Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

‘छपाई का अब हिसाब’

ईओडब्ल्यू-एसीबी के कंधे चौड़े और मजबूत होते दिख रहे हैं. करीब आधा दर्जन घपले-घोटालों की जांच चल रही है. इतने बड़े मामलों की एक साथ जांच कभी नहीं की गई. शराब,कोल, कस्टम मिलिंग और महादेव एप घोटाला के बाद अब खबर आई है कि पाठ्य पुस्तक निगम के छपाई घोटाले की जांच के लिए ईओडब्ल्यू ने शासन से अनुमति मांगी है. एक पुरानी शिकायत के आधार पर अनुमति मांगे जाने की खबर है. यह शिकायत पिछली सरकार में की गई थी, लेकिन फाइल धूल खाती पड़ी रही. धूल हटा कर अब शासन को भेजी गई है. आरोप है कि पाठ्य पुस्तक निगम में बेहिसाब छपाई हुई, मगर नोटों की. पेपर खरीदी से लेकर प्रिंटिंग तक खूब गड़बड़झाला किया गया. फिलहाल जांच के घेरे में तब के अफसर आ सकते हैं. अफसरों से होते हुए बात नेताओं तक जा सकती है. बताते हैं कि छपाई करते-करते यहां के एक अफसर ने चंद सालों में अकूत संपत्ति खड़ी की. राजनांदगांव में दो-दो फार्म हाउस खरीद लिया. शिवनाथ नदी के करीब पचास एकड़ से ज्यादा जमीन खरीद ली. भिलाई में करोड़ों का मकान और ना जाने क्या-क्या? तत्कालीन सरकार दुधारू भैंस बन गई थी. भैंस के दूध की मलाई ज्यादा मोटी होती है. अफसरों-नेताओं ने जमकर दुहा. मोटी मलाई से घी निकाला और घी सोटते रहे. चेहरे पर दिख रही चमक उस घी की ही है. लगता है कि नई सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी को उन अफसरों और नेताओं के चेहरे की चमक निकालने का जिम्मा सौंप दिया है.

‘डायरी’

कंपलसरी रिटायर किए गए आईपीएस जी पी सिंह को कैट ने बहाल करने का आदेश दिया है. जी पी सिंह को इस आदेश के बाद रह रहकर अंग्रेजी की वह कहावत याद आ रही होगी, जिसमें कहा गया है कि Patience can cook a stone. इसका मतलब है कि धैर्य पत्थर को भी पका सकता है. छिन लिए गए ओहदे को लड़कर पा लेना बड़ी बात होती है. जी पी सिंह लौट रहे हैं, तो इधर कई अफसरों और नेताओं की धड़कन बढ़ गई है. वैसे भी जीपी सिंह को देखने वालों का नजरिया हमेशा से ही बटा रहा है. नजरों के हर ठहराव में एक अलग किस्म की शख्सियत जीपी सिंह के साथ चलती रही. अब सर्विस में बहाल किए जाने के आदेश के साथ जी पी सिंह डीजीपी की दौड़ में शामिल हो गए हैं. पहले से कई अफसर हैं, जो सपना संजोकर चल रहे थे कि जैसे ही अशोक जुनेजा की विदाई होगी, उनकी ताजपोशी हो जाए. जीपी सिंह 1994 बैच के अफसर हैं. एसआरपी कल्लूरी और हिमांशु गुप्ता उनके बैच मेट हैं. इस बैच से पहले 1992 बैच के अफसर पवन देव और हिमांशु गुप्ता हैं. सबकी अपनी दावेदारी है. इन दावेदारों में अब जीपी सिंह भी एक हैं. हालांकि अब ऐसा नहीं है कि सीनियरिटी होने भर से सरकार किसी अफसर को डीजीपी बना दे. अब ये कल्चर खत्म हो चुका है. सरकार की प्रायोरिटी में जो फिट होगा, डीजीपी वहीं होगा. बहरहाल जीपी सिंह की अपनी प्रायोरिटी क्या होगी? इस वक्त ये ज्यादा मायने रख रखने वाली बात होगी. चर्चा है कि उनकी लाल डायरी में कई नाम दर्ज हैं!

