चंद्रकांत देवांगन, पाटन।  हर युवा का सपना अच्छे से पढ़ लिख कर सरकारी नौकरी करने का होता है. उसमें से कुछ लोग ही होते हैं जो नेशनल-मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करना चाहते हैं. वहीं देश का एक बड़ा वर्ग आज भी गरीबी की मार झेल रहा है जिसकी वजह से वह उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता. जो उसका ख्वाब होता है. उसके बावजूद परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानते कुछ लोग संघर्ष करने की सीख दे जाते हैं.

ऐसा ही दुर्ग जिले के पाटन विधानसभा स्थित करेला गांव का एक युवक राकेश कुमार है. राकेश के पिता एक किसान हैं लेकिन प्रदेश के बाकी किसानों की तरह उसके पिता भी मौसम की मार झेल रहे हैं. ज्यादा आमदनी नहीं होने और पिछले कुछ सालों से लगातार सूखे की मार से यहां के किसान टूटते जा रहे हैं.

ऐसा ही कुछ राकेश के पिता के साथ भी था. वे भी खेती किसानी पर ही निर्भर थे लेकिन ज्यादा आमदनी नहीं होने की वजह से परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. लिहाजा राकेश ने भी 12 वीं की पढ़ाई करने के बाद परिवार के खर्चे में पिता का हाथ बंटाने का सोचा. इसी बीच उसे लाइवलीहुड कालेज की जानकारी लगी. राकेश ने लाइवलीहुड कालेज से इलेक्ट्रिकल एंड होम अप्लायसेंस की रिपेयरिंग का वहां से प्रशिक्षण लिया.

प्रशिक्षण लेने के बाद उसकी नौकरी रायपुर की एक कंपनी में लगी जहां उसने 1 साल तक काम किया. एक साल तक काम करने के बाद उसने फिर खुद का व्यवसाय शुरु करने का फैसला लिया. अपने गांव में ही उसने एक आफिस खोल लिया. देखते ही देखते उसका व्यवसाय फलने फूलने लग गया. आस-पास के क्षेत्रों के सारे काम अब उसी के पास आने लगा है. इसके साथ ही अब वह सरकारी दफ्तरों और भवनों में भी इलेक्ट्रीकल से संबंधित सारे काम का ठेका लेने लगा है.

काम की अधिकता की वजह से अब उसने 2 और युवकों को भी काम पर रख लिया है. उन दोनों युवकों को पेमेन्ट करने के बाद हर महीने वह 20 से 25 हजार रुपए कमा लेता है. राकेश का कहना है कि खुद का व्यवसाय शुरु करने से अब उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हो गई है. अब काम करने के साथ ही उसने अपनी स्नातक की भी पढ़ाई शुरु कर दी है.