रायपुर। आदिवासियों की वर्तमान स्थिति को जानना है तो उनके इतिहास को समझना होगा. उन्होंने कहा कि आदिवासी एक निर्माता है, वह शिकार भी करता है पर प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन नहीं करता. यह बात खाखा कमेटी के अध्यक्ष प्रो. वर्जिनियस खाखा ने रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही.

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के अवसर पर राजभाषा आयोग और गोंडवाना स्वदेश पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में 28अक्टबर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रायपुर स्थित शहीद स्मारक भवन में किया गया था. ‘मूल निवासियों की भाषा एवं संस्कृति के विविध आयाम, आदिवासी समाज की दशा एवं दिशा’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारंभ मंत्री अमरजीत भगत ने किया. दूसरे दिन उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा भी संगोष्ठी में शामिल हुए.

संगोष्ठी में झारखंड से आए डॉ. मुकेश बरूआ ने कहा कि आदिवासियों के सारे अनुष्ठान दाएं से बाएं दिशा की ओर होती है, जो बिल्कुल पृथ्वी का सूरज का परिक्रमा करना, भंवर का घूमना, डायनेमों की कायलिंग भी दाएं से बाएं होता है. उन्होंने कहा कि 2004 के सुनामी ने जन-जीवन को काफी नुकसान पहुंचाया, लेकिन ऐसे विकट समय में आदिवासी सुरक्षित रहे. यदि बादल फटने की घटना भी होती है तो आदिवासियों की प्रकृति के करीब होने के चलते जीवन भी बचा रहता है.

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पं. रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के डॉ. जितेन्द्र प्रेमी ने कहा कि आदिवासियों की जान को वास्तव रूप में किसी ने नहीं समझा. यदि आदिवासी को नहीं समझेंगे तो आने वाले समय में दुनिया को नहीं बचा सकते. इसके साथ संगोष्ठी में विभिन्न प्रांतों से आए शोधार्थियों ने भी आदिवासी कला, संस्कृति और परंपरा तथा जल-जंगल-जमीन जैसे विषयों पर आधारित शोधपत्र प्रस्तुत किया.

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संगोष्ठी में लुप्त होती आदिवासी प्रजाति, कोरकू जनजाति, सहरिया जनजाति, राजस्थान, संथाल जनजाति, भारिया जनजाति आदि पर भी अपने-अपने तथ्यात्मक विचार रखा. संगोष्ठी के तीनों दिन के स्वरूप के बारे में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव अनिल भतपहरी ने जानकारी दी. कार्यक्रम का संचालन डॉ गोल्डी एम. जार्ज ने किया. आभार गोंडवाना स्वदेश के संपादक रमेश ठाकुर ने किया.

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