पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. मैनपुर विकासखंड का अमली गांव कुछ दिनों से पलायन को लेकर चर्चा में बना हुआ है. पलायन की खबर सुनकर रविवार को प्रशासनिक अमला गांव पहुंचा. इस दौरान जो जानकारी निकल कर सामने आई वह काफी हैरान कर देने वाली है.

मैनपुर जनपद सीईओ की माने तो गांव में 25 अक्टूबर से लगातार मनरेगा कार्य जारी है. रोजगार सहायक ऋषिकेश जानी के मुताबिक अबतक 7.92 लाख का नया तालाब निर्माण के अलावा ढाई लाख का भूमि सुधार कार्य पूर्ण हो चुका है. सोमवार से मिट्टी सड़क निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा. उन्होंने बताया कि 85 में से 54 जॉबकार्ड वर्तमान में एक्टिव हैं.

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वही पंचायत सचिव मनोज साहू ने बताया कि गांव के 59 लोगों ने पलायन किया है, जिसमें 9 बच्चे भी शामिल हैं. सचिव के मुताबिक गांव के लगभग 72 परिवारों में 20 से अधिक परिवार के सदस्य पलायन कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि जो पलायन किए हैं वे पिछले दो-तीन सालों से पलायन कर रहे हैं.

ऐसे में कुछ लोगों के लिए यह हैरानी की बात हो सकती है कि गांव में लगातार मनरेगा कार्य संचालित होने के बाद भी ग्रामीण आखिर पलायन करने पर मजबूर क्यों हैं?

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बता दें कि इंदागांव पंचायत का आश्रित गांव अमली है, तकरीबन 15 किमी बीहड़ जंगल मे बसे अमली गांव तक पहुंच मार्ग नहीं है आज भी लोग पगडंडी के सहारे आना जाना करते हैं. गांव में बिजली नहीं है. हालांकि रात में घरों को रोशन करने के लिए सौर ऊर्जा सिस्टम उपलब्ध है. गांव में प्राथमिक शाला तो है मगर शिक्षक आखिरी बार स्कूल कब आए थे शायद बच्चों और ग्रामीणों को भी याद नहीं है.

वहीं पंचायत सचिव की माने तो अमली आदिवासी कमार जनजाति बाहुल्य गांव है. 72 परिवारों में से केवल 2 परिवारों के पास राजस्व जमीन है. 27 परिवारों को शासन की योजना के तहत वन अधिकार पट्टा आबंटित हुआ है. मतलब 72 में से 29 परिवार अब कृषक की श्रेणी में आते हैं.

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यह जानकर हैरानी होगी कि इस बार गांव के एक भी व्यक्ति ने समर्थन मूल्य पर धान बिक्री नहीं की है. मतलब गांव में खेती नाम की कोई चीज नहीं है. वन अधिकार पट्टा के तहत हितग्राहियों को जमीन तो आबंटित कर दी गई, मगर आज भी वह जमीन बंजर पड़ी है. उसे कृषि योग्य बनाने प्रशासन ने कोई पहल नहीं की.

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वहीं कमार जनजाति के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए शासन की न जाने कितनी योजनाएं कागजों में संचालित हैं, मगर आज भी यहां के ग्रामीण बांस के बर्तन बनाकर अपना जीवनयापन करने पर मजबूर हैं.

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रविवार को गांव पहुंचे प्रशासनिक अमले के समक्ष भी ग्रामीणों ने मांग रखी कि केवल मनरेगा कार्य से जीवन नही चल सकता. इसके अलावा गांव में बुनियादी सुविधाएं होना भी जरूरी है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि ग्रामीणों की मांगों को जिला प्रशासन कितनी गंभीरता से लेता है.

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