(सुधीर दंडोतिया की कलम से)

आचार संहिता क्या सिर्फ आम लोगों के लिए है

आचार संहिता के बीच शिकायतें लेकर सरकारी कार्यालयों में अमूमन कम ही लोग पहुंचते हैं। लेकिन पिछले दिनों एक सख्श यह शिकायत लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंच गए कि आचार संहिता क्या सिर्फ आम लोगों के लिए ही है। इस जिम्मेदार नागरिक ने अपनी शिकायत में लिख रखा था कि आचार संहिता के बीच आम लोगों पर ही सख्ती दिखाई जा रही है। नेताओं से लेकर अफसर आचार संहिता के नियमों की सरेराह अवहेलना कर रहे हैं और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं। कर्मचारियों को शिकायत देने के साथ आम व्यक्ति यह बात जोर-जोर से मौखिक रूप से भी कहते रहे। हालांकि, शिकायत लेने के बाद आम व्यक्ति को उचित कार्रवाई होने का आश्वासन दिया गया है।

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जो जिम्मेदार सिर्फ उनको ही काम

बात प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी की है। जहां नेताओं के दौरों को लेकर पार्टी ने अब सिर्फ जिम्मेदारों को काम सौंपना शुरू किया है। पहले और दूसरे चरण में जिन्होंने सलीके से जिम्मेदारी नहीं निभाई वो अब अहम जिम्मेदारी वाले कामों से बाहर हो गए हैं। प्रदेशभर में चल रहे बड़े नेताओं के दौरों को लेकर पार्टी ने प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में अपनी टीम डिप्लाॅय कर दी है।

पॉवर गॉशिप: कांग्रेस को जैसे संजीवनी मिल गई हो…साढ़े आठ बजे सोकर उठीं प्रत्याशी…टेंडर में चल रहा है दो परसेंट का खेल…नेताजी का ग्रुप लेफ्ट, कांग्रेस नेताओं की सांसें हुई ऊपर नीचे…माननीय को हेलीकॉप्टर पसंद नहीं…

बीजेपी से अधिक खुद को चमकाने की चिंता

चुनावी माहौल में राजनैतिक दल एक-दूसरे को पस्त करने के जतन में जुटे हुए हैं तो इन दिनों प्रमुख विपक्षी दल के कार्यालय में कुछ लोगों को बीजेपी को परास्त करने से अधिक चिंता खुद को चमकाने की रहती है। कार्यालय की मुख्य धारा से अलग रहकर ये नेता कैमरावालों को तलाशने में अधिक समय जाया करते रहते हैं। इन चमक वाले नेताओं का मानना कि पार्टी की चिंता करने से बजाय खुद को चमकाने में एनर्जी लगाना ही वर्तमान समय में सबसे बेहतर है।

पॉवर गॉशिप: नेताजी के प्रति IAS की गजब की निष्ठा, इतनी तेजी दूसरे कामों में भी दिखाएं साहिब, पहले घटा कद फिर चीफ ने बढ़ाया सम्मान, कद रहेगा बरकरार इसलिए नहीं रहा टिकट न मिलने का मलाल, कुर्सी के लिए डिंडोरी-रीवा से भोपाल की दौड़, टागरेट आया तो नेताजी लेने लगे रात-रातभर बैठक

दम मारो दम, वोट देंगे हम..

नेताओं को तो चुनाव जीतने से मतलब। इसमें दोमत नहीं कि नैतिकता का पाठ का इलेक्शन मैनेजमेंट में कोई स्थान नहीं। अकसर चुनावों में पैसा, शराब, साड़ी समेत अन्य कई सामग्री को जब्त कर नेताओं की नैतिकता का खुलासा होता रहा है। लेकिन, अब ट्रेंड चेंज हो गया है। अब महाकौशल और बुंदेलखंड से जुड़ी एक लोकसभा सीट को ही देख लीजिए। यहां तो बुटी की पुड़िया तक बांटने में नेताओं ने कसर नहीं छोड़ी। हालात ऐसे कि फ्री की पुड़िया ने काले कारोबारियों का धंधा चौपट रहा। नेता जी को इससे फर्क नहीं। यहां तो खुले में चल रहा है। दम मारो दम, वोट देंगे हम…

पॉवर गॉशिप:  ऐसा जुलुम…शिष्टाचार में तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी… बुरा न मानो, हमारी भी तो होली है… मंशा अनुरूप दाल नहीं गली… चेहरे बदलने होंगे…विधायकजी को नहीं पच रही निगम में तवज्जो…आखिर जा क्यों रहे हैं…और आखिरी वक्त में रुक गया ये दिग्गज…मुरैना नहीं, खींचतान का जड़ विदिशा था 

और..मंत्री जी हो गए नाराज

प्रदेश में आचार संहिता भले ही लागू हो, लेकिन माननीयों को इससे फर्क नहीं पड़ता। दरअसल, शहरी विकास से जुड़े 13 शहरों के लिए काम रही एक बड़ी कंपनी और अफसरों की गहरी दोस्ती मंत्री जी को रास नहीं आई। प्रोजेक्टों पर विधानसभा के बाद से ही काम शुरू हो गया था। लिहाजा लोकसभा चुनावी आचार संहिता का इस पर क्या प्रभाव पड़ता। वित्त विभाग ने भारी बजट भी पास किया था। एक तेज दिमाग इंजीनियर वरिष्ठ अफसर ने स्वीकृत भुगतान की भारी फाइल को शिष्टाचार के तहत निपटा दिया। यह बात जैसे-तैसे मंत्री जी तक पहुंच ही गई। चुनावी माहौल जैसी व्यस्तता में भी मंत्री ने समय निकाला और बुलाया। जमकर लगी फटकार के बाद अफसर को शिष्टाचार का उदाहरण पेश करना ही पड़ा। तेज दिमाग साहब जमकर फजीहत भी हुई।

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