‘बैरक नंबर 15’

जेल तब जेल ना था. आरामगाह था. लोहे की सींखचों के उस पार के ठाठ बाठ के खूब किस्से बाहर निकल आते थे. खानसामा से लेकर सेवादार तक. सब कुछ था. कोल लेवी घोटाले के आरोपियों को जेल के भीतर जो सुख मिला, उसे याद कर अब शराब घोटाले के आरोपी अपनी किस्मत को कोस रहे है. पांच सौ करोड़ के कोल लेवी घोटाले की हैसियत दो हजार करोड़ के शराब घोटाले के आगे बौनी ही थी. घोटाला छोटा था, उसमें शामिल लोग बड़े थे. सरकार की तिमारदारी पूरी शिद्दत से की थी. जेल तबकी सरकार की थी. दो हजार करोड़ का घोटाला बड़ा है. मगर, जेल नई सरकार की है. तिमारदारी का मौका नहीं मिला. मिला, तो बैरक नंबर 15. किस्म-किस्म के अपराध के आरोपी इस बैरक के जागीरदार हैं. यहां सबकी हैसियत एक जैसी है. सबकी जमीन एक है. और सबको इंडियन स्टाइल में बैठना पड़ता है. करोड़ों के घोटाले हर किसी को सींखचों के भीतर सहूलियत दे दे, यह जरूरी नहीं. एक वक्त था, जब कोल लेवी घोटाले के आरोपी जेल के भीतर मिल रही तमाम सुविधाओं के बावजूद अपनी किस्मत को इस बात पर कोसते थे कि पांच सौ करोड़ का छोटा घोटाला होने पर भी उन्हें कोर्ट कचहरी से राहत नहीं मिल रही. उधर दो हजार करोड़ का बड़ा घोटाला करने वाले राहत पर राहत पा रहे हैं. तब इस बात का इल्म नहीं था कि उनके हिस्से का जो सुख उन्हें मिल रहा है, आगे चलकर वह बैरक नंबर 15 तक नहीं पहुंच पाएगा.

‘चिट्ठी’

देश में आम चुनाव की आचार संहिता लागू हैं. आचार संहिता के अपने नियम कायदे हैं. सरकार कुछ ज्यादा कर नहीं सकती. मगर ऐसा भी नहीं है कि प्रचलित व्यवस्थाओं पर आचार संहिता बताकर अड़चन की दीवार खड़ी कर दी जाए. पिछले दिनों यूपीएससी ने बीच आचार संहिता में अपने नतीजे जारी किए थे. पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश ने हाल ही में बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे जारी कर दिए. इधर छत्तीसगढ़ में खबर सुनाई पड़ी है कि दसवीं-बारहवीं की परीक्षा के नतीजे जारी करने की अनुमति मांगे जाने संबंधी एक चिट्ठी माध्यमिक शिक्षा मंडल ने लिखी है. चिट्ठी में आचार संहिता का हवाला देकर पूछा गया है कि क्या बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे जारी किए जा सकते हैं? अब भला आचार संहिता का नतीजों से क्या लेना-देना. लाखों बच्चे और उनके माता-पिता नतीजों के इंतजार में बैठे है.

‘क्या लिया-क्या दिया’

