Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

खरपतवार

जंगलों से खरपतवार हटाने के नाम पर जंगल विभाग ने तीन सालों में 273 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. जंगल बचाए नहीं बच रहे, ऊपर से खरपतवार हटाने के नाम पर एक बड़ी रकम खर्च कर दी गई. शायद इतनी रकम से एक नया मैन मेड जंगल खड़ा हो जाता. भाजपा विधायक राजेश मूणत के एक सवाल के जवाब में सरकार ने यह आंकड़ा दिया है. 2021-22 में 211 करोड़ 50 लाख, 2022-23 में 50 करोड़ 70 लाख और 2023-24 में 10 करोड़ 97 लाख रुपए खरपतवार के नाम पर खर्च किए गए. यह राशि कैम्पा मद से ली गई थी. कैम्पा के अपने नियम कायदे हैं. इसकी ठीक ढंग से आडिट करा दी जाए, तो मालूम पड़ेगा कि एक सुव्यवस्थित भ्रष्टाचार कैसे किया जाता है. खैर, इस पर बात फिर कभी. मूल बात खरपतवार की है. जंगल महकमे के एक अफसर ने कहा कि ‘खरपतवार जंगलों में नहीं, अफसरों के दिमाग में उग गया है’. जंगलों में खरपतवार हटाने का कोई माई बाप नहीं है. विभाग के अफसर आड़े तिरछे किस्म के खर्चों का बहीखाता यही से मेंटेन करते हैं. नेताओं की चाकरी से लेकर बड़े अफसरों की तिमारदारी के बंदोबस्त की जिम्मेदारी इसी ‘खरपतवार’ पर है. खरपतवार दरअसल असली सोना है, जिसकी परख जौहरी को ही है. खरपतवार हटाना गैर जरूरी काम हो, ऐसा भी नहीं है. हर खरपतवार हटाया जाना चाहिए, फिर चाहे वह विभाग में उगे खरपतवार ही क्यों ना हो.

‘चाक’ के धुंधले निशान

स्कूलों में ब्लैक बोर्ड पर सफेद चाक से लिखकर पढ़ाते मास्टर साहब याद होंगे ना. मैथमेटिक्स की क्लास में तरह-तरह के फार्मूले ब्लैक बोर्ड पर लिखते और मिटाते. ‘चाक’ बड़ी ही खूबसूरती से ब्लैक बोर्ड पर अपना निशान छोड़ जाता है. डस्टर उन निशानों को एक झटके में मिटा देता है. कई बार ‘चाक’ के कुछ धुंधले निशान बाकी रह जाते. सूबे में भी एक ‘चाक परियोजना’ आई. मकसद यही था कि स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके. विश्व बैंक और केंद्र की मंजूरी मिली. तय हुआ कि पांच सालों में राज्य को 3200 करोड़ रुपए मिलेंगे. करीब साढ़े 400 करोड़ रुपए की पहली किस्त भी आ गई. इस पहली किस्त ने ही चाक की धुंधली तस्वीर ब्लैक बोर्ड पर छोड़ दी है. इस चाक ने अफसरों के मैथमेटिक्स फार्मूले के निशान छोड़ दिए. सरकार का नियम कायदा कहता है कि तय सीमा के ऊपर खर्च करने की सूरत में वित्तीय और प्रशासकीय स्वीकृति जरूरी है. बताते हैं कि यहां करीब 65 करोड़ रुपए बगैर स्वीकृति के खर्च कर दिए गए. करियर काउंसलिंग, संस्थाओं से अनुबंध, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदी के लिए यह रकम खर्च कर दी गई. चर्चा है कि अब इस मामले पर जांच कराए जाने की तैयारी चल रही है. खबर है कि मंत्री ने भी इस शिकायत के बाद जिम्मेदारों पर अपनी आंखे तरेर दी है.

जरा एक नजर इधर भी

आदिवासी परियोजना के नाम पर भारत सरकार ने विद्युत कनेक्शन के लिए पैसा भेजा था. अफसरों ने पूरे बस्तर में सोलर पैनल लगवा दिया.आनन फानन में ठेकेदारों को पूरा पेमेंट भी कर दिया गया. 90 फीसदी सोलर पैनल कंडम हो गए. आदिवासियों का विकास धरा का धरा रह गया. करोड़ों रुपए फूंक दिए गए. बताते हैं कि काम बिजली का था, नोडल एजेंसी जल संसाधन को बनाया गया था. परियोजना से जुड़े सूत्र कहते हैं कि 50 से 60 फीसदी तक कमीशन वसूला गया. चुनाव के वक्त जब इस मामले में हल्ला मचा, तब नोटिस जारी कर इतिश्री कर लिया गया था. चुनाव बाद सूबे में नई सरकार काबिज हो गई. मालूम नहीं आदिवासियों के हिस्से के उजियारे से खुद को रोशन करने वाले जिम्मेदारों का क्या हुआ?

