Column By- Ashish Tiwari, Resident Editor

‘तन गए मंत्री जी’

सरकार के कुछ मंत्री तन गए हैं. छह-सात महीने पहले जब सूबे में नई सरकार बन रही थी, तब ही इन्हें तनने का मौका मिल गया था. मंत्री जी इस उम्मीद पर पूरी तरह से खरे उतरे. वैसे भी प्रकृति का सिद्धांत है, जो बनता है, वह तन ही जाता है. मिट्टी में रोपा गया बीज पेड़ बनकर तनकर खड़ा होता है. ईंट,रेत,गिट्टी,’सीमेंट’ की मजबूती से बने मकान की दीवार बिल्कुल खड़ी सीधी तन जाती है. मंत्री जी इस सिद्धांत के अनुपालन में पूरी कर्मठता से डटे हैं. राजधर्म की पुरातन परंपरा के वाहक हैं. नई परंपरा गढ़ने में उनकी कोई रुचि नहीं. स्वभाव से मिलनसार हैं. सियासी गीत रचते-गुनगुनाते फर्श से अर्श तक पहुंच गए हैं. इन दिनों एक नए सुर पर रियाज कर रहे हैं. लय ठीक-ठाक रहा, तो उनका जीवन लयबद्ध हो जाएगा. बहरहाल मसला यह है कि पिछले दिनों मंत्री जी अपने इलाके की एक फैक्ट्री में पहुंच गए. फैक्ट्री बड़ी है, लेकिन फैक्ट्री चलाने वाला उसका उससे भी बड़ा है. जब से फैक्ट्री शुरू हुई है, मालिक झांकने तक नहीं आया. तनख्वाह पर रखे सीईओ, डायरेक्टर, जीएम सरीखे लोग फैक्ट्री चलाते हैं. मालिक उनसे रिपोर्ट लेता है. ठीक वैसे ही, जैसे अंबानी-अदाणी कई देशों की अपनी छोटी-मोटी फैक्ट्रियों को बस नाम से जानते होंगे. जमीन से उठकर आए मंत्री ने अपने आपको फैक्ट्री मालिक से ऊपर ही माना होगा. शायद तभी उन्होंने अपनी बात रखने के लिए सीधे फैक्ट्री मालिक से बात किए जाने की जिद पकड़ ली. उन्होंने प्रबंधन के लोगों को झटक दिया. सुनते हैं कि प्रबंधन के लोगों का रौब भी मालिक से कम न था. दो टूक कह दिया कि जो हैं, हम ही हैं. यहां के फैसले हम ही लेते हैं. मंत्री अपनी जिद पर अड़े थे, लौट आए. मालूम पड़ा कि उनका एक बड़ा फार्म हाउस बन रहा है. फैक्ट्री जाने के पीछे का कारण उनका यही फार्म हाउस था. तने हुए पेड़ की शाखा (कार्यकर्ता) उम्मीद से थी कि मंत्री बनते ही नेताजी उनका कुछ भला करेंगे. शाखाओं की उम्मीद टूट गई. अब वही शाखाएं मंत्री की कारस्तानियों पर नए-नए राग छेड़ रही है.  

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‘महाप्रभु’