इधर बोर्ड के नतीजे जारी करने के लिए चिट्ठी लिखी जा रही है. उधर राजस्व विभाग में आचार संहिता लागू होने के बाद बड़ा खेल, खेले जाने की चर्चा छिड़ पड़ी. ये चर्चा विधानसभा चुनाव के वक्त लगी आचार संहिता के दौरान की है. पटवारी से आरआई प्रमोशन के लिए ली गई परीक्षा में खूब वारे न्यारे किए गए. कहा जा रहा है कि इस परीक्षा में ओएमआर शीट पर मोबाइल नंबर दर्ज करने का विकल्प दिया गया था, जबकि ट्रांसपेरेंसी के लिए ऐसा विकल्प नहीं दिया जा सकता. सैकड़ों पदों के लिए प्रमोशन किया जाना था. चर्चा है कि पर्दे की आड़ में ले देकर प्रमोशन फिक्स किया जा सके, इसलिए यह सब अरेंजमेंट किया गया. यूपीएससी-पीएससी जैसी संस्थाएं ही आचार संहिता लगने पर भी नियमित भर्ती की परीक्षाएं आयोजित करती हैं. जबकि राज्य सरकार व्यापम से होने वाली भर्तियों को आचार संहिता का हवाला देकर रोक देती है. यह विभाग की अपनी मनमानी रही होगी कि बीच आचार संहिता में परीक्षा आयोजित कर दिया गया. प्रमोशन कर दिया. क्या लिया-क्या दिया. कोई नहीं जानता.

‘रंगत’

पिछले दिनों एक जांच एजेंसी के दफ्तर के एक कमरे के भीतर से जोर जोर से चिल्लाने की आवाज बाहर आ रही थी. पहले पहल लोगों को लगा कि किसी की पिटाई चल रही है. आवाज कुछ ऐसी ही थी. बाहर बैठे लोगों ने इस पर बात शुरू कर दी. एक ने कहा कि, यह आवाज जानी पहचानी है. गीदड़ भभकी देने वाले की लग रही है. दूसरे ने कहा- मिमियाने की आवाज लग रही है. तीसरे ने कहा, एजेंसी तरह-तरह के घोटाले की जांच कर रही है. जांच तो फिर जांच होती है. कोई मान मनौव्वल करने से कुछ बता दे, ये मुमकिन कहां. कलई खोलनी पड़ती है. बाल की खाल उधेड़नी पड़ती है. चर्चा चल ही रही थी कि कमरे का दरवाजा खुला. लोगों की गलतफहमी दूर हो गई. जो शख्स भीतर था, बाहर आने पर उसके चेहरे पर किसी तरह की शिकन नहीं थी. चेहरे की जिस रंगत के साथ वह भीतर गया था, बाहर आने पर वही रंगत बनी हुई थी. खैर, कई बार रंगत बदलने पर अहसास नहीं कराया जाता. ऊपर उठने के बाद इमेज इंपोर्टेंट हो जाता है. दर्द भी हो, तो छिपाना होता है. भाईजान काफी ऊपर उठ चुके हैं.

‘सांय-सांय’

राज्य में तीन चरणों का चुनावी मुकाबला 7 मई को खत्म हो जाएगा. लोकसभा की 11 सीटों के लिए चुनावी मुकाबले के लिए राजनीतिक दलों ने खूब पसीना बहाया. सबसे ज्यादा भाजपा नेताओं के पसीने टपके. कांग्रेस के नेता सिमटे दिखाई पड़े. कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में जन समर्थन जुटाने चंद सीटों पर ही दिल्ली के नेता पहुंच सके. इस पूरे चुनावी अभियान में सबसे ज्यादा दौरे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने किए. आंकड़ें बताते हैं कि पूरे चुनाव में सीएम साय ने सांय-सांय दौरा किया. 66 जनसभा ली. 11 लोकसभा सीटों में हुए 11 कार्यकर्ता सम्मेलन में शरीक हुए. 24 सामाजिक बैठकों में हिस्सा लिया. बीते 45 दिनों में कुल 106 बार मुख्यमंत्री जनसभा, कार्यकर्ता सम्मेलन और सामाजिक बैठकों में शामिल हुए. सीएम साय के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई भाजपा नेताओं की सभाएं हुई. वहीं कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सभाएं हुई. चुनावी मोर्चे पर दमखम तो बीजेपी ने ज्यादा दिखाया. मगर चुनाव की समझ अब बदल गई है. जनता के मन में क्या है, यह कोई नहीं जानता. सिवाए ईवीएम के.