रम गए ‘रमन’

भाजपा की सरकार बनने के बाद डाॅ.रमन सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल थे. बतौर मुख्यमंत्री कामकाज का लंबा अनुभव था ही, मगर आलाकमान ने नए समीकरण बुन रखे थे. रमन की ताजपोशी विधानसभा अध्यक्ष के रूप में कर दी. आमतौर पर कम बोलने वाले रमन सिंह की नई भूमिका पर किस्म-किस्म की चर्चाएं थी, लेकिन सदन के भीतर उनकी बैटिंग ने सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष की भी जमकर वाहवाही लूटी है. राजनीति में उनके धुर विरोधी रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी उनकी तारीफ करने में पीछे नहीं रहे. सधे हुए बल्लेबाज की तरह रमन विधानसभा अध्यक्ष के रूप में बैटिंग कर रहे हैं. सदन में उठने वाले किसी मामले में मंत्री से जांच की घोषणा करवानी हो या फिर सदस्यों के उठाए जाने वाले मुद्दों पर अपना समर्थन देकर सत्ता पक्ष पर दबाव बनाना हो, रमन सिंह हर मोर्चे पर अध्यक्ष की गरिमा के अनुकूल काम कर रहे हैं. नए सदस्यों की हौसलाफजाई करने से भी चूक नहीं रहे. जाहिर है इससे नए विधायकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा. ये बात और है कि एक विषय पर उमेश पटेल उनके रडार में आ गए थे. सदन ने उनका सख्त रूप भी देख लिया है. इस बहाने शायद यह संकेत दे गए कि जरूरत पड़ने पर वह सख्त हेड मास्टर की भूमिका में आ सकते हैं.

एक्शन में एसीबी

ईडी के बाद अब एसीबी भी शराब घोटाला मामले की जांच में कूद गई है. अफसर, नेताओं और कारोबारियों के गठजोड़ में जो कारगुजारियां की गई, उसकी कलई खोलने के इरादे से एसीबी एक्शन में है. रविवार तड़के एसीबी ने शराब घोटाले के सरदारों के ठिकानों पर दबिश दी. ईडी की जांच का दायरा PMLA (प्रिवेंशन आफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) में दिए गए प्रावधानों तक सीमित है. एसीबी और ईओडब्ल्यू भ्रष्टाचार के आरोपों पर तह तक जाकर जांच करेगी. ईडी ने अब तक की गई कार्रवाई का ब्यौरा एसीबी से साझा करते हुए प्रकरण दर्ज करवाया है. ईडी ने अपनी जांच में मनी लांड्रिंग (धनशोधन) को स्टैबलिश किया है. मनी लांड्रिंग तो हुआ, मगर मनी लांड्रिंग के लिए रकम कहां से आई? इस बात की जांच अब एसीबी कर रही है. अनवर ढेबर, अनिल टुटेजा, विवेक ढांड, निरंजन दास समेत शराब कारोबार से जुड़े समूह जांच के दायरे में है. ईडी की जांच के दौरान कुछ सलाखों के भीतर गए, कुछ बाहर रहे. अब एसीबी की जांच में कौन, कहां पहुंचेगा यह वक्त बताएगा. मगर इस बीच एक सवाल यह भी है कि, कहीं यह जांच किसी मोड़ पर जाकर ठहर न जाए ! भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई का दारोमदार अब एसीबी की जांच रिपोर्ट पर जा टिका है. रिपोर्ट में क्लीन चिट मिलने का मतलब है, पूरे मामले को शून्य पर ले जाना. कहीं यह सवाल न उठ खड़ा हो कि जब भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं, तो फिर मनी लांड्रिंग कैसा? फिलहाल यह सवाल ही है. एसीबी की जांच अभी शुरू हुई है. कई परते उधड़नी बाकी है. हर परत एक नई तस्वीर लेकर बाहर आएगी. यह एक ऐसा घोटाला है, जिसमें जितना भ्रष्टाचार जुड़ा है, उतनी ही राजनीति भी. ना जाने कौन सा तिलिस्म छिपा है इस घोटाले में.

चौंकाने वाली सूची

लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की पहली सूची जल्द आने वाली है. इस सूची में छत्तीसगढ़ की चार से पांच सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तय होने की चर्चा है. विधानसभा चुनाव में बनाए गए फार्मूले पर ही बीजेपी लोकसभा चुनाव में टिकट देनी की तैयारी कर रही है. आला नेताओं की कृपा चाह रहे वर्तमान सांसदों को मायूसी मिल सकती है. बीजेपी अंडर 55 एज ग्रुप के दावेदारों पर नजर बनाए हुए हैं. नए चेहरों के बूते बीजेपी चुनावी रण में कूदने की रणनीति पर काम कर रही है. ये देखना दिलचस्प होगा कि चौंकाने वाले नाम कौन-कौन से होंगे.