सरकार में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जब लोकसभा टिकट मिली, तब कई नेताओं की बांछे खिल गई. कुछ नेता ऐसे हैं, जो खुली आंखों से खुद को विधायक बनने का सपना देख रहे हैं, तो कुछ विधायक ऐसे हैं, जो सरकार में खुद को मंत्री बनता देख रहे हैं. विधायकों की इस टोली के एक विधायक हैं, जिन्हें महाप्रभु की विशेष कृपा पर टिकट मिल गई थी. कृपा थी, तो चुनाव भी जीत गए. मंत्री बनने की जोर आजमाइश उन्होंने पहले भी की थी, मगर रस्साकशी में पीछे छूट गए थे. अब एक सीट खाली होता देख उनके अरमानों ने फिर से अंगड़ाई ली है. इस बार पूरी तैयारी से जोर आजमाइश चल रही है. महाप्रभु पर उन्हें इतना भरोसा है कि खुद ही लोगों को कहते फिर रहे हैं कि 20 जून को वह शपथ लेंगे. अंग्रेजी का एक शब्द है मैनिफेस्टेशन. विधायक जी ने इस शब्द के गूढ़ रहस्य को समझ लिया होगा. इसलिए मन की हलचलों को अपने शब्दों में पिरोते दिखते हैं. फिलहाल वह घूम-घूम कर लोगों को जगन्नाथ पुरी का प्रसाद खिला रहे हैं. उनके करीबी कहते हैं कि विधायक जी ने शपथ के लिए अपने कपड़े तक सिला रखे हैं. अब जिस नेता की विधायकी की टिकट पर राष्ट्रपति भवन की मुहर लगने की चर्चा होती रही हो, उन्हें भला मंत्री बनने के तमाम दावेदारों में से एक मजबूत दावेदार के रूप में क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? शायद यही सोचकर पार्टी के कुछ लोग उनके इर्द गिर्द मंडराते दिखते हैं. जातिगत समीकरण उनके पक्ष में है नहीं, सो मंत्री बनने की संभावना शून्य ही है, लेकिन उनका यह मानना है कि बीजेपी में सब कुछ मुमकिन है. फार्म हाउस बना रहे मंत्री भी राजनीति में फर्श से अर्श तक पहुंच गए. फिर वह क्यों नहीं? 

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गज पर सवार ‘गजेंद्र’

भाजपा विधायक गजेंद्र यादव के जन्मदिन समारोह की खूब चर्चा है. जन्मदिन की चर्चा ने तब और जोर पकड़ लिया, जब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू और प्रदेश अध्यक्ष किरण देव देर रात समारोह का हिस्सा बन गए. खबर है कि जल्द ही उन्हें तोहफे में मंत्री पद मिल सकता है. तमाम समीकरण गजेंद्र यादव के पक्ष में है. ओबीसी वर्ग में आने वाला प्रभावशाली यादव समाज का वह प्रतिनिधित्व करते हैं. दुर्ग जिले से एक भी मंत्री नहीं होने की स्थिति में उनका दावा तगड़ा है. संघ का मजबूत बैकअप उनके साथ है. गजेंद्र यादव संघ के पूर्व प्रांत प्रमुख रहे बिसराराम यादव के बेटे हैं. एक राजनीतिक चर्चा में यह भी सुना गया है कि गजेंद्र यादव को मंत्री बनाने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय के कुछ नेताओं ने पैरवी की है. सियासी गज पर सवार गजेंद्र यादव साय सरकार में मंत्री बनकर काम करते दिखेंगे, तो आश्चर्य मत कीजिएगा.  

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‘तख्ती’

”वक्त पर किया गया साधारण कार्य भी, वक्त गुजर जाने के बाद किए गए अच्छे कार्य से बेहतर होता है” बलौदा बाजार कलेक्टर कार्यालय के सभागार की एक दीवार पर टंगी एक तख्ती पर यह वाक्य लिखा मिला. इस वाक्य के नीचे तत्कालीन कलेक्टर के एल चौहान का नाम उसी तख्ती पर गुदा था, जो यह समझाने के लिए पर्याप्त था कि इस वाक्य के रचनाकार के एल चौहान ही है. स्कूली पाठ्यक्रम में अक्सर किसी कविता-दोहे के रुप में एक सवाल पूछा जाता था कि कवि का आशय समझाइए? कंपोजिट बिल्डिंग के एक हिस्से को राख में तब्दील कर दिए जाने के दृश्य के बीच तख्ती की शोभा बढ़ाती इन चंद लाइनों का आशय के एल चौहान ही समझा सकते हैं. वक्त पर साधारण काम कर लिया जाता, तो आगजनी के दूसरे दिन ही फाइलों पर दस्तखत करते हुए यह बताने की कोशिश न की जाती कि प्रशासन पटरी पर लौट आया है. के एल चौहान बार-बार यह कहते दिखते रहे कि ‘देखिए मैं फाइलों पर दस्तखत कर रहा हूं. सब ठीक है. व्यवस्था बहाल है’. मगर वह इस सवाल के जवाब से अंजान रहे कि आखिर कैसे उग्र हुई एक भीड़ ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया. आखिर कैसे बलौदा बाजार की घटना ने एक गंभीर प्रशासनिक संकट के हालात बना दिए. आखिर कैसे एक घटना ने सरकार के माथे पर कलंक का एक अनचाहा टिका जड़ दिया? आखिर कैसे प्रदर्शनकारियों की लगाई आग ने करोड़ों की संपत्ति ही नहीं जलाई, बल्कि पूरी की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था धूलधुसरित कर दी. इन सब के परे सरकार ने किसी घटना पर अब तक की सबसे सख्त कार्रवाई करते हुए बलौदा बाजार के कलेक्टर-एसएसपी को हटा दिया. कलेक्टर-एसपी को हटाए जाने के दूसरे दिन ही उन्हें निलंबित कर दिया गया. जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी. धरपकड़ और एफआईआर जारी है. एक कोने से विपक्ष की सियासत भी जगह बना रही है. अब धीरे-धीरे घटना की चर्चा सिमट रही है. बावजूद इसके सबसे अहम सवालों से भाग जाना भविष्य में बड़ी घटनाओं को न्यौता देने जैसा साबित हो सकता है. इन सवालों से सरकार अंजान नहीं है.

