रुपए की दर तय है. हवाई यात्रा, रुकने की व्यवस्था और खाने-पीने का इंतजाम अलग. बिलासपुर में हवाई पट्टी है, सो नामी वकील चार्टर्ड से पैरवी करने सुबह आते हैं और चंद घंटों बाद लौट जाते हैं.
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जब CM ने कलेक्टरों से कहा- ‘पत्रकार बन जाइए’

CM भूपेश कलेक्टर्स कांफ्रेंस ले रहे थे. कलेक्टरों ने भरी कांफ्रेंस से ही अपने पत्रकार दोस्तों की सुध ले ली. टेक्स्ट मैसेज में पंच लाइन भेजने लगे. चर्चा है कि इसकी खबर एसीएस तक जा पहुंची. उन्होंने एक आईजी से कांफ्रेंस में मौजूद जयचंद को ढूंढने का जिम्मा सौंपा. बात जब सीएम तक पहुंची, तो कांफ्रेंस के अगले ढाई मिनट खरी-खोटी सुनाने के लिए आरक्षित कर दिए गए. खबर की पंच लाइन भेजने वाले कलेक्टरों को सीएम का एक पंच पड़ा, ये कहते हुए कि कलेक्टरी छोड़कर आप लोग पत्रकार ही बन जाइए. यहां बैठकर क्या करेंगे. बस फिर क्या था. ज्यादातर लोगों ने मोबाइल की तरफ झांका तक नहीं.
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CM का कान्फिडेंस

कान्फिडेंस के मामले में सीएम साहब का कोई जवाब नहीं. कलेक्टर्स-एसपी कांफ्रेंस की ही बात ले लो. साहब ने बड़े ही कान्फिडेंस से कहा- किसान, गरीब-मजदूर, आदिवासी, युवा, महिला समेत ऐसे ढेरों मुद्दों पर वह अकेले ही विपक्ष को पटखनी दे सकते हैं. इन सबकी उन्हें कोई फिक्र नहीं है, लेकिन सांप्रदायिकता, धर्मांतरण जैसे मुद्दों को हथियार बनाकर बीजेपी चुनाव लड़ने जा रही है, जिसे कलेक्टरों और एसपी को संभालना है. सुनाई पड़ा है कि साहब ने ये तक कह दिया कि इस वक्त जिले की कमान संभालने वाले ज्यादातर कलेक्टर-एसपी ने राज्य में कांग्रेस को सिर्फ विपक्ष में देखा था, बीजेपी को ही सत्ता में देखते आए हैं. कई अधिकारियों की बीजेपी वालों से अच्छी मित्रता भी हैं. बीजेपी के काम-धाम को बखूबी समझते हैं, तो उन्हीं अनुभवों का लाभ लेकर सख्ती बरतनी है. एक अधिकारी ने छूटते ही टिप्पणी की कि अब हम भी ‘कार्यकर्ता’
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CM बोले, किसी बीजेपी नेता को टिकट नहीं

राजनीतिक समझ में सीएम भूपेश बघेल को कोई सानी नहीं. अनुभव कहें या फिर दिल्ली में बीजेपी नेताओं के भीतर उनकी घुसपैठ. भीतर की जानकारी छानकर ले आए. कलेक्टर्स-एसपी कांफ्रेंस में उनकी यह टिप्पणी काबिलेगौर है कि बीजेपी में किसी भी बड़े नेता को टिकट नहीं मिल रही है. बकायदा उन्होंने कुछ के नाम भी लिए, जिनमें रायपुर के एक दिग्गज विधायक, दुर्ग-भिलाई और राजनांदगांव के बड़े कद के नेता शामिल रहे. खा म खां बीजेपी के बड़े नेता जोरआजमाइश में जुटे हैं कि कब सत्ता मिले और कब मलाई खाई जाए, पर टिकट मिल भी रही है या नहींं, ये मालूम नहीं. बीच-बीच मे उन्हें कका से जाकर मिलते-जुलते रहना चाहिए. उनके पास अपनी पार्टी के अलावा दूसरी पार्टियों का भी पूरा बहीखाता मौजूद है.
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सुर्खियों में IFS अधिकारी

आदिवासी महोत्सव को लेकर संस्कृति विभाग के अधिकारियों में ठन गई है. संचालक और उप संचालक के बीच जमकर विवाद हुआ है. मसला भी सुनिए, दरअसल आदिवासी महोत्सव के लिए संचालक, उप संचालक को जो जिम्मेदारी दे रहे थे, वह स्टॉल की थी, जो उन्हें नागवार गुजरी. तपाक से उप संचालक ने कहा कि मैं एक अधिकारी हूं और चपरासी की जिम्मेदारी नहीं संभालूंगा. बात बहस तक चली गई. सुनने में आया है कि संचालक, उप-संचालक ने एक-दूसरे को देख लेने तक की धमकी दे दी. बताते हैं कि उप-संचालक ने इस बात की शिकायत मंत्री से की है. संचालक के खिलाफ अब जल्द ही एसटी आयोग में भी मामला ले जाने की तैयारी की जा रही है.
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पिछला एपिसोड : पॉवर सेंटर : छत्तीसगढ़ का ‘जी-11’….सीएम चढ़े गेड़ी, अधिकारी खेले गोल्फ…. – आशीष तिवारी

पाॅवर सेंटर : छत्तीसगढ़ का ‘जी-11’….सीएम चढ़े गेड़ी, अधिकारी खेले गोल्फ…. – आशीष तिवारी