निशा मसीह, रायगढ़। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्रामीण क्षेत्र की गरीब महिलाओं के लिए लकड़ी से जलने वाले चूल्हे की बजाए गैस सिलेंडर देने की योजना के नाम से उज्ज्वला योजना बड़े जोर-शोर से शुरू की थी, लेकिन इस योजना का लाभ हकीकत में महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है.

चूंकि एक बार री-फिलिंग खाली होने के बाद दूसरा सिलेंडर लेने के लिए उन्हें कई दिनों तक भटकना पड़ रहा है. हालत ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में एजेंसी नहीं होने से मीलों दूर चलकर महिलाएं अपने घर का कामकाज छोडकर सिलेंडर की री-फिलिंग कराने पहुंचती हैं और वहां से भी उन्हें निराश लौटना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि जिले के बड़े अधिकारियों को इस योजना में हो रही लापरवाही की जानकारी नहीं है, बावजूद इसके उज्ज्वला योजना महिलाओं के लिए सिरदर्द बन गई है.

परेशान महिलाएं बताती हैं कि वे जब भी सिलेंडर एजेंसी संचालक के पास पहुंचती है, तो उन्हें वापस लौटा दिया जाता है और कहा जाता है कि सिलेंडर अभी नहीं भरा जाएगा. इतना ही नहीं, सिलेंडर का रेट तय होने के बावजूद भी वसूली ज्यादा की जाती है. ऐसे में वे अब फिर से चूल्हा जलाने को मजबूर हैं. वहीं जिले के खाद्य अधिकारी भी इस बात को मानती हैं कि उज्ज्वला योजना का टारगेट अभी भी आधा-अधूरा है. साथ ही साथ जितनी गैस एजेंसियां होनी थीं, उनमें कमी की वजह से री-फिलिंग की भी परेशानी आ रही है.

इसके लिए अब अधिकारियों को दिशा निर्देश जारी किए गए हैं, ताकि उज्ज्वला योजना के हितग्राहियों को समय पर उनके खाली सिलेंडर के बदले भरा हुआ सिलेंडर मिल सके. खाद्य अधिकारी जीपी राठिया का कहना है कि री-फिलिंग की समस्या से निपटने के लिए रोज़ाना 30 प्रतिशत गैस का वितरण हो रहा है और कुछ इलाकों से ही शिकायतें हैं और ज्यादातर जगह पर समय पर सिलेंडर की री-फिलिंग की जा रही है.