पॉवर सेंटर : ‘विधायक की करतूत’..’सम्मान ‘कुर्सी’ का’..’एफआईआर’..’और भी मामले..”सलाहकार कौन?’..’आईपीएस तबादला’..- आशीष तिवारी

‘लिस्ट’

आचार संहिता हटते ही लूपलाइन में बैठे अफसर कलेक्टर-एसपी बनने की कतार में आ खड़े हुए हैं. कुछ अफसर ऐसे हैं, जिन्हें नई सरकार ने बाबूगिरी में लगा दिया था. मुंह में जब खून लग गया हो तब कागजों पर पेन की स्याही घिसने भर से मन कहां मानेगा? कानाफूसी में सुना गया है कि जेल के सींखचों के उस पार से मोबाइल फोन पर निर्देश लेने वाले अफसर भी फील्ड पर उतरने के लिए बेसब्र हैं. पिछली सरकार ने उन्हें सिस्टमेटिक ढंग से चलने का हुनर सीखा दिया है. अफसरशाही को थोड़ा किनारे रख नए सिस्टम में रास्ता ढूंढ रहे थे. आम चुनाव में उन्हें पर्याप्त वक्त मिल गया. कुछ रास्ता ढूंढ पाने में सफल हो गए. अब जब तबादले की नई सूची आएगी, तो उस पर निगाह जमा आइएगा. मुमकिन है कि कुछ नाम उस सूची पर दिखाई दे जाएं.  

पॉवर सेंटर : सुई धागे से सिर्फ कपड़े नहीं, होंठ भी सिले जाते हैं… चतुर नेता… सेफ लैंडिंग!… घेरे में सेक्रेटरी..- आशीष तिवारी

‘पीए- द अनफारगेटेबल हीरोज’

मंत्रियों के पीए और ओएसडी की कई कहानियों का जिक्र हमने पहले भी किया है, लेकिन हर बार द अफारगेटेबल हीरोज की तरह उनके किस्से बार-बार दस्तक दे जाते हैं. मंत्रियों से ज्यादा प्रभाव उनके पीए का होता है. मंत्रियों के पीए के बर्ताव से खुदा ना खास्ता किसी का पाला पड़े. खैर, पीए की कारस्तानियों की श्रृंखला में एक नई श्रृंखला जुड़ी है. बताया जा रहा है कि पिछली सरकार में हुए टेंडर के अटके हुए उन बिलों पर एक पीए की खास दिलचस्पी है, जहां से हरे पत्ते गिने जा सके. पीए ने उन अटके बिलों को जारी करवाने के ऐवज में टेंडर लेने वालों को फोन मिलाना शुरू कर दिया है. पीए की डिमांड से परेशान एक सज्जन टकरा गए. अपना दुख जाहिर कर कहा कि मंत्री का समझ आता है. पीए का कैसा हिस्सा? जोर देकर पूछने पर बताया कि पीए अलग से दो परसेंट मांग रहा है. बहरहाल भाजपा संगठन ने एक नीति बनाई है. हर ढाई साल में मंत्रियों के पीए बदले जाएंगे. बस अब इस नीति पर अमल होने का इंतजार है.